पिछले लम्बे अरसे से लेबनान के हिजबुल्लाह और इसराईल के बीच सुलह-प्रयासों की चर्चा सुनाई दे रही थी, जो पिछले दिनों इसराईल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हिजबुल्लाह के साथ संघर्ष विराम की घोषणा के साथ पूरी हो गई। विश्व शांति की ओर यह कदम सराहनीय कहा जा सकता है। इससे दोनों पक्षों के बीच जारी टकराव फिलहाल थम जाने की आशा बंधी है। समझौते के अनुसार हिजबुल्लाह को दक्षिणी लेबनान में हथियार डालने होंगे तथा इसराईली सैनिकों को सीमा पर अपने क्षेत्र में लौटना होगा। इस फैसले को इसराईल की रणनीतिक प्राथमिकताओं का हिस्सा माना जा रहा है ताकि दीर्घकालिक शांति स्थापना के प्रयास किए जा सकें। इस समझौते की मध्यस्थता अमरीका और फ्रांस ने की थी। अमरीका के राष्ट्रपति ने भी समझौते की घोषणा के तुरंत बाद इसराईल और लेबनान के नेताओं से बात करते हुए कहा है कि युद्ध विराम स्थायी करने का प्रयास है। अमरीका आने वाले दिनों में तुर्की, मिस्र, कतर व इसराईल आदि के साथ मिल कर गाजा में युद्ध विराम तथा बंधकों की रिहाई के लिए काम करेगा। लेबनान के हिजबुल्लाह और इसराईल के बीच दुश्मनी बड़ी पुरानी है। वर्ष, 1982 में इसराईल ने लेबनान पर हमला करके बैरुत सहित दक्षिणी लेबनान पर कब्जा कर लिया था। इसमें लगभग 3000 फिलिस्तीनी शरणार्थी और लेबनानी नागरिक मारे गए थे। इस घटना के बाद ईरान की मदद से हिजबुल्लाह का उदय हुआ और तभी से इनमें शत्रुता भी चली आ रही है। गत वर्ष 7 अक्टूबर को इसराईल पर हमास के हमले के बाद से हिजबुल्लाह लगातार उत्तरी इसराईल को अपना निशाना बना रहा है। गाजा के हमास के बाद इसराईल को सर्वाधिक क्षति हिजबुल्लाह ने ही पहुंचाई है। इसी कारण हमास के बाद हिजबुल्लाह को इसराईल अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता है। इसराईल और लेबनान के बीच यह समझौता इसराईल तथा हमास के बीच 14 महीनों से जारी युद्ध समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। रूस और यूक्रेन आदि के बीच भी इसी प्रकार का समझौता होना बहुत जरूरी है, तभी बारूद के ढेर पर बैठी इस दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध के खतरे से मुक्ति मिल सकेगी।
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