Tuesday, January 14, 2025 |
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‘भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2025 में 6.6 प्रतिशत रहने का अनुमान’

by Business Remedies
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बिजनेस रेमेडीज/नई दिल्ली (आईएएनएस)। हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ‘विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएं (डब्ल्यूईएसपी) 2025’ के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था 2025 में 6.6 प्रतिशत की दर से बढऩे का अनुमान है। ये मुख्य रूप से निजी खपत और निवेश पर आधारित है। इसके अलावा, संयुक्तराष्ट्र की प्रमुख आर्थिक रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सेवाओं और कुछ विनिर्मित वस्तुओं में भारत की मजबूत निर्यात वृद्धि से आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलेगा। दूसरी ओर, “चीनी अर्थव्यवस्था में घरेलू खपत में कमी, संपत्ति क्षेत्र में कमजोरी और बढ़ते व्यापार तनाव के बीच धीरे-धीरे नरमी की प्रवृत्ति जारी रहने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 में वृद्धि दर 4.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि 2024 में 4.9 प्रतिशत का अनुमान लगाया गया था।” संयुक्तराष्ट्र की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2025 में वैश्विक वृद्धि 2.8 प्रतिशत पर रहेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई अर्थव्यवस्थाओं में कम मुद्रास्फीति और मौद्रिक सहजता 2025 में वैश्विक आर्थिक गतिविधि को मामूली बढ़ावा दे सकती है। हालांकि, अनिश्चितता अभी भी बड़ी है, जिसमें भू-राजनीतिक संघर्षों, बढ़ते व्यापार तनाव और दुनिया के कई हिस्सों में उधार लेने की बढ़ी हुई लागत से जोखिम है। ये चुनौतियां विशेष रूप से कम आय वाले और कमजोर देशों के लिए गंभीर हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में कहा, “देश इन खतरों को नजरअंदाज नहीं कर सकते।

हमारी परस्पर जुड़ी अर्थव्यवस्था में, दुनिया के एक तरफ के झटके दूसरी तरफ कीमतों को बढ़ाते हैं। हर देश प्रभावित है और उसे समाधान का हिस्सा बनना चाहिए – प्रगति को आगे बढ़ाना चाहिए।” “हमने एक रास्ता तय कर लिया है। अब इसे पूरा करने का समय आ गया है। आइए हम सब मिलकर 2025 को ऐसा साल बनाएं जब हम दुनिया को सभी के लिए समृद्ध भविष्य की राह पर ले जाएं।” संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पूर्वी और दक्षिण एशिया में बढ़ते नकारात्मक जोखिम हैं जो आर्थिक संभावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं। प्रमुख जोखिमों और चुनौतियों में भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार विवाद और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव शामिल है, जो मुद्रास्फीति के दबाव को फिर से बढ़ा सकता है और खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकता है। इसके अलावा, चीन के संपत्ति बाजार में लंबे समय से जारी कमजोरी और कई दक्षिण एशियाई देशों में सार्वजनिक और बाहरी ऋण के उच्च स्तर आर्थिक स्थिरता को और भी अधिक प्रभावित कर सकते हैं।

इन जोखिमों और चुनौतियों के जवाब में, पूर्वी और दक्षिण एशिया की सरकारों ने अनुकूलित नीतियां लागू की हैं। मुद्रास्फीति में कमी ने क्षेत्र के कई केंद्रीय बैंकों को 2024 में ब्याज दरों को कम करने के लिए प्रेरित किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि राजकोषीय फ्रंट पर, क्षेत्र के देश राजकोषीय स्थान को दोबारा पाने और रणनीतिक सार्वजनिक व्यय और सुधारों के माध्यम से आर्थिक गतिविधि को सपोर्ट करने पर ध्यान दे रहे हैं।



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