वर्ष 1901 में जब से देश में तापमान का हिसाब रखा जाने लगा, तब से अब तक का सबसे अधिक गर्म वर्ष 2024 रहा। इसमें आश्चर्यचकित करने वाली कोई बात नहीं है, लेकिन नीति निर्माताओं को इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि बीसवीं सदी के आरंभ से अब तक के समय में पिछले 15 सालों में से पांच साल सबसे अधिक गर्म रहे।
यकीनन भारत कोई अपवाद नहीं था। विश्व मौसम संगठन ने कहा कि 2024 आधिकारिक रूप से विश्व का सबसे गर्म वर्ष था। इस वर्ष ताप वृद्धि पेरिस समझौते के औद्योगिक युग (1850-1900) के स्तर से 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक की गर्माहट के दायरे को भी पार कर गई। यकीनन पश्चिमी देशों की औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं के इसमें योगदान को लेकर काफी कुछ कहा जा चुका है कि कैसे उनकी वजह से कार्बन उत्सर्जन बढ़ा। इस कारण वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हुई है और इन देशों ने जलवायु परिवर्तन को अपनाने संबंधी नीतियां बनाने में विकासशील देशों की मदद करने की जिम्मेदारी भी नहीं निभाई। परंतु देश की समस्याओं का मूल है अपनी घरेलू और औद्योगिक जरूरतों के लिए ऊर्जा के स्रोत के रूप में कोयले पर अत्यधिक निर्भरता। हालांकि भारत इस तथ्य से गर्व महसूस कर सकता है कि नवीकरणीय ऊर्जा उसकी कुल स्थापित क्षमता में 46.3 फीसदी की हिस्सेदार है, लेकिन वास्तविक उत्पादन में उसका योगदान 10 फीसदी से भी कम है। भारत कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के कुल ऊर्जा उत्पादन में उसकी हिस्सेदारी 77 फीसदी है। यही कारण है कि वह दुनिया का तीसरा सबसे अधिक कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जित करने वाला देश बन गया है। भारत ने 2023 में यूरोपीय संघ को पीछे छोड़ दिया। हालांकि वैश्विक उत्सर्जन में हमारी हिस्सेदारी केवल आठ फीसदी है, जो चीन के 31.5 फीसदी और अमेरिका के 13 फीसदी उत्सर्जन से काफी कम है। सौर और पवन ऊर्जा को राष्ट्रीय विद्युत ग्रिड में शामिल करने की दिक्कत मुख्य रूप से इसलिए हैं कि हमारे पास उपयुक्त भंडारण क्षमता नहीं है। ऐसा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की भिन्न-भिन्न प्रकृति के कारण है। बिजली खरीद कीमतों की विसंगति भी नवीकरणीय ऊर्जा की खरीद को जटिल बनाती है। इसके साथ ही देश के वनाच्छादित क्षेत्र की भ्रामक तस्वीर भी बताती है कि देश के कार्बन सिंक का आकार शायद बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। इंडिया स्टेट ऑफ द फॉरेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) के ताजा संस्करण में कहा गया है कि देश का वन क्षेत्र बढ़ा है और अब देश का करीब 25 फीसदी हिस्सा वनाच्छादित है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इसके परिणामस्वरूप भारत का कार्बन सिंक 2005 के स्तर से 2.29 अरब टन तक अधिक हो गया है।