आजादी के काफी वर्षों बाद भी देश में महिलाओं का शारीरिक एवं मानसिक उत्पीडऩ लगातार हो रहे है। जब तक कोई इतनी गंभीर और जघन्य हिंसक घटना न हो जाए जिसमें किसी पीडि़ता की मौत या वह बुरी तरह घायल न हो जाए तब तक लोगों का ध्यान उस घटना की ओर नहीं जाता। एक बात यह भी है कि इस तरह की अमानवीय घटनाओं के मामले में राजनीतिक फायदे के लिए आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला हमेशा जारी रहता है। आरोपियों को बचाने के लिए किसी तरह से मामला लटकाने की कोशिश की जाती है। इस का परिणाम यह होता है कि सबूत गायब हो जाते हैं और मामले कमजोर पड़ जाते हैं। आखिर हमारे समाज में हिंसा की इतनी अधिक भावना आई कहां से? क्यों ऐसा है कि एक छोटी बच्ची से लेकर बड़ी आयु की महिला तक के साथ इस प्रकार की दरिंदगी की जा रही है। इसका कारण यह है कि हमारा समाज पितृ प्रधान बन गया है। इसमें पुरुष जो चाहते हैं, वही होता है। कामकाजी महिलाओं के बारे में हमारे समाज में यही समझा जाता है कि वे 2-4 वर्ष काम करने के बाद शादी करके घर पर बैठ जाएंगी। एक बंधी-बंधाई विचारधारा-सी बन गई है जिसमें हमारा समाज महिलाओं को समानता का अधिकार नहीं देना चाहता। वास्तव में महिलाओं का शोषण घर से ही शुरू होता है। पढ़ाई-लिखाई, अधिक स्वतंत्रता तो दूर की बात है अपने शरीर, समय और विरासत पर भी कोई अधिकार समाज उसे नहीं देना चाहता। इस तरह के हालात में उचित रूप से यह पूछा जा सकता है कि इस समय कोलकाता के सरकारी कॉलेज में बलात्कार की शिकार डॉक्टर युवती के पक्ष में प्रदर्शन करने वाले पुरुष और महिलाओं के साथ ममता बनर्जी प्रदर्शन क्यों कर रही हैं? सरकार भी उनकी, पुलिस भी उनकी तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? प्रश्न यह भी है कि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मामले में पुलिस क्यों हमेशा लाचार हो जाती है? इतनी बड़ी घटना होने के बाद सबूत मिटाने के लिए इतनी बड़ी संख्या में भीड़ हमला करने आ गई और उसे रोकने के लिए पुलिस ने कोई इंंतजाम नहीं किया। यही कहा जा सकता है कि हमारा सिस्टम ही सबूत नष्टï करके, मामले को दबा कर या लटका कर वास्तविकता पर पर्दा डालने की कोशिश करता है क्योंकि हमारी मानसिकता ही ऐसी बन चुकी है, जिसमें हम महिलाओं को समानता का अधिकार देना नहीं चाहते।
छोटी बच्ची से लेकर बड़ी आयु की महिला तक के साथ आखिरकार दरिंदगी क्यों?
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