- कोयले से ग्रीन हाइड्रोजन तक, ऊर्जा क्षेत्र में नीति, निवेश और नवाचार में बदलाव
- 2047 तक आत्मनिर्भरता का लक्ष्य
बिजनेस रेमेडीज। देश की सबसे बड़ी ताप बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी ने गत माह अपनी नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी एनटीपीसी ग्रीन एनर्जी को देश के स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध करके स्वर्ण जयंती मनाई। इससे देश के ऊर्जा क्षेत्र में आ रहे बदलाव को समझा जा सकता है। तेल निर्यात और कोयला खनन से लेकर बड़े बांध बनाने तक और अब सोलर पैनल और बायो फ्यूल पर ध्यान केंद्रित करने तक देश के ऊर्जा क्षेत्र का सफर उसकी सामाजिक-आर्थिक प्रगति को भी दर्शाता है। विगत 25 वर्षोँ में देश की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ-साथ, ऊर्जा तक पहुंच की योजनाओं, नियामकीय ढांचों और निजी निवेश का उभार हुआ है तथा नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर भी बढ़ा है।
सौर ऊर्जा से गैर पारंपरिक ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति: सौर ऊर्जा या सोलर ऊर्जा का आज के समय में विशेष महत्व है। सौर ऊर्जा जो कि सूर्य की किरणें से प्राप्त ऊर्जा होती है, जो सीधे थर्मल या विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित की जाती है। सौर ऊर्जा नवीन व नवीनीकरण ऊर्जा के अंतर्गत आती है जो कि ऊर्जा के गैर परम्परागत स्त्रोत हैं, क्योकि सूर्य कभी न खत्म होने वाला ऊर्जा का स्त्रोत है, सौर ऊर्जा को फोटोवोल्टिक सेलों के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है।
जब सूर्य कि किरणे सीधे धरती पर पड़ती हैं तो इसका लाभ पेड़-पौधे, जीव, जंतुओं, मौसम व जलवायु को मिलता है, लेकिन वर्तमान समय में इसका उपयोग सौर ऊर्जा के रूप में किया जा रहा हैं। सूर्य की किरणों से सोलर पैनल के माध्यम से बिजली पैदा की जाती है। भारत का पहला सौर थर्मल पावर स्टेशन राजस्थान में हैं। भारत विश्व का एक ऐसा देश होगा जो इस तकनीक से विद्युत का व्यवसायिक उत्पादन कर रहा है।
सन 1839 में, सोलर एनर्जी की आविष्कार अलेक्जेंडर एडमंड बैकेरल ने किया था। ए.ई. बेकरेल ने फोटोवोल्टिक से होने वाले प्रभाव की खोज की थी, जो धातुओं में इलेक्ट्रॉन सिमुलेशन के जरिये प्रकाश के संपर्क मे आने से विद्युत चार्ज का निर्माण करता हैं। इसके बाद 19वीं शताब्दी के अंत में अलेक्जेंडर स्टोलेटोव ने फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव पर आधारित पहला सौर सेल विकसित किया गया था जिससे बिजली पैदा की जाती हैं।
सौर ऊर्जा के उपयोग : वर्तमान समय में, सौर ऊर्जा का उपयोग बहुत अधिक मात्रा में शहर व गांव दोनों जगहों में कर रहे है। आंध्रप्रदेश में सालिजिपट्टी भारत का पहला ऐसा गांव है जहां पूरा बिजली कनेक्शन सौर ऊर्जा से किया जा रहा है। वहीं जयपुर के सभी स्ट्रीट लाइट्स सौर ऊर्जा में ही आधारित है। अनुकूल भौगोलिक स्थिति को ध्यान रखें तो भारत में राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र में सौर ऊर्जा का विशेष लाभ उठाया जा सकता है।
सौर व पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता बढ़ी: सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि मार्च 2024 तक भारत की अक्षय ऊर्जा- मुख्य रूप से सौर व पवन ऊर्जा- की स्थापित क्षमता बढक़र 136 गीगावॉट हो चुकी है जबकि 2014 में यह आंकड़ा महज 35 गीगावॉट था। इसके बावजूद भारत की कुल बिजली आपूर्ति में अक्षय ऊर्जा का योगदान महज 12 फीसदी है। इसी प्रकार परमाणु ऊर्जा में 20 से 30 गीगावॉट क्षमता बढ़ाने के लिए पर्याप्त निवेश की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान उपलब्ध अक्षय ऊर्जा को प्रणाली में शामिल कर लिया गया है, लेकिन अब उसके पास क्षमता उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा, ‘अक्षय ऊर्जा को प्रणाली में शामिल करने के लिए पारेषण, ऊर्जा भंडारण और सौर ऊर्जा में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।’ भारत ने 2047 तक विकसित देश का दर्जा हासिल करने और 2070 तक शुद्ध रूप से शून्य कार्बन उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में ऊर्जा क्षेत्र का योगदान काफी महत्त्वपूर्ण होगा। पिछले 25 वर्षों के दौरान विनियमन में स्थिरता आ गई है, काफी वैश्विक निवेश हुए हैं और ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला का हर मोर्चा बदलाव के दौर से गुजर रहा है।
ऊर्जा के अन्य स्रोत
तेल क्षेत्र: देश के ऊर्जा परिदृश्य को समझने के लिए हमें 19वीं सदी के आखिरी चरण में जाना होगा जब एक अंग्रेज इंजीनियर ने असम में तेल क्षेत्रों की खोज की थी। कहा जाता है कि श्रमिकों को निरंतर खुदाई के लिए प्रेरित करने के लिए वह कहते थे। इसी कारण देश के पहले तेल उत्पादन वाले कस्बे का नाम डिगबोई पड़ा। हालांकि 1900 के दशक के मध्य के बाद ही ओएनजीसी तथा आईओसीएल, बीपीसीएल और एचपीसीएल आदि की स्थापना हुई। वर्ष 2000 के बाद से निजी और विदेशी भागीदारी और तकनीकी उन्नति के मामले में बहुत कुछ बदल गया। परंतु इस प्रगति को घरेलू उत्पादन में ठहराव, बढ़ते आयात और विदेशी विवादों के निरंतर खतरे से नुकसान पहुंचा और देश में ईंधन कीमतों में इजाफा हुआ। वर्ष 1999 में सरकार ने नई उत्खनन लाइसेंस नीति जारी की।
दो वर्ष बाद केयर्न एनर्जी ने राजस्थान के बाड़मेर में मंगला तेल क्षेत्र की खोज की जो धरती पर पाया गया दुनिया का सबसे बड़ा तेल क्षेत्र है। इससे पहले 1999 में आरआईएल ने गुजरात के जामनगर में 14 लाख बैरल प्रति दिन की क्षमता वाली दुनिया की सबसे बड़ी एकल रिफाइनरी शुरू की थी। केजी डी6 से उत्पादन कई गुना घट गया। इससे बाजार में उथल-पुथल मची। मंगला तेल क्षेत्र को अभी पूरी क्षमता से काम करना बाकी है। इसके परिणामस्वरूप भारत कच्चे तेल का विशुद्ध आयातक बना हुआ है। हमारा घरेलू उत्पादन तीन-चार करोड़ टन सालाना के साथ 2011 के स्तर के आसपास ही बना हुआ है।
काले सोने का उत्खनन: अगर सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक होमी भाभा का 1966 में महज 56 वर्ष की आयु में असमय निधन नहीं हुआ होता तो भारत शायद आज परमाणु ऊर्जा के मामले में बेहतर स्थिति में होता। भूराजनीतिक तनावों ने ध्यान को यूरेनियम से हटाकर घरेलू कोयले पर केंद्रित कर दिया और 1970 के दशक में एक ईंधन नीति समिति ने भी उस समय देश के पूर्वी हिस्से की कोयला खदानों में से अधिकांश पर निजी कारोबारियों का कब्जा था। आगे चलकर इनका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और कोल इंडिया लिमिटेड यानी सीआईएल की स्थापना हुई। इसके बाद ताप बिजली घरों का विस्तार हुआ और कोयले की ढुलाई भारतीय रेल का एक अहम काम बन गया।
बिजली क्षेत्र में बदलाव: पिछले कुछ वर्षों के दौरान बिजली क्षेत्र में काफी नियामक बदलाव हुए हैं। साल 2001 से 2003 के बीच बिजली अधिनियम को अंतिम रूप दिया गया था। उसके बाद अल्ट्रामेगा बिजली परियोजनाओं और पारेषण अनुबंधों के लिए प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी।’ उद्योग जगत की प्रमुख कंपनियों ने इस क्षेत्र में कदम रखा और बिजली उत्पादन, पारेषण एवं उपकरण निर्माण में निवेश किया।
अक्षय ऊर्जा पर जोर भी एक महत्त्वपूर्ण बदलाव है। पारंपरिक तौर पर भारत का बिजली क्षेत्र कोयले पर निर्भर रहा है जहां कुछ बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं संतुलन प्रदान करती हैं। गैस आधारित बिजली परियोजनाएं भी शुरू की गईं, लेकिन अधिक लागत होने के कारण ऐसी अधिकतर परियोजनाएं विफल रही हैं। अक्षय ऊर्जा क्षमता बढऩे के बावजूद उसे ग्रिड से जोडऩे की रफ्तार धीमी रही है। अक्षय ऊर्जा काफी हद तक मौसम पर निर्भर करती है और इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा अक्षय ऊर्जा का भंडारण भी काफी महंगा है। वित्तीय समस्या से जूझ रहीं बिजली वितरण कंपनियां भी अक्षय ऊर्जा सस्ती होने के बावजूद ताप विद्युत खरीदना पसंद करती हैं।
राजस्थान सोलर में नंबर एक है। सोलर का ही एक सेक्टर है रूफ टॉप सोलर, इसमें अभी राजस्थान थोड़ा पिछड़ा हुआ है। पहले जो सरकार व डिस्कॉम का सपोर्ट नहीं मिलता था। वह भी अब अच्छा खासा मिल रहा है। एसओपी आदि बन गए हैं। अभी रूफ टॉप में गुजरात नंबर एक है। आने वाले समय यानि डेढ़-दो साल में हम रूफ टॉप सोलर में भी नंबर बन होकर दिखाएंगे। हमारी केपिबलिटी व कंज्यूमर भी गुजरात की तरह ही हैं। अगर सरकार व डिस्कॉम का सपोर्ट ऐसे ही मिलता रहा तो हम रूफ टॉप में भी नंबर एक होंगे।
– अजय यादव, अध्यक्ष, राजस्थान अक्षय ऊर्जा संघ, (रियर)
राजस्थान में आने वाले एक साल में 10 हजार मेगावाट के और प्लांट लग जाएंगे। इसके अलावा प्रदेश में सोलर एनर्जी को स्टोर करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। यह कार्य पूर्ण होते ही यह एक प्रदेश में नए आयाम पर लेकर जाएगा। सरकार ने सोलर एनर्जी स्टोरेज की क्षमता को बढ़ाने के लिए टेंडर आदि करने शुरू कर दिए हैं। साथ डवलपर से निवेश आमंत्रित करना शुरू कर दिया है।
– प्रतीक अग्रवाल, मैनेजिंग डायरेक्ट, एट सोलर 91 क्लीनटेक लिमिटेड