डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद अन्तरराष्ट्रीय परिस्थितियों विशेष कर दक्षिण एशिया व भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्र में परिवर्तन आएगा, उसी के अनुरूप घटनाक्रम आगे बढ़ता नजर आ रहा है। इस सन्दर्भ में भारत-चीन सम्बन्धों को हमें बारीकी से देखना होगा और फिर निष्कर्ष निकालना होगा कि क्या चीन के रुख में सकारात्मक परिवर्तन आना शुरू हुआ है? हाल ही में चीन ने अमेरिकी चुनावों के बाद आधिकारिक वार्ता की है, जिसमें उसने जून, 2020 से पहले की स्थिति लद्दाख सीमा क्षेत्र में कायम करने की इच्छा जताई है। यह सकारात्मक परिवर्तन है, जो चीन के रुख में आया है। हालांकि पिछले महीने रूस के कजान शहर में जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग व भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई थी, तो इससे आपसी सम्बन्धों में सुधार की आशा बलवती हुई थी। इसकी एक वजह यह भी कही जा रही है कि दोनों नेताओं में निजी मित्रता भी है, मगर अन्तरराष्ट्रीय कूटनीतिक सम्बन्धों में निजी सम्बन्धों का कोई विशेष महत्व नहीं होता है क्योंकि सभी कुछ दोनों नेताओं के अपने-अपने राष्ट्रीय हितों पर निर्भर करता है परन्तु इसके बावजूद आपसी मित्रता की महत्ता यह होती है कि सख्त रुख नरम पड़ता है। भारत के हित में यही है कि इसके चीन के साथ सम्बन्ध सामान्य ही नहीं बल्कि खुशनुमा हों क्योंकि दोनों ऐतिहासिक रूप से पड़ोसी देश हैं। इस बारे में चीन से जो खबरें मिल रही हैं वे उम्मीद जगाती हैं कि दोनों देशों के सम्बन्ध दो निकट के पड़ोसी देशों के रूप में परिवर्तित होंगे। मसलन दोनों देशों के बीच सीधी हवाई उड़ानें शुरू होंगी और चीनी नागरिकों को भारत आने के लिए वीजा देने में भी चीन की सरकार उदार रुख अपनाएगी। चीन की कम्युनिस्ट सरकार भारत के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाने हेतु एक कदम आगे बढऩा चाहती है। मगर हमें नहीं भूलना चाहिए कि 1962 से पहले भी भारत में हिन्दी-चीनी, भाई-भाई के नारे लगते थे, मगर चीन ने अचानक इसी वर्ष भारत पर हमला बोल दिया था और इसकी फौजें असम राज्य के तेजपुर तक पहुंच गई थीं। कूटनीति में दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है अत: भारत को हर कदम बहुत सावधानी के साथ उठाना पड़ेगा और चीन की सदाशयता को चौकस रहते हुए परखना पड़ेगा। अन्तरराष्ट्रीय सीमा निर्धारण करने का काम वर्ष,2005 से ही चल रहा है, जिसमें अभी तक खास प्रगति नहीं हुई है। हालांकि दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों की दो दर्जन से अधिक बार बैठक हो चुकी है। एक परिवर्तन इस सन्दर्भ में भारत के रुख में यह आया कि इसने 2003 में तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार कर लिया जिससे चीन पर भारतीय दबाव कम हुआ है।
चीन के साथ सम्बन्ध सामान्य ही नहीं बल्कि खुशनुमा हों
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