भारत की अर्थव्यवस्था निरंतर बेहतर स्थिति में है। कोविड महामारी से पहले वित्त वर्ष, 2020 की तुलना में वित्त वर्ष 2024 में भारत की वास्तविक जीडीपी 20 प्रतिशत से अधिक रही है। बैंकिंग सैक्टर की बैलेंस शीट भी काफी सुधर चुकी है। इस वर्ष सकल जीएनपीए अनुपात के गिरकर 2.8 फीसदी पर आने से स्थिति में सुधार हुआ है। इसके बावजूद भारत की वित्तीय चुनौतियां कम नहीं हो रहीं। हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों में धीमी गति से जमा हो रही रकम पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा भी है कि बैंक अपनी ब्याज दरें तय करने को स्वतंत्र हैं। उन्हें ऐसी आकर्षक योजनाएं लेकर ग्राहकों तक पहुंचना चाहिए और ऐसा कुछ नया करना चाहिए ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा अपना धन बैंकों में जमा करा सकें। इस समय लोगों के पास बैंकों के अलावा निवेश के लिए कई अच्छे विकल्प मौजूद हैं। बैंकों में धन रखने के बजाय वे शेयर मार्केट और म्यूचल फंड को प्राथमिकता दे रहे हैं। जमा और उधार एक गाड़ी के दो पहिये हैं। इस समय जमा और उधार के बीच काफी असंतुलन बना हुआ है। बैंक बढ़ती ऋण की मांगों को पूरा करने के लिए शार्ट टर्म, नॉन रिटेल डिपोजिट और अन्य वित्तीय साधनों पर तेजी से निर्भर हो रहे हैं। इससे बैंकों के सामने लिक्विडिटी (तरलता) का संकट पैदा हो सकता है। लोग अपनी बचत को निवेश करने के लिए पूंजी बाजार को अधिक पसंद कर रहे हैं। शेयर बाजार और म्यूचल फंड के अलावा लोग बीमा और पैंशन फंडों में निवेश कर रहे हैं। इस स्थिति को लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की चिंताएं काफी बढ़ी हुई हैं। क्योंकि बैंकों को भविष्य में कर्ज देने में दिक्कत हो सकती है। यही स्थिति रही तो देश के बैंकों के लिए स्ट्रक्चरल समस्याएं पैदा हो सकती हैं। अधिकांश बैंक एफडी पर करीब 7 से 8 फीसदी ब्याज दे रहे हैं, जबकि लोगों को अन्य विकल्पों से 12 प्रतिशत तक रिटर्न मिल रहा है। बैंक सेविंग अकाउंट्स पर 3 से 3.5 प्रतिशत तक ब्याज देते हैं। इससे ज्यादा रिटर्न तो लोगों को अन्य विकल्पों से मिल रहा है। यही कारण है कि आम परिवारों ने अच्छी रिटर्न हासिल करने के लिए अपना ट्रैंड बदल लिया है। भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए बैंकिंग सैक्टर को नए कदम उठाने ही होंगे।
बैंकों की बढ़ती वित्तीय चुनौतियां
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