बिजनेस रेमेडीज/नई दिल्ली। बढ़ती माल ढुलाई लागत, कंटेनर की कमी और प्रमुख निर्यात और विदेशी वाहक पर निर्भरता देश के निर्यात के लिए गंभीर चुनौतियां पेश कर रही हैं।
शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने कहा कि भारत घरेलू कंटेनर उत्पादन को बढ़ावा देने, स्थानीय निर्यात कंपनियों की भूमिका बढ़ाने, घरेलू कंटेनर के उपयोग को बढ़ावा देने और स्थानीय निर्यात कंपनियों को मजबूत करने के लिए कई रणनीतियों को लागू कर रहा है। जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, “भारत घरेलू कंटेनर उत्पादन को बढ़ावा देकर, स्थानीय स्तर पर निर्मित कंटेनर के उपयोग को प्रोत्साहित करके और माल परिवहन के लिए भारतीय निर्यात कंपनियों के उपयोग को बढ़ाकर वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधान के अपने जोखिम को कम कर सकता है।” साल 2022 और 2024 के बीच, 40-फुट कंटेनर के लिए निर्यात दरों में काफी उतार-चढ़ाव आया है। जीटीआरआई ने कहा कि 2022 में, कोविड महामारी के प्रभाव के कारण औसत लागत 4,942 डॉलर थी, जबकि 2024 तक दर 4,775 डॉलर के आसपास स्थिर हो गई थी। इसने कहा कि ये दरें अब भी महामारी-पूर्व के स्तर से काफी अधिक हैं। 2019 में यह लागत 1,420 डॉलर थी। श्रीवास्तव ने कहा, “उच्च माल ढुलाई दरें आपूर्ति शृंखला की लगातार चुनौतियों को दर्शाती हैं, जो वैश्विक व्यापार पर बोझ बनी हुई हैं।” उन्होंने कहा कि चीन द्वारा अमेरिका और यूरोप को अपने निर्यात को अधिकतम करने के लिए कंटेनर की जमाखोरी करने की अपुष्ट खबरें मिली हैं।
आशंका है कि संभावित व्यापार प्रतिबंधों और चीन या अन्यत्र (जैसे कि आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन) देशों में स्थित चीनी कंपनियों द्वारा निर्मित सौर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन, इस्पात और एल्युमीनियम पर शुल्कों में वृद्धि से पहले ये जमाखोरी की गई है।
हालांकि, श्रीवास्तव ने कहा कि वास्तविक कंटेनर की कमी का मुद्दा संभवत: जानबूझकर भंडारण करने के बजाय बंदरगाहों पर भीड़भाड़ और लाल सागर में व्यवधान जैसी व्यापक लॉजिस्टिक्स खामियों से उत्पन्न हुआ है
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