बिजऩेस रेमेडीज/नई दिल्ली भारत की सबसे बड़ी डिजिटल Healthcare कंपनी MediBuddy ने एक अध्ययन रिपोर्ट जारी किया है, जो मिलेनियल वर्कफोर्स में बढ़ते भावनात्मक तनाव की चिंताओं को उजागर करता है। मेडीबडी द्वारा अक्टूबर से दिसंबर 2024 के बीच की गई मनोवैज्ञानिक परामर्शों की रिपोर्ट में चौंकाने वाले मानसिक स्वास्थ्य संबंधी रुझान देखने को मिले हैं। इन मामलों में लगभग आधे से ज़्यादा लोग चिंता (Anxiety) और तनाव (Stress) जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जो इस वर्ग में प्रमुख चिंता का विषय बन चुकी हैं।
इस अध्ययन में विभिन्न आयु वर्गों और लिंगों से जुड़े क्लाइंट्स के लिए विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिकों द्वारा की गई 2,400 कंसल्टेशन का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि कार्यस्थलों पर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए टार्गेटेड इंटरवेंशंस की तत्काल जरूरत है। विशेष रूप से 20 से 40 वर्ष के युवा प्रोफेशनल्स में चिंता और तनाव से जुड़ी स्थितियां सबसे अधिक पाई गई हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। आंकड़ों से पता चलता है कि चिंता संबंधी समस्याएं समग्र रूप से सबसे अधिक प्रचलित स्थिति में बनी हुई हैं, जो सभी परामर्शों का 32.28 प्रतिशत है, इसके बाद तनाव संबंधी चिंताएं 17.15 प्रतिशत हैं, जो कुल मिलाकर सभी मानसिक स्वास्थ्य परामर्शों का लगभग 50 प्रतिशत है।
अध्ययन में यह भी विश्लेषण किया गया कि इन मानसिक समस्याओं के पीछे कौन-कौन से प्रमुख कारण हैं। Gen Z वर्ग में युवा पुरुषों को अक्सर पेशेगत दबाव और सामाजिक अपेक्षाओं के चलते मानसिक थकावट (Burnout) का सामना करना पड़ता है। तो वहीं, युवा महिलाएं अधिकतर आर्थिक असुरक्षा और डिजिटल व सामाजिक मान्यता की चाह में मानसिक तनाव से जूझती हैं। यह स्थिति समाज की पारंपरिक धारणाओं और सोशल मीडिया के प्रभाव से और भी जटिल हो जाती हैं। इस आयु वर्ग के पुरुषों और महिलाओं—दोनों के लिए ही रिश्तों में तनाव और शारीरिक बनावट को लेकर चिंता (Body Image Issues) मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी प्रमुख चुनौतियां बनकर उभर रही हैं।
मिलेनियल्स के बीच मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में लगातार बढ़ोतरी के पीछे कई अहम कारण हैं। इनमें सबसे प्रमुख है वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी, जहां लोग करियर में तरक्की, आर्थिक सुरक्षा और निजी जीवन के लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाने की जद्दोजहद में लगातार तनाव का शिकार हो रहे हैं। इसके साथ ही डिजिटल बर्नआउट यानी हर समय ऑनलाइन और जुड़े रहने की आदत उनके काम और निजी जीवन की सीमाओं को धुंधला कर रही है, जिससे खुद को समय देना और मानसिक रूप से राहत पाना उनके लिए बेहद मुश्किल हो गया है। इसके साथ ही आर्थिक अनिश्चितता भी उनकी चिंता को और बढ़ा रही है, जिससे युवा प्रोफेशनल्स में करियर की अस्थिरता और वित्तीय दबाव की भावना गहराने लगी है।
महिलाओं के लिए स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है, क्योंकि उन्हें करियर में आगे बढऩे के साथ-साथ परिवार की ज़िम्मेदारियां भी निभानी होती हैं। इस दोहरी भूमिका का सीधा असर महिला प्रोफेशनल्स के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।
इस अध्ययन में यह भी उजागर किया गया है कि सोशल मीडिया इन समस्याओं को और गंभीर बना रहा है, क्योंकि सामाजिक तुलना के कारण लोग अपने परफॉर्मेंस को लेकर अवास्तविक अपेक्षाएं पाल लेते हैं, जिससे भावनात्मक तनाव बढ़ जाता है। जेंडर आधारित विश्लेषण में भी उल्लेखनीय अंतर पाए गए हैं: इस रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों में चिंता से जुड़ी शिकायतें अधिक पाई गईं हैं, पुरुषों में यह आंकड़ा 16.95 प्रतिशत है, जिसकी तुलना में महिलाओं में 15.20 प्रतिशत केस सामने आए हैं।
