Wednesday, October 16, 2024 |
Home » भारत को क्षेत्रीय एकीकरण की दिक्कत का करना होगा समाधान

भारत को क्षेत्रीय एकीकरण की दिक्कत का करना होगा समाधान

by Business Remedies
0 comments
punit jain

विश्व बैंक के भारत के विकास संबंधी अपडेट के ताजा संस्करण में इस बहुपक्षीय संस्था ने कहा है कि चुनौतीपूर्ण बाह्य परिस्थितियों के बावजूद, मध्यम अवधि में देश की वृद्धि अपेक्षाकृत मजबूत रहेगी। बैंक ने 2024-25 में सात फीसदी की वृद्धि दर का अनुमान जताया है, जो भारतीय रिजर्व बैंक के मौजूदा अनुमान से मामूली रूप से कम है, लेकिन कई बाजारों के अनुमानों से अधिक है। बीते एक दशक के दौरान टैरिफ और गैर टैरिफ गतिरोध में भी इजाफा हुआ है। विश्व बैंक ने इसका भी जिक्र किया है। परंतु दिक्कत यह है कि भारत को अभी भी अहम व्यापारिक सौदों को पूरा करना है। ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय मुक्त व्यापार महासंघ खासकर स्विट्जरलैंड और नॉर्वे के साथ हमारे समझौते अपेक्षाकृत हल्के हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट में खासतौर पर कहा गया है कि भारत को क्षेत्रीय एकीकरण की दिक्कत दूर करनी चाहिए। दक्षिण एशिया में हमारी स्थिति कुछ प्रकार के संचार को सीमित करती है क्योंकि हमें अपने पश्चिम में भूराजनीतिक तनावों से जूझना पड़ता है। परंतु भारत के पूर्व में होने वाला व्यापार एकीकरण भी सीमित है। भारत के विकास संबंधी अपडेट में यह बात खासतौर पर कही गई है कि भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी अर्थातï् आरसेप के लाभों की नए सिरे से समीक्षा करनी चाहिए। भारत ने आरसेप की वार्ताओं में वर्षों तक हिस्सा लिया, लेकिन आखिरी वक्त में वह इससे बाहर हो गया। भारत के रणनीतिकारों की दृष्टि से देखा जाए तो आरसेप के साथ जो दिक्कतें थीं वे जस की तस हैं। वह अभी भी चीन केंद्रित है और ऐसा कारोबारी नेटवर्क बनाता है जो चीन की शक्ति को बढ़ाता है। परंतु आर्थिक नजरिये से इस दलील का बचाव मुश्किल है। आरसेप के लगभग सभी सदस्य देशों के साथ भारत पहले ही व्यापार समझौते कर चुका है। वर्तमान आपूर्ति श्रृंखला की एकीकृत प्रकृति को देखते हुए उन देशों में बनने वाले उत्पादों में स्वाभाविक रूप से काफी अधिक चीनी मूल्यवर्धन शामिल होगा। विदेशी निवेशक आरसेप मूल्य श्रृंखला में शामिल होने को लेकर प्रसन्न हैं क्योंकि वे पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के विभिन्न देशों के बीच सहज अबाध व्यापार के लाभों को पहचानते हैं। भारत ने स्वैच्छिक रूप से इस व्यवस्था से अलग रहना ठाना, जबकि वियतनाम जैसे देश इससे लाभान्वित हो रहे हैं। अब लगता है कि जैसा कि विश्व बैंक ने भी कहा, बांग्लादेश जैसे मुल्क आरसेप तथा अन्य बहुलतावादी समझौतों के साथ अधिक जुड़ाव चाहेंगे। इससे भारत को और समस्या होगी। विश्व बैंक की व्यापक दलील यह है कि भारत को निरंतर व्यापार समझौतों को लेकर अपने रुख का पुनराकलन करते रहना चाहिए, जिसमें आरसेप भी शामिल है।



You may also like

Leave a Comment

Voice of Trade and Development

Copyright @ Singhvi publication Pvt Ltd. | All right reserved – Developed by IJS INFOTECH