भारत इस तथ्य से गौरवान्वित हो सकता है कि देश की कुल प्रजनन दर में गिरावट आई है और वह 1965 के प्रति महिला पांच बच्चों से कम होकर 2022 में 2.01 पर आ गई है। आपातकाल के दौर के 18 महीनों को छोड़ दिया जाए तो यह कमी नागरिक अधिकारों का किसी तरह दुरुपयोग किए बिना हासिल की गई है।
ध्यान रहे चीन में यह दर कम करने के लिए 36 वर्षों तक एक बच्चा पैदा करने की नीति लागू की गई थी। कुल प्रजनन दर में कमी दुनिया की दूसरी सबसे अधिक आबादी वाले देश के लिए पूरी तरह अच्छी खबर नहीं है, क्योंकि यह दर 2.1 की प्रतिस्थापन या रीप्लेसमेंट दर से कम हो गई है। रीप्लेसमेंट दर वह होती है जितने बच्चे हर महिला के हों तो देश में बुजुर्गोंऔर युवाओं की संख्या स्थिर बनी रहती है। लैंसेट के एक अध्ययन पर यकीन किया जाए तो 2050 तक देश की कुल प्रजनन दर 1.29 हो जाएगी। यानी भारत अमीर होने के पहले ही उम्रदराज हो सकता है। देश की जनांकिकी के इस भविष्य से निपटने के लिए कई तरीके अपनाए जा सकते हैं। जनसंख्या बढ़ाने को प्रोत्साहन देना वृद्धि को गति प्रदान करने की दृष्टि से सरल प्रतीत हो सकता है। कुछ स्कैंडिनेवियन (डेनमार्क, नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड आदि) और यूरोपीय देश दशकों से आबादी में कमी की समस्या से जूझ रहे हैं। वे परिवारों को चाइल्ड केयर प्रोत्साहन भी प्रदान करते हैं। परंतु इन देशों ने सामाजिक-आर्थिक प्रगति का एक स्तर और प्रशासनिक क्षमता हासिल कर ली है। भारत जैसे असमान देश में जहां कल्याणकारी योजनाओं की आपूर्ति असमान और गैर किफायती है, तीन बच्चे पैदा करने का नियम नुकसानदेह हो सकता है। आबादी में बेतहाशा वृद्धि उन सामाजिक लाभों को नुकसान पहुंचाएगी जो देश ने आजादी के बाद हासिल किए हैं। देश में महिलाओं की श्रम भागीदारी दर 37 फीसदी है और यह लंबे समय से चिंता का विषय रहा है। महिलाओं पर बोझ डालने से हालात में कोई सुधार होने वाला नहीं है। आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने स्थानीय निकाय के चुनाव लडऩे वालों के लिए दो बच्चों की सीमा समाप्त कर दी है और सरकार बड़े परिवारों को प्रोत्साहित करने पर विचार कर रही है। तेलंगाना भी उसका अनुसरण कर सकता है। दक्षिण भारत के राज्यों की चिंता जायज है कि जनसंख्या नियंत्रण के उनके प्रगतिशील कदम वित्त आयोग के आवंटन और संसदीय सीटों के परिसीमन में उनके खिलाफ जाएंगे। ये आशंकाएं पूरी तरह गलत नहीं हैं और इसे नीतिगत स्तर पर हल करने की आवश्यकता है, ताकि इन राज्यों का जननांकिकीय लाभ उत्तर भारत के गरीब और अधिक आबादी वाले राज्यों के लिए आदर्श बन सके।
देश की कुल प्रजनन दर में गिरावट
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