उच्च शिक्षा की फंडिंग में सरकारी धन के उपयोग को लेकर बहस नई नहीं है। उच्च शिक्षा के अधिकांश लाभ जहां इसे हासिल करने वाले व्यक्ति को होते हैं, वहीं इसके कुछ बाहरी लाभ भी हैं, मसलन प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ, उच्च शोध एवं नवाचार और अर्थव्यवस्था में अधिक कुशल श्रम शक्ति की उपलब्धता।
उच्च शिक्षा में शामिल लागत को देखते हुए खासकर स्टेम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) पाठ्यक्रमों की तो छात्रों को अक्सर अधिक राशि चुकानी होती है। इस संदर्भ में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में पीएम विद्यालक्ष्मी योजना को मंजूरी दी है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए। 22 लाख से अधिक विद्यार्थियों को अपने दायरे में लेने वाली इस वित्तीय सहायता योजना के अंतर्गत उन प्रतिभाशाली और उत्कृष्ट विद्यार्थियों को शैक्षिक ऋण प्रदान किया जाएगा जिन्हें उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला मिला हो, लेकिन वे वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हों। शुरुआत में यह योजना देश के शीर्ष 860 गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा संस्थानों पर लागू होगी।
सेंट्रल सेक्टर ब्याज सब्सिडी (सीएसआईएस) और शैक्षणिक ऋण के लिए ऋण गारंटी फंड योजना (सीजीएफएसईएल) के पूरक के रूप में पीएम विद्यालक्ष्मी योजना स्थगन अवधि के दौरान 4.5 लाख रुपये तक की पारिवारिक आय वाले विद्यार्थियों को पूर्ण ब्याज अनुदान प्रदान करेगी। इसके अलावा 8 लाख रुपये तक की पारिवारिक आय वाले विद्यार्थियों को स्थगन अवधि के दौरान 10 लाख रुपये तक के ऋण के लिए 3 फीसदी की ब्याज सब्सिडी दी जाएगी। 7.5 लाख रुपये तक के ऋण की पात्रता रखने वाले विद्यार्थियों को बकाया देनदारी पर 75 फीसदी की ऋण गारंटी मिलेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि गारंटर मुक्त शिक्षा ऋण गरीब छात्रों को उच्च शिक्षा हासिल करने में मदद करेगा।
देश में शिक्षा ऋण का बाजार बीते कुछ वर्षों में काफी विकसित हुआ है। शिक्षा ऋण के तहत बकाया पोर्टफोलियो 2022-23 में 17 फीसदी बढक़र 96,847 करोड़ रुपये हो गया। बहरहाल देश के शिक्षा ऋण का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा विदेशों में पढ़ाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा 2022-23 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा वितरित कुल शिक्षा ऋण का करीब 8 फीसदी फंसे हुए कर्ज में तब्दील हो गया। यह बैंकिंग क्षेत्र के औसत फंसे हुए कर्ज से अधिक है। औसत डिफॉल्ट दर भी प्रमुख संस्थानों के छात्रों के शिक्षा ऋण की डिफॉल्ट दर से बहुत अधिक है।