बढ़ती दवाईयों की कीमतों की मार झेल रहे लोगों को जल्द इससे छुटकारा मिल सकेगा। अब वह दिन दूर नहीं जब महंगी दवाईयों की कीमतों में कमी आ सकेगी। कई गरीब लोग बढ़ती दवाईयों की कीमतों के कारण अपना बेहतर उपचार नहीं करवा पाते हैं। ऐसे में पिछले दिनों ही चीन में एक्टिव फार्मास्युटिकल इंडीग्रिएंट्स यानी एपीआई की कीमतों में गिरावट के बाद भारत में दवाएं सस्ती हो सकेंगी। एपीआई के सस्ता होने से जेनेरिक दवा बनाने वाली कंपनियों का मैन्युफैक्चरिंग का खर्च कम होने की संभावना है, जिससे दवाओं की कीमतें कम हो जाएंगी। एपीआई की कीमतों में कम से कम 35-40 फीसदी की गिरावट आई है और आने वाले महीनों में इसमें और गिरावट की उम्मीद है। चीन में एपीआई की कीमतें कम होने से भारतीय दवा निर्माताओं को सस्ते दरों पर कच्चा माल मिलेगा। एपीआई की कीमतें कम होने से दवाइयों की उत्पादन लागत कम होगी, उत्पादन लागत कम होने से दवा निर्माता दवाइयों की कीमतें कम कर सकते हैं। पैरासिटामोल की कीमतें 900 रुपए प्रति किलो से घटकर 250 रुपए प्रति किलो हो गई हैं। एमोक्सिसिलिन की दरें 3200 रुपए प्रति किलो से घटकर 1800 रुपए प्रति किलो हो गई हैं। क्लैवुलानेट की कीमतें 21000 रुपए प्रति किलो से घटकर 14500 रुपए प्रति किलो हो गई हैं। चीन में एपीआई की कीमतें कम होने से भारतीय दवा निर्माताओं को फायदा होगा और दवाइयों की कीमतें कम होंगी। इसके अलावा चीन से आयात होने वाले एपीआई पर भारत की निर्भरता एक चुनौती है, लेकिन सरकार की पहल से भारत अपनी एपीआई उत्पादन क्षमता बढ़ा सकता है। वैसे तो चीन में कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव चुनौतियां पेश करते हैं, पर भारत की पीएलआई, बल्क ड्रग पार्क और आरएंडडी इंसेंटिव जैसी पहलों का उद्देश्य अपने एपीआई सेक्टर को मजबूत करना और लॉन्गटर्म बेस पर एक्सपोर्ट कंप्टीटिवनेस को बढ़ावा देना है।

