बिजऩेस रेमेडीज/जयपुर भारत को खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, Solvent Extractor’s Association of India (SEA) और सॉलिडरिडाड ने भारत में सरसों और रेपसीड उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अपने प्रयासों को जारी रखा है।
इस पहल का उद्देश्य किसानों के बीच फसल उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक और अच्छे कृषि अभ्यासों को बढ़ावा देकर देश की खाद्य तेल की मांग और सप्लाई के अंतर को कम करना है। इस प्रयास के तहत, वर्तमान रबी सीजन में आईसीएआर-रेपसीड-सरसों अनुसंधान निदेशालय (ICR-DRMR) के तकनीकी सहयोग से इस वर्ष मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में 2,000 सरसों मॉडल फार्म (एमएमएफ) स्थापित किए गए हैं। इस वर्ष, सरसों मॉडल फार्म का उद्देश्य ICR-DRMR द्वारा विकसित डीआरएमआर 1165-40 और आरएच 725 जैसे उच्च उपज वाली सरसों की किस्मों (एचवाईवी) के बीजों को बढ़ावा देना साथ ही कीट एवं रोग प्रबंधन में सुधार करना, जलवायु के अनुसार उत्पादन विधियों को बढ़ावा देना और फार्मर फील्ड स्कूलों (FFS) के माध्यम से सहकर्मी शिक्षण विकसित करना है। वर्ष 2020-21 में शुरू किए गए सरसों मॉडल फार्म ने किसानों में उन्नत कृषि पद्धतियों और उत्पादकता दोनों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नतीजतन, भारत के सरसों उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2020-21 में 86 लाख टन से ब?कर वर्ष 2023-24 में 120.9 लाख टन हो गई है। इस वर्ष, मध्य प्रदेश में 750, उत्तर प्रदेश में 350 और राजस्थान में 900 मॉडल फार्म विकसित किए गए है। यह मॉडल फार्मस नॉलेज हब्स के रूप में कार्य करते हुए अन्य किसानों को व्यापक कृषि ज्ञान देंगे। सरसों मॉडल फार्मों ने उपज में उल्लेखनीय सुधार प्रदर्शित किया है, किसानों की पारंपरिक प्रथाओं और उन्नत प्रथाओं के बीच तुलना से 20 प्रतिशत से 25 प्रतिशत की औसत वृद्धि दिखाई देती है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2024-25 में उपज में लगभग 24 प्रतिशत सुधार दर्ज किया गया है।
एसईए के अध्यक्ष संजीव के. अस्थाना ने परियोजना की सफलता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह सरसों मॉडल फार्म परियोजना का 5वां वर्ष है और इस प्रयास ने सरसों उत्पादन को बढ़ाने एवं खाद्य तेलों के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने में आवश्यक है।
भारत के कुल खाद्य तेल उत्पादन में सरसों का योगदान 45 प्रतिशत है, इसलिए सरसों मॉडल फार्म परियोजना न केवल किसानों की क्षमता को ब?ाती है, बल्कि कृषि अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करती है, जिससे एक टिकाऊ, उच्च उपज वाला और जलवायु- अनूकूल सरसों की उपज सुनिश्चित होती है। एसईए-रेप मस्टर्ड प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष विजय डाटा ने कहा कि ‘भारत का सरसों उत्पादन 2020-21 में 86.0 लाख टन से बढक़र 2023-24 में 120.9 लाख टन हो गया है, सरसों मॉडल फार्म पहल ने इस वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य खेती के क्षेत्रों का विस्तार करना, सरसों के बीजों में तेल की मात्रा को 38 से 42 प्रतिशत तक बढ़ाना, तथा जैव उर्वरकों, कीटनाशकों के कम उपयोग और जलवायु अनुकूल कृषि जैसी स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देना है। हम सरसों के मॉडल फार्म के लिए भारत सरकार के रेपसीड निदेशालय सरसों अनुसंधान केंद्र भरतपुर द्वारा प्रदान की गई तकनीकी ज्ञान एवं सहायता की सराहना करते हैं और हम संस्थान से निरंतर सहयोग और समर्थन की आशा करते हैं। हम इस तरह की पहल के बड़े पैमाने पर विस्तार के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
डॉ. सुरेश मोटवानी, महाप्रबंधक एवं प्रमुख वेजिटेबल ऑयल, सॉलिडरिडाड ने बताया, कि सरसों मॉडल फार्म का किसानों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जिसमें डीआरएमआर 1165-40 और आरएच 725 जैसे उच्च उपज वाले सरसों के बीजों को अपनाना शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप अनुकूलित बीज दर और न्यूटरेंट एप्लीकेशन्स के माध्यम से पौधों की वृद्धि में सुधार हुआ है। लक्षित कीट प्रबंधन तकनीक के कारण कीटों के प्रकोप में कमी आई है, जबकि बेहतर एग्रोनॉमिक तकनीकों ने उच्च पैदावार और लाभप्रदता में योगदान दिया है। इस कार्यक्रम ने टिकाऊ सरसों की खेती में महिला किसानों की सक्रिय भागीदारी को भी बढ़ावा दिया है। इसके अतिरिक्त, कृषि चौपाल, सलाह और टोल-फ्री किसान हेल्पलाइन जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से कृषि ज्ञान को बढ़ाया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि महत्वपूर्ण कृषि संबंधी जानकारी व्यापक कृषक समुदाय तक पहुँचे। एसईए के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. बी.वी. मेहता ने प्रोजेक्ट के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि भारत की आयात पर निर्भरता कम करने के लिए रेपसीड और सरसों सबसे आशाजनक तिलहन फसलों में से हैं। बेहतर खेती तकनीकों पर विस्तार सेवाओं और किसान जागरूकता को मजबूत करना खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने और माननीय प्रधानमंत्री मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत‘ के दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण है।
