अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में अपनी दूसरी पारी की औपचारिक शुरुआत करने से पहले ही डॉनल्ड ट्रंप की धमकी भरी घोषणाओं से सनसनी फैला दी है। पिछले दिनों इन्होंने ब्रिक्स देशों के नाम धमकी भरे शब्दों में कहा था कि अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उसका कोई विकल्प लाने का प्रयास किया तो उन्हें अमेरिकी बाजार से हाथ धोना पड़ सकता है। ब्रिक्स में रूस और चीन जैसे फिलहाल अमेरिका विरोधी माने जाने वाले देश ही नहीं भारत, ब्राजील और साउथ अफ्रीका के साथ ही अब इजिप्ट, ईरान और यूएई भी हैं। ट्रंप का यह बयान ब्रिक्स देशों के अक्टूबर में हुए शिखर सम्मेलन का जवाब माना जा रहा है, जिसमें नॉन-डॉलर ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने पर चर्चा की गई थी। हालांकि सम्मेलन के आखिर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने साफ कर दिया था कि सिस्टम सोसाइटी फॉर वल्र्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशल टेलिकम्युनिकेशन जैसी वित्तीय संरचना का विकल्प खड़ा करने की दिशा में अब तक ठोस कुछ नहीं किया गया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि ब्रिक्स को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे उसकी छवि ऐसी बने कि वह वैश्विक संस्थानों की जगह लेना चाहता है। इसके बावजूद अगर ट्रंप इतने आशंकित हैं कि ब्रिक्स देशों से डॉलर का विकल्प खड़ा न करने की गारंटी मांग रहे हैं तो वह अकारण नहीं है। सच यह है कि समय-समय पर कई देशों ने नॉन-डॉलर ट्रांजेक्शन की गुंजाइश तलाशने का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रयास किया है। खासकर, अमेरिका ने जिस तरह से 2012 में ईरान और 2022 में रूस को स्विफट से बाहर करके अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन की इस व्यवस्था पर अपना दबदबा साबित किया, उसके बाद ऐसे प्रयासों की जरूरत ज्यादा महसूस की जाने लगी। बड़ा सवाल यह है कि क्या डॉनल्ड ट्रंप की यह धमकी सौदेबाजी के मकसद से दी गई है या वह 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद संभालने के बाद सचमुच इस पर अमल करने वाले हैं। अगर वह अपनी इस घोषणा को अमली जामा पहनाने पर अड़े रहे तो संभव है कि फायदे के बदले अमेरिकी अर्थव्यवस्था का और नुकसान करा बैठेंगे।
डॉनल्ड ट्रंप की धमकी भरी घोषणाओं से सनसनी
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