Thursday, December 11, 2025 |
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ग्लेशियरों की संख्या घटना चिंतनीय

by Business Remedies
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punit jain

एक नया अध्ययन बताता है कि अरुणाचल प्रदेश में, पूर्वी हिमालय के एक हिस्से में पिछले 32 साल यानी करीब तीन दशक में 110 ग्लेशियर नष्ट हो गये। शोधकर्ताओं के एक समूह द्वारा अध्ययन में यह पाया गया कि ये ग्लेशियर 1988 से 2020 की अवधि में सालाना 16.94 वर्ग किलोमीटर की वापसी की दर से गायब हो गये। यही नहीं, ग्लेशियरों के झील बनने और इनके फटने से अब बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है।
अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक, ग्लेशियर चूंकि प्राकृतिक मीठे पानी के भंडार के रूप में काम करते हैं और पृथ्वी की जलवायु तथा जल चक्र को विनियमित करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं, ऐसे में, ग्लेशियरों के पिघलने से मीठे पानी की उपलब्धता, वितरण और पारिस्थितिकी तंत्र पर भारी असर पड़ता है, इससे बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है, जैसा कि 2023 में सिक्किम में आयी आपदा के रूप में देखा गया था, जिसमें कम-से-कम 55 लोग मारे गये थे और 1,200 मेगावाट की एक जलविद्युत परियोजना नष्ट हो गयी थी।
शोधकर्ताओं ने ग्लेशियर की सीमाओं का मानचित्रण करने के लिए तवांग से लेकर लोहित तक अरुणाचल प्रदेश के कई जिलों में रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली का इस्तेमाल किया। ग्लेशियरों का पीछे हटना, जाहिर है, वैश्विक जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख संकेतक है। यह वह प्रक्रिया है, जिसमें ग्लेशियर नयी बर्फ और बर्फ के जमा होने की तुलना में तेजी से पिघलते हैं।
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि 32 साल की अवधि के दौरान ग्लेशियरों की संख्या 756 से घट कर 646 रह गयी। इस अवधि में ग्लेशियर कवर 585.23 वर्ग किलोमीटर से घट कर 309.85 वर्ग किलोमीटर रह गया, जो 47 फीसदी से अधिक का नुकसान है। अध्ययन में एक चिंता की बात यह है कि हिमालय के ग्लेशियर वैश्विक स्तर पर अन्य ग्लेशियरों की तुलना में तेजी से पिघल रहे हैं, उसमें भी पूर्वी हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने की दर वैश्विक औसत से अधिक है। ग्लेशियर क्षेत्रीय जल सुरक्षा को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और लाखों लोगों को जीवित रखने वाली नदियों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में काम करते हैं। ऐसे में जरूरी यह है कि बेहतर निगरानी प्रणाली, टिकाऊ जल प्रबंधन और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने की नीति अपनायी जाये, ताकि बचे ग्लेशियरों को बचाया जा सके।



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