अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, सम्पूर्ण विश्व में महिलाओं की उपलब्धियों, वित्तीय व सामाजिक क्षेत्रों में उनकी भागीदारियों तथा महिलाओं के अस्तित्व के सम्मान के प्रतीक के रूप में हर बर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है, जिसे विश्व महिला दिवस भी कहा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाने तथा महिलाओं के अधिकारों के हनन को रोकने, लिंग आधारित हिंसा, भेदभाव, सामाजिक-आर्थिक असमानताओं जैसे मुद्दों पर सम्पूर्ण विश्व का ध्यान आकृष्ट करने के लिए एक मंच के रूप में भी कार्य करता है। सन् 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार आधिकारिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को मान्यता दी। सभी महिलाओं को अपने संवैधानिक, विधिक तथा सामाजिक व पारिवारिक कर्तव्यों तथा अधिकारों के प्रति जागरूक होना अतिआवश्यक है। संविधान के अनुच्छेद-14 व 21 समानता तथा स्वतंत्रता के सम्बन्ध में लिंग के आधार पर भेदभाव को प्रतिषेध करती है। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में तथा यदि हम भारत देश की बात करें, तो लोकतांत्रिक सरकार ने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण राजनीति में सक्रिय भागीदारी, लैंगिक समानता तथा भेदभाव रहित स्वच्छ माहौल में कार्य करने की समानता के संबंध में अनेक कानून बनाए गए हैं। जिनमे प्रमुख रूप से पोक्सो एक्ट, मातृत्व लाभ अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ उत्पीडऩ रोकथाम अधिनियम महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व ( रोकथाम) अधिनियम, दहेज निषेध अधिनियम, तथा घरेलू हिंसा से रोकथाम अधिनियम आदि है।
वर्तमान समय विचारणीय बिंदु यह है कि अनेकाएक कानून बनने के बाद भी महिलाओं को उनका उचित प्रतिनिधित्व तथा उचित संरक्षण नहीं मिल पा रहा है, जो कि विचारणीय बिंदु है इस समस्या का समाधान निकालने हेतु दूरदराज देहात क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने हेतु समय-समय पर जागरूकता कैंप लगाने आवश्यक है इस दिशा में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण तथा राज्य विधिक सेवा अधिकरण तालुका स्तर तक सराहनीय कार्य कर रहे है। यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि वर्तमान में विभिन्न क्षेत्र की महिलाएं अपने-अपने क्षेत्र में सफलता की नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं तथा अनेक क्षेत्रों में उन्होंने नए आयाम स्थापित किए हैं जो ना केवल उनकी उपलब्धि को दर्शाता है बल्कि इसके पीछे छुपे उनके समर्पण विषय परिस्थितियों निर्णय लेने की क्षमता दक्षता व बुद्धिमत्ता का घोतक है। आज भी इस जगह पर महिलाओं को लैंगिक असमानता भेदभाव झेलना पड़ता है शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर रोजगार तक पुरुषों और महिलाओं के बीच एक गहरी खाई नजर आती है। कन्या भ्रूण हत्या के मामले आज भी आते हैं, महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं। ज्यादातर स्त्रियों को परिवार में फैसला लेने का अधिकार और आजादी नहीं मिल पा रही है। ऐसे में हमारा यह कर्तव्य है हम महिलाओं की स्थिति समाज में बेहतर बनाने को प्रयासरत रहने का संकल्प ले उनका क्रियान्वित करें यही महिला दिवस की सभी स्त्रियों को समाज की ओर से उचित सम्मान होगा।
निधि खंडेलवाल, एडवोकेट,
पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष
राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर
