कोरोना महामारी के बाद से दुनियाभर के देशों में कुछ ना कुछ अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में वैश्विक आर्थिक हालातों को लेकर चिंता बढ़ रही है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष, 2025 में दुनिया एक बार फिर आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकती है। जर्मनी, ब्रिटेन और जापान जैसे देशों की अर्थव्यवस्था पहले से ही तनाव के संकेत दे रही है। वहीं भारत की धीमी होती जीडीपी वृद्धि भी इस ओर इशारा करती है। जहां ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था वर्ष, 2024 की तीसरी तिमाही में शून्य वृद्धि दिखा रही है। जापान भी कमजोर घरेलू मांग के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, जहां औसत घरेलू लोन, औसत आय से अधिक हो गया है। न्यूजीलैंड में जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी में 1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, जो 1991 और कोविड के बाद की सबसे खराब स्थिति है। एक ओर जहां अमेरिका में मंदी की संभावना कम जरूर हुई है, लेकिन यह पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। पिछले दिनों गोल्डमैन सैक्स ने अगले 12 महीनों में मंदी की आशंका को 20 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी कर दिया है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि मुद्रास्फीति अमेरिका के लिए ज्यादा बड़ी चिंता है। वहीं कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि मंदी का कोई संकेत नहीं है। अगर बाजार और अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही है तो मूल्य निर्धारण में कुछ तनाव हो सकता है। मंदी नहीं, बल्कि मुद्रास्फीति अमेरिका में बड़ी चिंता हो सकती है। डोनाल्ड ट्रंप जनवरी में अमेरिका का राष्ट्रपति पदभार संभालने जा रहे हैं। वह चीन समेत दुनिया के कई देशों पर टैरिफ बढ़ाने वाले हैं। इससे वैश्विक व्यापार और बाधित हो सकता है जिससे आर्थिक दबाव बढ़ सकता है। इस समय यूक्रेन और मध्य पूर्व में चल रहे युद्ध और भू-राजनीतिक तनाव भी आर्थिक मंदी की आहट का संकेत दे रहे हैं। इससे जर्मनी और फ्रांस जैसी प्रमुख यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं में संकट पैदा हो सकता है। वहीं जेपी मॉर्गन का भी अनुमान है कि 2025 की पहली छमाही में वैश्विक मंदी की संभावना सिर्फ 15 फीसदी है। विशेषज्ञों का कहना है कि मंदी की भविष्यवाणी करना मुश्किल है और अक्सर यह अनिश्चितता के कारण ही चर्चा में रहता है।
वैश्विक आर्थिक हालातों के चलते वर्ष, 2025 में मंदी का खतरा मंडराने की उम्मीद
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