Tuesday, January 14, 2025 |
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भारत में पेट्रोरसायन उत्पादों पर चीन से मंडराता डंपिंग का खतरा

by Business Remedies
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punit jain

भारत में पेट्रोरसायन उत्पादों के आयात पर चीन जैसे देशों की ओर से कम आयात शुल्क का फायदा उठाते हुए डंपिंग किए जाने की आशंका जताई जा रही है। इस संदर्भ में फिक्की की पेट्रोकेमिकल्स एवं प्लास्टिक समिति ने सरकार को पत्र लिखकर इन उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने की मांग की है। समिति ने रसायन और उर्वरक मंत्रालय से पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन पर सीमा शुल्क को 7.5 फीसदी से बढ़ाकर 12.5फीसदी करने का आग्रह भी किया है। पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन का व्यापक रूप से विभिन्न उद्योगों में उपयोग होता है, जैसे मोटर वाहन, पैकेजिंग, कृषि, इलेक्ट्रॉनिक और चिकित्सा उपकरण तथा निर्माण। भारत में पेट्रोरसायन की कमी है और अनुमान है कि वर्ष, 2030 तक पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन की कमी 1.2 करोड़ टन प्रति वर्ष तक पहुंच सकती है, जो लगभग 12 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो सकता है। चीन पेट्रोरसायन उत्पादन क्षमता बढ़ा रहा है और तेजी से एक प्रमुख निर्यातक बनता जा रहा है। भारत के प्रमुख आयात स्रोत पश्चिम एशिया और अमेरिका हैं, जहां कच्चे माल की कम कीमतें भारतीय उत्पादकों के लिए चुनौती उत्पन्न करती हैं। भारतीय उत्पादक मौजूदा चक्रीय संकट से जूझ रहे हैं, जबकि चीन के सस्ते उत्पादों की निरंतर आपूर्ति से प्रतिस्पर्धा और बढ़ रही है। भारत सरकार को लिखे अपने मांग पत्र में फिक्की की पेट्रोकेमिकल्स एवं प्लास्टिक समिति ने बताया कि रसायनों और पेट्रोरसायनों का वर्तमान आयात 101 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो भारत के लिए अपने आयात बिल को कम करने और आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करने का एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है। रसायन और पेट्रोरसायन भारत में आयात की दूसरी सबसे बड़ी श्रेणी है। पॉलिप्रोपीलीन और पॉलिएथेलीन के आयात पर शुल्क की कम दर इन सामग्रियों के लिए भारतीय बाजार में वृद्धि अपेक्षाकृत आसान बनाती है। आयात में यह वृद्धि घरेलू उत्पादकों के मुनाफे के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न करती है, जिससे स्थानीय बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बाधित होती है। अनावश्यक आयात के कारण विदेशी मुद्रा की अनावश्यक निकासी होती है, चालू खाते का घाटा (कैड) बढ़ता है तथा घरेलू क्षमता का कम उपयोग होता है। विशाल बाजार को देखते हुए भारत के दुनिया के चौथे बड़े उपभोक्ता देश बनने की क्षमता है। लेकिन क्या घरेलू उत्पादन से मांग पूरी हो पाएगी, इस पर सवालिया निशान है।



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