बिजनेस रेमेडीज/जयपुर। सभी डिस्कॉम्स में ट्रांसफॉमर्स की मांग ज्यादा है और उन्हें सप्लाई भी मिल रही है, लेकिन जिस गति से उन्हें सप्लाई चाहिए, उस हिसाब से सप्लाई नहीं हो पा रही है। कारण स्पष्ट है अन्य कारणों के अतिरिक्त बड़ी अड़चन समय पर सप्लायर्स को पेमेंट नहीं होना भी है। पिछले टेंडरों में जितनी सप्लाई दी, उसमें विद्युत निगम की ओर से तय भुगतान सीमा से कई माह की अभी तक देरी हो चुकी है। नई सप्लाई प्राप्त करने के लिए डिस्कॉम्स ने 7-15 दिनों में भुगतान का लालच दिया व डिस्कॉम्स काफी हद तक इस तरीके से सप्लाई पाने में सफल भी रहे है। पर पुराना बकाया भुगतान कब होगा इसकी कोई स्पष्ट रूपरेखा नहीं है।
जोधपुर डिस्कॉम्स भुगतान के मामले में न केवल असाधरण देर कर रहा है, बल्कि देरी से भुगतान के केस में देय ब्याज का मसला भी अधिकतर सप्लाई के केस में वर्षों से लटका रखा है। कानूनन एमएसएमईडी एक्ट-2006 के अंतर्गत देरी से किए गए भुगतान पर बैंक रेट से तिगुना मासिक चक्रवर्ती ब्याज देय होता है। जयपुर एवं अजमेर विद्युत निगम इस मामले को पहले ही हल कर चुके है, लेकिन जोधपुर विद्युत वितरण निगम इस मामले में बहुत पीछे चल रहा है। इस दौरान निगम का शीर्ष प्रबंधन यद्यपि एकाधिक बार बदल चुका है, पर इस मामले को किसी ने भी हल नहीं किया है। कुछ दिनों पहले तक ट्रांसफॉमर्स की मांग अपने चरम पर थी। आपूर्तिकर्ताओं की ओर से पूरी कोशिश करके डिस्कॉम्स को अधिकतम सप्लाई भी दी, लेकिन अन्य समस्याओं के साथ भुगतान में असाधारण देरी से उद्योग त्रस्त है। मजे की बात यह है जोधपुर डिस्कॉम खुद तो भुगतान में असाधारण देरी कर रहा है, लेकिन एमएसएमईडी एक्ट-2006 के अंतर्गत पुराने ब्याज के मामलों को पूरी तरह नजर अंदाज कर रहा है। यद्यपि आपूर्तिकर्ता की ओर से यदि सप्लाई में एक दिन की भी देरी हो जाए तो पेनल्टी नियमानुसार वसूल रहा है। उद्योग कच्चे माल की उपलब्धता में भी कमी महसूस कर रहे हैं। निगमों को चाहिए कि ट्रांसफार्मर की सप्लाई को गति देने के लिए पुराने बकाया पेमेंट की शीघ्र व्यवस्था करे।
क्या है एमएसएमईडी एक्ट-2006
इसे विडंबना ही कह सकते है जब केंद्र सरकार जनता के एक बड़े हिस्से की भलाई के लिए कानून बनाती है, लेकिन राज्य सरकारें व उनके उपक्रम केंद्रीय सरकार के उस नियम व्यवस्था को मानने से इंकार कर देते है। ऊपर उल्लेखित कानून में एमएसएमईडी को समय पर भुगतान हो सके, इसके लिए केंद्रीय सरकार ने यह कानून बनाया, लेकिन इस कानून की परवाह कभी नहीं की गई है। कानून के अनुसार देर से भुगतान पर बिल की तारीख वाले दिन जो भी बैंक रेट लागू है, उस दर से तिगुना मासिक चक्रवर्ती की गणना कर सम्बंधित इकाई को ब्याज दिया जाना चाहिए, लेकिन डिस्कॉम्स ने आपूर्तिकर्ताओं से यह लिखित समझौता कर लिया की सिर्फ ब्याज की एकल दर के लिए राजी है। उद्योगों के पास और कोई चारा न होने की दशा में इस शर्त को मानना उनकी मजबूरी है और इस तरह एक बहुत अच्छे उद्देश्य से लाए गए कानून की पूरी तरह अवेहलना की गई है।
डॉ.सुरेन्द्र बजाज, कोषाध्यक्ष, राजस्थान ट्रांसफार्मर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन, जयपुर
45
previous post