कोरोना महामारी के बाद से अंतरराष्ट्रीय पर्यटन में वृद्धि लगभग एक वैश्विक स्वरूप ले चुकी है। भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि मेडिकल टूरिज्म है, जिसमें भारत का विश्व में पांचवां स्थान है, जबकि भारत के जहां कदम-कदम पर इतिहास की छाप मौजूद है, दर्शनीय इमारतों की बहुतायत है। हम स्वयं को एक महान सभ्यता होने का दावा तो करते हैं, परंतु इसके संरक्षण की ओर ध्यान नहीं देते हैं। हमारे प्रत्येक राज्य के विविधतापूर्ण भोजन, नृत्य, कला, संस्कृति, जीवन शैली की अपनी एक अलग विशेषता है, फिर भी यहां विदेशों से पर्यटक क्यों नहीं आना चाहते? इसका सर्वप्रथम कारण है हमारे धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यावरण की दृष्टिï से महत्वपूर्ण स्थलों पर स्वच्छता का अभाव। इसके अलावा एक बड़ा कारण है हमारी सरकारों का पर्यटन को बढ़ावा देने पर उतना ध्यान नहीं देना, जितना उन्हें देना चाहिए। ऐसे ही उपेक्षित स्थलों में से एक है दिल्ली से लगभग 150 किलोमीटर दूर हिसार के निकट स्थित हड़प्पा सभ्यता का स्थान राखीगढ़ी। यहां खुदाई के दौरान प्राप्त वस्तुओं में खेल-खिलौने, छलनी, विभिन्न औजार, पालतू पशुओं के अवशेष, तांबे और कांसे के सामान, पॉटरी, गहने और हड़प्पा कालीन लिपि युक्त मुद्राएं आदि शामिल हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग न केवल खेलों के शौकीन थे बल्कि मनोरंजन के भी। वहां खुदाई में मिट्टी की ईंटों से बना एक स्टेडियम भी मिला है जिसमें ढलान युक्त सीढ़ीनुमा बैठने के स्थान तथा ठंड से बचने के लिए आग जलाने के स्थान भी हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि उस युग में आयोजन रात के समय भी चलते थे, जबकि पाश्चात्य सभ्यताओं में रोम में कॉलेजियम तो थे, परंतु वहां इस तरह के खेल आयोजन स्थलों के कोई अवशेष नहीं पाए गए। न केवल ऐतिहासिक बल्कि हमारे यहां धार्मिक पर्यटन को भी बहुत अधिक प्रोत्साहन दिया जा सकता है जैसे कम्बोडिया में मंदिरों के पर्यटन को बढ़ावा दिया जाता है। ऐसे में वाराणसी को नहीं भूलना चाहिए, जहां चप्पे-चप्पे पर ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर हैं परंतु शहर में सफाई न होने के कारण यह शहर देश-विदेश के पर्यटकों को उतना आकॢषत नहीं कर पाया जितना आकर्षित कर सकता था। हमारी धरोहर न केवल मंदिर हैं बल्कि हर धर्म के और हर समुदाय के और हर दौर के शासकों चाहे वे मुगल हों या अंग्रेज द्वारा बनवाई गई इमारतें और अन्य दर्शनीय स्थान हैं, जो पर्यटन को आकॢषत करने का बड़ा माध्यम बन सकते हैं।
