Tuesday, January 14, 2025 |
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साइबर धोखाधड़ी: टेलीकॉम और बैंकों की लापरवाही से जनता पर बढ़ रहा है संकट!

by Business Remedies
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आज के समय में डिजिटल तकनीक ने हमारी जिंदगी को बेहद आसान बना दिया है। हर काम, चाहे बैंकिंग हो, व्यापार हो या व्यक्तिगत संवाद, अब आसानी से ऑनलाइन किया जा सकता है। परंतु इसी डिजिटल दुनिया के साथ साइबर अपराधों का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। एक प्रमुख कारण है कि साइबर अपराधियों के लिए मोबाइल सिम कार्ड और बैंक खातों की आसानी से उपलब्धता, जिनका गलत उपयोग करना उनके लिए बेहद सरल हो गया है। नतीजा यह है कि इससे आम नागरिकों और बैंकिंग व्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
साइबर अपराध की वर्तमान स्थिति
पिछले कुछ वर्षों में साइबर अपराध के मामलों में भारी वृद्धि देखी गई है। 2024 में भारत में प्रतिदिन औसतन 7,000 से अधिक साइबर अपराधों की शिकायतें दर्ज की जा रही हैं। यह पिछले वर्षों की तुलना में लगभग 60.9% की वृद्धि को दर्शाता है, जो कि एक गंभीर समस्या है। साइबर अपराध की घटनाओं में बैंकिंग धोखाधड़ी के मामलों का बड़ा हिस्सा है। भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023.24 में बैंकिंग धोखाधड़ी के 36,075 मामले सामने आए। यह संख्या पिछले वर्ष के 13,564 मामलों की तुलना में लगभग तीन गुना है।
इन धोखाधड़ी के मामलों में वित्तीय नुकसान भी बहुत अधिक है। इस वर्ष धोखाधड़ी से जुड़ी कुल राशि रु. 13,930 करोड़ थी। हालांकि यह पिछले वर्ष के रु. 26,127 करोड़ से कम है, लेकिन यह आंकड़ा अभी भी बहुत ज्यादा है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सिमकार्ड की आसान उपलब्धता: अपराधियों का बड़ा हथियार
मोबाइल सिम कार्ड का दुरुपयोग साइबर अपराधियों के लिए बेहद आसान हो गया है। आजकल सिम कार्ड पाना बहुत आसान है और कई बार सिम कार्ड के लिए दिए जाने वाले दस्तावेज़ों की जांच सही तरीके से नहीं की जाती है। यहां यह अक्सर देखा गया है कि जितने भी मोबाइल ऑपरेटर कंपनियों है उनका अपने एजेंट को ऊपर भी अधिक से अधिक कनेक्शंस और सिम कार्र्ड बेचने का दबाव रहता है और उस वजह से अपराधी किस्म के लोग एक राज्य में या एक जिले से किसी और राज्य से भी सिमकार्ड को लाकर के किसी दूसरे राज्य में उसका दुरुपयोग करते हैं और उनका शुरू से ही मंशा यह रहती है कि सिम कार्र्ड लिया जाए और उसे अपराधियों का हवाले कर दिया जाए, क्योंकि सिमकार्ड का उपयोग अगर यह देखा जाए तो जेल के अंदर से आतंकवाद और क्राइम चलाने में भी किया जाता है, इसके कारण अपराधी फर्जी पहचान का उपयोग करके सिम कार्ड प्राप्त कर लेते हैं और उनका इस्तेमाल धोखाधड़ी और अन्य गैर कानूनी कार्यों में करते हैं।
बैंकों और टेलीकॉम कंपनियों की जिम्मेदारियां: साइबर अपराधों के बढ़ते मामलों को देखते हुए बैंकों और टेलीकॉम कंपनियों की जिम्मेदारी और अधिक बढ ज़ाती है। सिमकार्ड और बैंक खातों की आसान उपलब्धता के कारण साइबर अपराधियों के लिए धोखाधड़ी करना आसान हो गया है। इसलिए, टेलीकॉम कंपनियों और बैंकों को अपने कार्यों में अधिक पारदर्शिता और सख्ती बरतने की आवश्यकता है।
सिम कार्ड आवंटन में कड़ी KYC प्रक्रिया: सिमकार्ड जारी करते समय ग्राहक की पहचान की पूरी तरह से पुष्टि करना आवश्यक है। कई बार फर्जी पहचान पत्रों का उपयोग कर सिम कार्ड प्राप्त किए जाते हैं, जो साइबर अपराधों में मददगार साबित होते हैं। इसके लिए आधार कार्ड, पैनकार्ड या अन्य सरकारी दस्तावेज़ों का सख्ती से सत्यापन किया जाना चाहिए।
सिम कार्ड की सीमा और निगरानी: टेलीकॉम कंपनियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक आधार कार्ड या अन्य पहचान पत्र के आधार पर अधिकतम 6 सिमकार्ड से अधिक जारी न हो। और यह भी आवश्यक रूप से जांच लें कि वह सभी जो सिमकार्डों के नंबर रोजाना काम में आ रहे हैं और उनका कोई दुरुपयोग टेली मार्केटिंग या अन्य प्रकार की आतंकवादी और अपराधिक गतिविधियों में ना हो रहा हो। यदि कोई व्यक्ति6 से अधिक सिम कार्ड रखने की कोशिश करता है, तो उस पर गहन जांच की जाए। इससे सिम कार्ड के दुरुपयोग को रोका जा सकेगा और अपराधियों के लिए फर्जी पहचान का उपयोग करना कठिन हो जाएगा।
बैंकों की जिम्मेदारियां
री-केवाईसी और खाता धारक की पहचान: बैंकों को सभी बचत खातों की समय-समय पर केवाईसी प्रक्रिया को अपडेट करने की आवश्यकता है। खाताधारक के पते, पहचान, उसके आय के स्रोत एवं खाता खोलने का उद्देश्य भी बैंक को जानना चाहिए और उसको रिकॉर्ड पर लेना चाहिए और अन्य व्यक्तिगत जानकारी को सही तरीके से अपडेट करना आवश्यक है, ताकि फर्जी खातों की पहचान की जा सके। इसके साथ ही बैंक कर्मचारी, जिन्होंने ये खाते खोले हैं, उनकी भी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।
संदिग्ध ट्रांजैक्शन की निगरानी: आरबीआई के नियमों के अनुसार, रु. 50,000 से अधिक की नकद जमा या निकासी होने पर तुरंत उस खाते की जांच की जानी चाहिए। इसके अलावा, महीने में रु.1,00,000 से अधिक एवं 1 वर्ष में 10 लख रुपए तक का ही ट्रांजैक्शन आरबीआई के द्वारा अधिकृत है इससे ज्यादा का ट्रांजेक्शन होने पर खाताधारक से संपर्क किया जाना चाहिए और ट्रांजैक्शन की सत्यता की पुष्टि की जानी चाहिए। इससे साइबर अपराधों को रोकने में मदद मिलेगी।
बैंक कर्मचारियों की जवाबदेही: बैंकों को अपने कर्मचारियों की निगरानी भी करनी चाहिए, विशेषकर उन कर्मचारियों की जो अस्थायी या ठेके पर कार्यरत हैं। कई बार ये कर्मचारी अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए छोटे खाताधारकों को आकर्षक प्रस्ताव देते हैं, जिससे बैंकिंग धोखाधड़ी का खतरा बढ़ जाता है। अगर किसी खाते में गड़बड़ी पाई जाती है, तो खाते को खोलने वाले कर्मचारी और उस दिन कंप्यूटर पर कार्यरत कर्मचारी पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
रियल-टाइम ट्रांजेक्शन मॉनिटरिंग: बैंकों को रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करना चाहिए, ताकि किसी भी बड़े ट्रांजेक्शन पर तुरंत ध्यान दिया जा सके। इसके अलावा ऐसी सभी संदिग्ध वित्तीय गतिविधियों की सूचना आरबीआई और आयकर विभाग को दी जानी चाहिए, ताकि किसी भी अवैध लेन-देन पर तत्काल कार्रवाई की जा सके।
कर्मचारी दंड नीति: यदि किसी बैंक कर्मचारी की संलिप्तता फर्जी खातों या साइबर अपराधों में पाई जाती है, तो उसे कम से कम 2 से 5 साल तक बैंकिंग क्षेत्र से निलंबित कर दिया जाए और उसकी पहचान को वित्तीय संस्थानों से ब्लैक लिस्ट कर दिया जाए। यह सख्त नीति बैंकों की जिम्मेदारी को सुनिश्चित करेगी और कर्मचारियों के बीच अधिक अनुशासन बनाए रखेगी।
अगर किसी खाते में अनियमितता पाई जाती है, तो खाता खोलने वाले कर्मचारी और उस दिन कंप्यूटर पर काम कर रहे कर्मचारी के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाए। आरबीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी एब्नार्मल अमाउंट के खाते में जमा होने पर उसे तुरंत होल्ड पर रख दिया जाना चाहिए और खाताधारक से संपर्क करके यह मालूम करें कि यह पैसा उसके पास कहां से आया वह उसका स्रोत बताएं अन्यथा वह पूरी सूचना आयकर विभाग को तुरंत सूचित कर दें और पुलिस को सूचना कर दें क्योंकि एक सामान्य बचत खाते में इस तरह का बड़ा अमाउंट अगर आता है तो अपने आप ही शक के घेरे में आ जाता है और बैंक वालों के लिए यह मालूम करना बड़ा आसान काम है कि अमाउंट किसका आया और कहां से है। यह दोनों उनको मालूम पड़ जाता है और यह अमाउंट अगर 2 दिन के लिए भी होल्ड कर दिया जाए तो इसके साथ भी फ्रॉड हुआ है उसकी सूचना पुलिस के लिए बैंक तक पहुंच भी जाएगी और वह पैसा बैंक के खाते में ही जमा रह जाएगा
सरकार और
आरबीआई के कदम
ऑडिट और मॉनिटरिंग: भारत सरकार और आरबीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बैंकों और टेलीकॉम कंपनियों के द्वारा समय-समय पर ऑडिट किया जाए। इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि वे KYC प्रक्रिया और अन्य सुरक्षा मानकों का सही तरीके से पालन कर रहे हैं या नहीं। इसके अलावा साइबर अपराधों के मामलों में त्वरित कार्रवाई के लिए एक केंद्रीकृत कंट्रोल रूम का भी गठन किया जाना चाहिए।
साइबर अपराध से निपटने के लिए सरकारी कदम
भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक साइबर अपराधों को रोकने के लिए विभिन्न उपाय कर रहे हैं। साइबर सुरक्षा नीति 2020 के तहत डिजिटल सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। इसके अतिरिक्त साइबर पुलिस बलों का गठन भी किया गया है, ताकि साइबर अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सके।
हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद साइबर अपराधों की संख्या कम नहीं हो रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि सिमकार्ड और बैंक खातों की उपलब्धता में अभी भी पर्याप्त सख्ती नहीं बरती जा रही है।
भारत सरकार और आरबीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बैंकों और टेलीकॉम कंपनियों के द्वारा समय-समय पर ऑडिट किया जाए। इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि वे KYC प्रक्रिया और अन्य सुरक्षा मानकों का सही तरीके से पालन कर रहे हैं या नहीं। इसके अलावा साइबर अपराधों के मामलों मे ंत्वरित कार्रवाई के लिए एक केंद्रीकृत कंट्रोल रूम का भी गठन किया जाना चाहिए।
जागरूकता की आवश्यकता
साइबर अपराधों से बचने के लिए नागरिकों को भी जागरूक होने की जरूरत है। हमें अपने व्यक्तिगत डेटा को सुरक्षित रखना चाहिए और किसी अनजान व्यक्तिके साथ अपनी बैंकिंग जानकारी साझा करने से बचना चाहिए। साथ ही संदिग्ध कॉल या मैसेज से भी सतर्क रहना चाहिए।
बैंक और टेलीकॉम कंपनियों को भी अपने ग्राहकों को साइबर सुरक्षा के बारे में जानकारी देनी चाहिए और उन्हें सतर्क रहने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
निष्कर्ष
साइबर अपराध एक गंभीर समस्या बन चुकी है और इसके लिए मोबाइल सिमकार्ड और बैंक खातों की आसानी से उपलब्धता जिम्मेदार है। सरकार और आरबीआई को इस दिशा में कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। सिम कार्ड आवंटन प्रक्रिया में सख्ती और बैंक खातों में असामान्य लेन-देन पर सख्त निगरानी से इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
सुरक्षित डिजिटल भारत के लिए हमें सभी को मिलकर काम करना होगा। जागरूकता और सतर्कता ही इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं। यह न केवल हमारे देश के नागरिकों को सुरक्षित बनाएगा, बल्कि बैंकिंग और संचार व्यवस्था में भी विश्वास को बढ़ावा देगा।

सुनील दत्त गोयल, महानिदेशक, इम्पीरियल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री जयपुर, राजस्थान



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