जहां कभी भारत और बंगलादेश के संबंध बेहद करीबी रिश्ते हुआ करते थे, लेकिन इस वर्ष ही बंगलादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनने के बाद वहां हिन्दुओं तथा अन्य अल्पसंख्यकों को मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन लगातार निशाना बना रहे हैं। यह भारत के लिए चिंता का विषय है। वहां हिन्दुओं को सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र देने को मजबूर करने के अलावा नौकरी से निकाला भी जा रहा है और उनके विरुद्ध केस बनाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं से बंगलादेश के प्रति अपनी वफादारी साबित करने के लिए कहा जा रहा है और इसके लिए सभी मंदिरों पर भारत विरोधी बैनर लगाने की मांग भी की गई है। अभी तक वहां साम्प्रदायिक हिंसा की 2000 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें काफी संख्या में लोग मारे जा चुके हैं। वहीं धार्मिक संस्था इस्कॉन के बंगलादेश स्थित 2 प्रमुख धार्मिक नेताओं को गिरफ्तार करके उनके विरुद्ध देशद्रोह का मामला दर्ज करने के साथ-साथ ‘इस्कॉन’ के 17 बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए हैं। इसी बीच वहां की अंतरिम सरकार की पाकिस्तान से नजदीकियां भी बढऩे लगी हैं। 1971 में बंगलादेश बनने के बाद इस वर्ष नवम्बर, 2024 में पहली बार पाकिस्तान का एक मालवाहक जहाज कराची से चटगांव बंदरगाह पर पहुंचा। यही नहीं, अब तो पाकिस्तान विरोधी आंदोलन के जन्म स्थान ढाका यूनिवॢसटी में पाकिस्तानी छात्रों को भी प्रवेश की अनुमति दे दी गई है। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान सरकार ने भी बंगलादेश के नागरिकों के लिए वीजा प्राप्त करने की प्रक्रिया आसान बना दी है। शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद पाकिस्तान और बंगलादेश की निकटता कई स्तरों पर बढ़ रही है। बंगलादेश अपनी स्थापना के बाद 2011 में शेख हसीना की सरकार द्वारा अपनाए गए धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को भी तिलांजलि देने जा रहा है तथा अटार्नी जनरल मो. असदुज्जमां ने संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने व शेख मुजीबुर्रहमान का राष्ट्रपिता का दर्जा समाप्त करने की मांग भी की है। कुल मिलाकर बंगलादेश में हिन्दू समुदाय के लोगों पर हमले, हत्याएं, धार्मिक स्थानों पर तोड़-फोड़ तथा अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध अन्य हिंसक घटनाओं को लेकर विश्व समुदाय द्वारा गंभीर चिंता व्यक्त की जा रही है।
भारत-बंगलादेश के लगातार बिगड़ते रिश्ते
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