हाल ही में जारी आधिकारिक अनुमान दर्शाते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जताए गए अनुमान की तुलना में काफी धीमी गति से विकसित हो रही है। देश की अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 5.4 फीसदी की दर से बढ़ी। हालांकि रिजर्व बैंक ने अक्टूबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में समान अवधि में इसके 7 फीसदी की दर से विकसित होने का अनुमान जताया था। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि नीतिगत दरों में कमी करने में मौद्रिक नीति समिति ने जो देरी की है वह भी इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है। इसके बावजूद रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर में 50 आधार अंकों की कमी की जो दो हिस्सों में प्रभावी होगी और जिसकी बदौलत बैंकिंग तंत्र में 1.16 लाख करोड़ रुपये की नकदी आएगी। हालांकि रिजर्व बैंक ने दरों में कटौती को नकदी के संभावित दबाव के चलते उचित ठहराया है, लेकिन केंद्रीय बैंक के पास नकदी के अस्थायी संकट से निपटने के लिए अन्य उपाय मौजूद हैं। सीआरआर में कटौती मौद्रिक नीति व्यवहार को सामान्य बनाने की दिशा में उठाया गया एक कदम है। हालांकि मुद्रास्फीति की दर अक्टूबर में ही सहिष्णु दायरे के ऊपरी स्तर के पार चली गई थी, लेकिन अब अनुमान जताया जा रहा है कि यह 2025-26 की दूसरी तिमाही में घटकर 4 फीसदी के वांछित लक्ष्य के आसपास आ जाएगी। ताजा मौद्रिक नीति रिपोर्ट (अक्टूबर में जारी) ने दिखाया कि रिजर्व बैंक का अनुमान है कि 2025-26 की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति की दर 4.1 फीसदी रहेगी। ऐसे में वर्ष 2025-26 में मुद्रास्फीति संबंधी नतीजे 4 फीसदी के लक्ष्य के करीब रह सकते हैं और इससे नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश बनेगी। बहरहाल इसकी मात्रा और इसका समय विभिन्न कारकों पर निर्भर करेगा। इसके अलावा रिजर्व बैंक के अर्थशास्त्रियों ने दिखाया कि गत वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में तटस्थ दर 1.4 से 1.9 फीसदी थी जबकि 2021-22 की तीसरी तिमाही में यह दर 0.8 से एक फीसदी रही थी। ऐसे में इजाफे को देखते हुए नीतिगत दरों में कटौती की संभावना सीमित होगी। इसकी दरों में कटौती के उचित समय के निर्धारण में भी उचित भूमिका होगी। मौद्रिक नीति समिति शायद ब्याज दरों में कटौती को आगे बढ़ाने में अनिच्छुक हो तथा अनिश्चितताओं से निपटने के लिए कुछ नीतिगत गुंजाइश बचाकर रखना चाहे।
नीतिगत संतुलन जरूरी
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