Wednesday, January 15, 2025 |
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सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों ने सरकार की बढ़ाई चिंता

by Business Remedies
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punit jain

पिछले दिनों राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी किए गए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों ने न केवल सरकार की चिंता बढ़ा दी है बल्कि अर्थशास्त्री भी परेशान हो गए हैं। यह अनुमान किसी को भी नहीं था कि वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर केवल 5.4 फीसदी रह जाएगी। जो सात तिमाहियों में सबसे कम दर है। यह जुलाई से सितम्बर तक के आंकड़े हैं। जबकि अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.7 फीसदी रही थी। देश में गिरती खपत चिंता का विषय तो है, लंबी चली बारिश के कारण खुदाई रुकने से खनन और उत्खनन उद्योग की गतिविधियां ठप्प पडऩे और विनिर्माण की वृद्धि दर में गिरावट ने जीडीपी को निचले स्तर पर ला दिया है। मैन्युफैक्चरिंग का कुल सकल मूल्य वर्धित उत्पादन में 17 फीसदी हिस्सा है। आर्थिक विकास की गति का पहिया थमते ही सभी की नजरें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पर लग गई हैं। आर्थिक जानकारों के मुताबिक दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ सुस्त पडऩे के कई कारण हैं। इसमें बढ़ती महंगाई और ऊंचा इंटरेस्ट रेट अहम है। इसके साथ वेतन में भी इजाफा नहीं हुआ जिससे खपत को बढ़ावा नहीं मिला। कई केंद्रीय मंत्रियों ने आरबीआई से ब्याज दरों में कटौती करने की अपील की है। इससे कर्ज लेना सस्ता होगा और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी। जुलाई-सितंबर तिमाही में कंपनियों के नतीजे भी बेहद निराशाजनक रहे। इससे शेयर बाजार में भी बड़ी गिरावट आई। इससे विदेशी निवेशक भी भारत से तेजी से पैसा निकाल रहे हैं। महंगाई को काबू करने के चक्कर में आरबीआई ब्याज दरें नहीं घटाता है, तो इसका नाकारात्मक असर पडऩा तय है। ब्याज दरें घटाई जाएंगी तो उससे एमएसएमई इकाइयों को फायदा हो सकता है। इससे देश में व्यापारिक गतिविधियां और औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने रुख को भले ही ‘न्यूट्रल’ कर लिया है लेकिन अब तक उसने रेपो रेट घटाने का कोई संकेत नहीं दिया है। अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती 2030 तक भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य के सामने बड़ी चुनौती है। एक तरफ बेरोजगारी अहम मुद्दा है, तो दूसरी तरफ देश के शहरी मध्यम वर्ग घटती क्रय शक्ति से जूझ रहा है। सुस्ती से निपटने के लिए सरकार को नीतिगत दरों में कमी के उपाय भी सोचने होंगे। पूंजीगत व्यय बढ़ाने के लिए राजस्व प्राप्तियों को भी ध्यान में रखना होगा।



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