भारत दुनिया में सर्वाधिक सडक़ दुर्घटनाएं के रूप में गिना जाता है। इसी कारण इसे सडक़ दुर्घटनाओं की राजधानी भी कहा जाने लगा है। पिछले दिनों ही केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी संसद में कहा कि सडक़ दुर्घटनाओं के मामले में भारत का रिकार्ड सबसे गंदा है, जिस कारण उन्हें विश्व सम्मेलनों में अपना मुंह छिपाना पड़ता है। यह सही है कि जब तक समाज का सहयोग नहीं मिलेगा, लोगों का व्यवहार नहीं बदलेगा और लोगों को कानून का डर नहीं होगा, तब तक सडक़ दुर्घटनाओं और इनसे होने वाली मौतों पर अंकुश नहीं लगेगा। लोग ट्रैफिक सिग्नलों का पालन भी नहीं करते और दोपहिया चालक हैलमेट नहीं लगाते। गडकरी ने इस बात को स्वीकार किया कि जब उन्होंने वर्ष, 2014 में पहली बार मंत्रालय संभाला, तब उन्होंने सडक़ दुर्घटनाओं को 50 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य तय किया था। उन्होंने कहा कि मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मैं इसमें विफल रहा तथा इनमें और वृद्धि हुई है। इतनी संख्या में तो लोग ना लड़ाई में मरते हैं, ना कोविड में मरे हैं और ना ही दंगे में मरते हैं। जनसंख्या के लिहाज से वाहनों की संख्या में 1 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले भारत में सडक़ दुर्घटनाओं से मौतों के वैश्विक आंकड़ों में 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। इन मौतों का बड़ा कारण सडक़ दुर्घटनाओं में घायल लोगों को समय पर उपचार न मिलना है। वहीं बढ़ती सडक़ दुर्घटना का प्रमुख कारण सडक़ों के किनारे बेतरतीब ढंग से खड़े ट्रक और लेन डिसिप्लिन का अभाव है। जहां पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में वाहनों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो गई है। देश में 2022 में हुई सडक़ दुर्घटनाओं में से 71 प्रतिशत मौतें ओवर स्पीडिंग, 5.4 प्रतिशत गलत साइड में ड्राइविंग, 2.5 प्रतिशत नशे में गाड़ी चलाने तथा 2 प्रतिशत मौतें मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हुए ड्राइविंग करने के परिणामस्वरूप हुईं। सडक़ दुर्घटनाओं का एक कारण वाहन चालकों द्वारा पूरी नींद न लेना भी है। सडक़ परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 40 प्रतिशत सडक़ दुर्घटनाओं का कारण वाहन चलाते समय चालक को नींद आना है। इसी को देखते हुए आंध्र प्रदेश में अनंतपुर जिले की पुलिस ने रात के समय वाहन चालकों की अनिद्रा के कारण सडक़ दुर्घटनाएं टालने के लिए वाश फेस एंड गो (मुंह धोकर आगे बढ़ो) नामक अभियान शुरू किया है, ताकि नींद की झपकी सडक़ दुर्घटनाओं का कारण न बने। अन्य स्थानों पर भी इस प्रकार का प्रबंध किया जाना चाहिए।
बढ़ती सडक़ दुर्घटनाओं से बचाव के लिए जन सहयोग और जागरूकता जरूरी
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