Monday, December 8, 2025 |
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अमरीका को निर्यात बढ़ाने के लिए मिले ‘कर’ प्रोत्साहन

निर्यातकों ने केंद्रीय बजट 2025-26 से पहले मार्केटिंग योजना और आरएंडडी पर कर छूट की अपील

by Business Remedies
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3 साल में 25 अरब डॉलर अतिरिक्त निर्यात का लक्ष्य

बिजऩेस रेमेडीज/जयपुर। केंद्रीय बजट 2025-26 के पहले निर्यातकों ने अभी कुछ दिन पहले वित्त मंत्रालय से अमरीका को केंद्र में रख कर 750 करोड़ रुपए की मार्केटिंग योजना को मंजूरी दिए जाने की अपील की है। इससे अमरीका को अगले 3 साल में करीब 25 अरब डॉलर के अतिरिक्त निर्यात का मौका मिलेगा।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के मुताबिक अमरीका ने चीन पर उच्च शुल्क लगाने का संकेत दिया है। इससे भारत के निर्यातकों को उल्लेखनीय अवसर मिल सकता है। फियो के मुताबिक जिन क्षेत्रों में पहले चीन प्रमुखता से निर्यात करता था, उनमें भारत अपना निर्यात बढ़ा सकता है।

ऐसे क्षेत्रों में भारत बढ़ा सकता है निर्यात : ऐसे क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल उपकरण, फुटवीयर, टेक्सटाइल और गार्मेंट्स, फर्नीचर और घर सजावटी सामान, वाहनों के कल पुर्जे, खिलौने और रसायन शामिल हैं। निर्यातकों के शीर्ष संगठन ने कहा कि इनमें सबसे ज्यादा फायदा कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे मोबाइल फोन, टेलीविजन, बिजली के उपकरण, कल पुर्जे में हो सकता है और इन क्षेत्रों में 10 अरब डॉलर का अतिरिक्त निर्यात हो सकता है।

हमें अपनी मौजूदगी बढ़ाने की जरूरत : फियो के अध्यक्ष अश्वनी कुमार ने कहा, ‘इसके लिए अमरीका में हमें अपनी मौजूदगी बढ़ाने की जरूरत है। इसमें बड़ी संख्या में प्रदर्शनियों में भाग लेना, खरीदार और विक्रेता बैठकें करना और खुदरा विक्रेताओं के बड़े स्थानीय संघों के साथ गठजोड़ करना शामिल है। प्रतिवर्ष 250 करोड़ रुपए की पूंजी (कुल मिलाकर 750 करोड़ रुपए) से अमरीका पर केंद्रित मार्केटिंग की योजना लाने की जरूरत है। इससे 3 साल के अंत तक 25 अरब डॉलर का अतिरिक्त निर्यात किया जा सके।’

व्यय पर कर छूट की मांग : निर्यात को सतत बनाए रखने के लिए शोध एवं विकास (आरएंडडी) और नवोन्मेषी उत्पाद जरूरी हैं। इसे देखते हुए फियो ने सरकार से आरएंडडी पर होने वाले व्यय पर कर की छूट दिए जाने की मांग की है। बजट के पहले वित्त मंत्री और नॉर्थ ब्लॉक में स्थित वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ हुई बैठक के दौरान निर्यातकों ने निर्यात को बढ़ावा देने वाली योजनाओं में निरंतरता की मांग की है। इसमें से दिसंबर एंड तक के लिए ब्याज इक्वलाइजेशन (आईईएस) की सुविधा, कुछ निर्यात वस्तुओं के मार्केटिंग और ट्रेड प्रमोशन के लिए अतिरिक्त धन की योजना, एमएसएमई विनिर्माण इकाइयों के लिए आयकर से राहत व अन्य योजनाएं शामिल हैं।
निर्यात पर अमरीका केंद्रित फोकस : चीन पर उच्च टैरिफ लगाने का अमरीका का इरादा भारतीय निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर पैदा कर सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां चीन पहले एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है। हमारे अध्ययन के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल्स, ऑटोमोटिव पाट्र्स और कंपोनेंट, ऑर्गेनिक केमिकल्स, परिधान और कपड़ा, फुटवियर, फर्नीचर और होम डेकोर, खिलौने आदि जैसे क्षेत्रों में टैरिफ युद्ध के कारण हमें लगभग 25 बिलियन अमरीकी डॉलर का अतिरिक्त निर्यात मिल सकता है। इसके लिए हमें बड़ी संख्या में प्रदर्शनियों में प्रदर्शन करके, क्रेता-विक्रेता बैठकों में भाग लेकर और सरकार के सक्रिय समर्थन के साथ अमरीका में खुदरा विक्रेताओं और वितरकों के बड़े स्थानीय संघों के साथ गठजोड़ करके अमरीका में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की आवश्यकता है। तीन वर्षों के लिए प्रति वर्ष 250 करोड़ रुपए (कुल 750 करोड़ रुपये) के कोष के साथ अमरीका पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक विपणन योजना शुरू की जा सकती है, जिससे तीन वर्षों के अंत तक 25 बिलियन अमरीकी डॉलर का अतिरिक्त निर्यात हो सके।

उद्योग को अनुसंधान एवं विकास सहायता : निर्यात को बनाए रखने के लिए अनुसंधान एवं विकास और उत्पाद नवाचार महत्वपूर्ण हैं। हमारे प्रतिस्पर्धियों की तुलना में हमारा अनुसंधान एवं विकास खर्च बहुत कम है। वैश्विक स्तर पर अनुसंधान एवं विकास को कर छूट या कर कटौती के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाता है। 38 में से 35 ओईसीडी देश भारी अनिश्चितता और लंबी अवधि के मद्देनजर अनुसंधान एवं विकास खर्च को कर सहायता प्रदान करते हैं। अनुसंधान एवं विकास लगभग सभी क्षेत्रों के लिए आवश्यक है, लेकिन निर्यात के उभरते क्षेत्रों के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण है, जो निर्यात के नए संचालक होंगे। हमने अनुरोध किया कि आयकर अधिनियम की धारा 35 (2 एबी) के तहत आरएंडडी खर्च के लिए 200 प्रतिशत से 250 प्रतिशत की कर कटौती प्रदान की जाए।

शिपिंग लाइन के साथ भारत को आत्मनिर्भर बनाएं : सरकार के विभिन्न प्रमुख कार्यक्रमों के तहत भारत कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बन रहा है। भारत में कंटेनर निर्माण की शुरुआत ने कंटेनर शुल्क को काफी हद तक स्थिर कर दिया है। हालांकि, हमारा अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विदेशी शिपिंग लाइनों के माध्यम से होता है और हमारे एमएसएमई निर्यातक उनकी दया पर निर्भर रहते हैं। हम सालाना परिवहन सेवा शुल्क के रूप में 100 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक भेज रहे हैं और शिपिंग भाड़ा इसका एक बड़ा हिस्सा है।

विदेशी बैंक शुल्कों पर निर्यातकों पर जीएसटी देयता और ऐसे शुल्कों से संबंधित वापसी : यह मुद्दा बजट से संबंधित नहीं है, लेकिन हम इसे सरकार के संज्ञान में ला रहे हैं। बड़ी संख्या में निर्यातकों को विदेशी बैंक शुल्कों पर जीएसटी देयता के बारे में नोटिस मिल रहे हैं, जिसके बारे में फिटमेंट कमेटी ने स्पष्ट किया है कि यह बैंक पर लगाया जाना है और बैंक इसका आईटीसी दावा कर सकते हैं। जीएसटी परिषद ने भी इसका संज्ञान लिया। हालांकि, चूंकि कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं किया गया है, इसलिए जीएसटी अधिकारी निर्यातकों को नोटिस जारी कर रहे हैं।

इसी तरह, विदेशी बैंक शुल्कों के कारण 100-150 अमरीकी डॉलर की कमी पर, सीमा शुल्क नोटिस जारी कर रहा है क्योंकि बैंक शुल्क का अलग से उल्लेख नहीं किया गया है। ऐसी कमी पर वापसी आम तौर पर 500-1000 रुपए के बीच होती है। निर्यातकों और सरकार दोनों के लिए कागजी कार्रवाई और प्रशासनिक लागत इससे कहीं अधिक है।

चीन पर उच्च टैरिफ लगाने का इरादा रखने वाला अमरीका भारतीय निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर पैदा कर सकता है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां चीन पहले एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है। समय की मांग है कि स्थिति पर प्रतिक्रिया करने के बजाय सक्रिय रूप से अवसर का उपयोग किया जाए। सरकार को यूएसटीआर आदि जैसे प्रमुख अमरीकी संगठनों के साथ मिलकर इस प्रयास में उद्योग के साथ हाथ मिलाना चाहिए। भारत, अपनी बढ़ती विनिर्माण क्षमता को प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना और विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धी लाभ के कारण वैकल्पिक उत्पादों के साथ अमरीकी बाजार को लक्षित करके इन परिवर्तनों का लाभ उठा सकता है। बेहतर विपणन रणनीतियों और संघों के साथ, भारत इस अवसर का लाभ उठाने के लिए काम कर सकता है।
भूपिंदर सिंह, अध्यक्ष, फियो राजस्थान



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