भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने तथाकथित ‘स्पेशलाइज्ड इन्वेस्टमेंट फंड्स’ या एसआईएफ को अधिसूचित किया है और कुछ माह पहले परिकल्पित इस नए परिसंपत्ति वर्ग के नियम कायदों को स्पष्ट किया है। एसआईएफ को इस तरह डिजाइन किया गया है ताकि एक पोर्टफोलियो प्रबंधन योजना (पीएमएस) और सामान्य म्युचुअल फंड्स (एमएफ) के बीच निवेश का विकल्प मिल सके।
परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां (एएमसी) इनका उपयोग उन निवेशकों को उच्च जोखिम, उच्च प्रतिफल वाली ट्रेडिंग रणनीतियां पेश करने में कर सकती हैं, जिनमें जोखिम उठाने की और वित्तीय क्षमता होती है। इसमें न्यूनतम निवेश मूल्य 10 लाख रुपये रखा गया है, जो पीएमएस की न्यूनतम 50 लाख रुपये की राशि से कम है, हालांकि अधिमान्य निवेशक कम राशि का निवेश भी कर सकते हैं।
इन योजनाओं को पेश करने वाली एएमसी को मुख्य निवेश अधिकारियों की नियुक्ति करनी होगी, जिनके पास कम से कम 5,000 करोड़ रुपये की परिसंपत्ति के प्रबंधन का न्यूनतम 10 साल का अनुभव हो। इसके अतिरिक्त ऐसे फंड प्रबंधक होने चाहिए जिनके पास कम से कम 3,000 करोड़ रुपये के प्रबंधन का न्यूनतम सात वर्ष का अनुभव हो। एएमसी को खुद कम से कम तीन साल से परिचालित होना चाहिए और उसके पास 10,000 करोड़ रुपये की परिसंपत्ति होनी चाहिए।
नियामक ने निवेश के लिए कुछ नियम कायदे बनाए हैं। यह नई उत्पाद श्रृंखला ओपन एंडेड (एकमुश्त या व्यवस्थित योजना के तहत निवेश), क्लोज एंडेड (पूर्व निर्धारित संख्या में निवेश) और इंटरवल निवेश (पहले से तय अवधि में ही खरीद बिक्री) रणनीतियों की पेशकश करेगी। सेबी इनकी सूची बाद में जारी करेगा। अधिसूचना के जरिये चुनिंदा सीमाएं भी तय की गई हैं। कोई भी एसआईएफ एक जारीकर्ता द्वारा जारी डेट योजनाओं में अपने शुद्ध परिसंपत्ति मूल्य (एनएवी) के 20 फीसदी से अधिक का आवंटन नहीं कर सकते।
बहरहाल 20 फीसदी के इस नियम को उस स्थिति में शिथिल किया जा सकता है जब एसआईएफ सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करे। बोर्ड के ट्रस्टियों और एएमसी के निदेशक मंडल की पूर्व मंजूरी के साथ इस सीमा को 25 फीसदी तक किया जा सकता है। इसके अलावा एसआईएफ कंपनी की चुकता पूंजी का 15 फीसदी से अधिक हिस्सा बिना मताधिकार के निवेश नहीं कर सकती।
स्पेशलाइज्ड इन्वेस्टमेंट फंड्स
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