Thursday, January 16, 2025 |
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स्कूलों की संख्या में बढ़ोत्तरी, लेकिन नामांकन में कमी चिंतनीय

by Business Remedies
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punit jain

स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग की ओर से संचालित डेटा एग्रीगेशन प्लैटफॉर्म यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस की ताजा रिपोर्ट देश के स्कूली इन्फ्रास्ट्रक्चर में हुए सुधार के साथ ही उन अहम दिक्कतों की भी झलक देती है, जिन्हें दूर किया जाना बाकी है। रिपोर्ट में यह बात स्थापित होती है कि बुनियादी सुविधाओं की स्थिति बेहतर हुई है। करीब 90 प्रतिशत स्कूलों में बिजली और जेंडर स्पेसिफिक टॉयलेट जैसी सुविधाएं हैं। लेकिन अगर डिजिटल सुविधाओं की बात की जाए तो स्कूलों के बीच गहरी खाई दिखती है। मसलन, फंक्शनल कंप्यूटर महज 57.2% स्कूलों में उपलब्ध है और 53.9% स्कूलों के पास इंटरनेट ऐक्सेस है। हालांकि, इस मामले में पिछले वर्षों में हुई प्रगति का अंदाजा इस तथ्य से होता है कि 2021-22 की DISE प्लस रिपोर्ट के मुताबिक 66त्न स्कूलों में इंटरनेट कनेक्शन नहीं थे। स्कूल बढ़े, एनरोलमेंट घटा यह तथ्य भी गौर करने लायक है कि देश में पिछले साल के मुकाबले स्कूलों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन एनरोलमेंट में गिरावट देखी गई है। जहां स्कूलों की संख्या 14.66 लाख से बढक़र 14.71 लाख हो गई वहीं इनमें होने वाला स्टूडेंट्स एनरोलमेंट 25.17 करोड़ से घटकर 24.80 करोड़ हो गया। यह गिरावट कमोबेश सभी कैटिगरीज- लडक़े लड़कियां, ओबीसी, अल्पसंख्यक आदि में है। जहां तक ड्रॉपआउट यानी स्टूडेंट्स के स्कूल छोडऩे के मामलों की बात है तो इसमें सेकेंडरी स्टेज में होने वाली बढ़ोतरी ध्यान देने लायक है। मिडल स्कूलों में जो ड्रॉपआउट दर 5.2% है, वह सेंकेंडरी स्टेज में आकर 10.9% तक पहुंच जाती है। जानकारों के मुताबिक, इसके पीछे ओबीसी और एससी-एसटी कैटिगरी के स्टूडेंट्स को दाखिले के डॉक्युमेंटेशन प्रॉसेस के दौरान होने वाली मुश्किलों और प्री-मैट्रिक व पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप जैसी सुविधाओं की कमी का हाथ हो सकता है। एक और अहम पहलू है टीचर्स और स्टूडेंट्स के अनुपात यानी पीटीआर का। इस मामले में विभिन्न राज्यों के बीच अंतर विशेष रूप से ध्यान खींचता है। एक तरफ झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य हैं, जहां सेकेंडरी लेवल पर पीटीआर राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तय मानक यानी 30:1 से भी ज्यादा है तो दूसरी ओर असम, ओडिशा और कर्नाटक जैसे राज्य काफी पीछे नजर आते हैं। कुल मिलाकर, देश में स्कूली शिक्षा को बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों का असर दिखता है। लेकिन इस दौरान नई चुनौतियां भी उभर रही हैं, जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। यूनिवर्सल एजुकेशन के लक्ष्य को ध्यान में रखें तो ड्रॉपआउट के ट्रेंड्स और पीटीआर पर खास ध्यान देने की जरूरत है।



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