Thursday, January 16, 2025 |
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घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण

by Business Remedies
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punit jain

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण यानी एचसीईएस का 2023-24 का संस्करण गत सप्ताह जारी किया। हाल के महीनों में देश की अर्थव्यवस्था में मांग की स्थिति को लेकर तमाम चिंताएं जाहिर की गईं, खासकर बड़े शहरों में। इसके अलावा व्यापक अर्थव्यवस्था की दिशा पर इसके असर को लेकर भी बात हो रही थी। ऐसे में इस सर्वे की उत्सुकता से प्रतीक्षा थी। इसके आंकड़ों की जब ऐतिहासिक इजाफे से तुलना की जाती है तो कुछ राहत मिलती है।
ग्यारह सालों के अंतराल के बाद गत दो वर्षों से एचसीईएस के आंकड़े जारी किए जा रहे हैं। जब विगत दो वर्षों में परिवारों के मासिक प्रति व्यक्ति व्यय की तुलना की जाती है तो पता चलता है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में इसमें औसतन 3.5 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह ग्रामीण क्षेत्रों के ऐतिहासिक औसत के अनुरूप है जबकि शहरी इलाकों की बात करें तो यह 2022-23 के पूर्व 11 साल के अंतराल में परिवारों के मासिक प्रति व्यक्ति व्यय में देखी गई तीन फीसदी की वार्षिक चक्रवृद्धि दर से काफी अधिक है। उद्योग जगत ने इस पर जोर दिया है कि शहरी और ग्रामीण इलाकों में खपत का अंतर कम हो रहा है। परंतु वृद्धि का समर्थन करने वाली मांग से जुड़ी चिंताओं को देखें तो शायद यह ध्यान देना अधिक महत्वपूर्ण है कि शहरी इलाकों में औसत व्यय धीमा होता नहीं नजर आता। हालांकि एचसीईएस से कम से कम एक अहम नीतिगत प्रभाव उभरा और वह गत वर्ष के संस्करण में भी साफ नजर आया। एचसीईएएस में खाद्य पदार्थों पर किए जाने वाले पारिवारिक व्यय को जिस तरह दिखाया गया है वह आधिकारिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में भली भांति नहीं नजर आता। सर्वे में पाया गया कि शहरी परिवार अपने बजट का 60 फीसदी हिस्सा खाद्य पदार्थों के अलावा खर्च करते हैं जबकि ग्रामीण परिवार अपने व्यय का करीब आधा हिस्सा दूसरी चीजों पर खर्च करते हैं।
विकसित देशों की तुलना में यह काफी अधिक है, लेकिन बजट में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी में गिरावट के रुख को नकारा नहीं जा सकता है। खाद्य पदार्थों पर इस व्यय के साथ अर्थशास्त्रियों ने यह भी कहा कि खाद्यान्न से सब्जियों और पैकेटबंद खाद्य पदार्थों की दिशा में भी बदलाव आएगा। लोगों के खाद्य बजट में अब सब्जियों और पैकेटबंद चीजों की ही बड़ी हिस्सेदारी है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने एक हालिया रिपोर्ट में कहा कि सर्वे में शामिल लोगों में से सबसे गरीब 20 फीसदी लोगों में यह हिस्सेदारी सबसे तेजी से घटी है। उसने इस गिरावट को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण से जोड़ा है। उसी रिपोर्ट में इस तथ्य को भी रेखांकित किया गया है कि खाद्यान्न कीमतों में मौसमी उतार चढ़ाव 2011-12 से कम हुए हैं। यह शायद बेहतर आपूर्ति श्रृंखला ढांचे के कारण संभव हुआ।



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