Friday, October 10, 2025 |
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‘मरीज और डॉक्टर के रिश्ते में विश्वास सबसे ज़रूरी है’

by Business Remedies
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जयपुर के प्रसिद्ध मूत्ररोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप गुप्ता के साथ संवाद हरियाणा के छोटे से गाँव से शुरू हुई डॉ. संदीप गुप्ता की कहानी आज उन्हें जयपुर के सबसे सम्मानित यूरोलॉजिस्ट में से एक बनाती है। इस बातचीत में उन्होंने अपने शुरुआती दिनों, प्रोफेशनल सफर, चुनौतियों और भारत में हेल्थकेयर के भविष्य को लेकर अपनी सोच साझा की।

चारू भाटिया | बिजऩेस रेमेडीज/जयपुर
प्रश्न : आप जयपुर के जाने-माने यूरोलॉजिस्ट हैं। अब तक का सफर कैसा रहा? मेडिकल फील्ड में कदम कैसे रखा?
उत्तर : मेरी पहली प्रेरणा मेरे पिता रहे, जो सरकारी डॉक्टर थे और हरियाणा के गाँव के एक प्राइमरी हेल्थ सेंटर में काम करते थे। उन्हें गाँव में बहुत सम्मान मिलता था। उन्हें देखते हुए ही डॉक्टर बनने की चाह जगी। हम रेवाड़ी जिले के हैं। बचपन से पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन गाँव से रेवाड़ी तक पढऩे जाना मुश्किल था। सुबह 6:30 बजे निकलना पड़ता और खस्ताहाल बसों से सफर करना पड़ता। आठवीं तक यही संघर्ष रहा। बाद में ट्रांसफर हो गया तो रेवाड़ी में रहकर पढ़ाई और एक्स्ट्रा एक्टिविटीज़ में भी अच्छा किया। मेहनत का नतीजा रहा कि पहले ही प्रयास में पीएमटी निकाल लिया और एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर में दाख़िला मिला। वहाँ पढ़ाई और दोस्तों के साथ अच्छा वक्त बीता। पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए बीएचयू से एमएस किया और फिर गुजरात के आईकेडीआरसी में छह साल तक यूरोलॉजी सीखी। इसके बाद तय किया कि राजस्थान और हरियाणा के लोगों को अपनी सीखी हुई एडवांस स्किल्स से सेवा दूँ, इसीलिए पहले फरीदाबाद और फिर फोर्टिस जयपुर आ गया।

प्रश्न : फोर्टिस जयपुर का अनुभव कैसा रहा?
उत्तर : जब मैं फोर्टिस आया तो यहाँ उपकरणों की कमी थी। मैंने नई तकनीकें और ज़रूरी इक्विपमेंट लाने की कोशिश की, शुरुआत में विरोध भी हुआ लेकिन धीरे-धीरे बदलाव हुए। लोग लैप्रोस्कोपी या ट्रांसप्लांट नहीं करवाना चाहते थे, पर मैंने समझाया और अब ये आम हो गए हैं। अब तक 300-400 ट्रांसप्लांट कर चुका हूँ और कई पहली बार की सर्जरी भी की हैं। यू्रोलिफ्ट तकनीक और डोनर पर लैप्रोस्कोपी मैंने शुरू की। मेरी पसंदीदा सर्जरी बच्चों की सर्जरी है। हाल ही में मैंने रोबोटिक सर्जरी भी की, जो फोर्टिस में पहली बार हुई।

प्रश्न : आजकल मरीजों में ऑपरेशन के नतीजों को लेकर असंतोष देखने को मिलता है। इस पर आपका क्या कहना है?
उत्तर : एमबीबीएस में मेडिको-लीगल का पेपर होता है और कई कानून भी बने हैं। लेकिन सबसे बड़ी कमी डॉक्टर और मरीज के रिश्ते में है। डॉक्टर कभी जानबूझकर ग़लत ऑपरेशन नहीं करता, क्योंकि यह उसके खुद के करियर पर असर डालेगा। मेडिकल साइंस लगातार बदलता है। जो कल सही था, वह आज नहीं है और जो आज है, कल बदल जाएगा। समस्या तब होती है जब मरीज गूगल पर इलाज ढूँढकर आते हैं। इंटरनेट पर जानकारी आम होती है, खास मरीज की हालत के अनुसार नहीं। बेहतर है कि मरीज अपने डॉक्टर पर भरोसा करें।

प्रश्न : मेडिकल साइंस में एआई जैसी तकनीक के आने को आप कैसे देखते हैं?
उत्तर : यह अच्छी बात है। एआई स्कैन, ब्लड टेस्ट और डेटा एनालिसिस में मदद करेगा। लेकिन मरीज से कंसल्टेशन में इंसानी इंटरैक्शन ज़रूरी है। आज हम नॉमोग्राम इस्तेमाल करते हैं, जिससे पहले ही पता चलता है कि कितने प्रतिशत सफलता मिलेगी। अगर 100 में 10 मरीजों को सफलता नहीं मिलेगी, तो यह पहले से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

प्रश्न : सरकार से आप क्या उम्मीद रखते हैं?
उत्तर: सबसे पहले लोगों की यह सोच बदलनी चाहिए कि डॉक्टर सिर्फ पैसे कमाने के लिए होते हैं। यह पेशा बहुत पवित्र है। प्राइवेट अस्पताल ज़्यादा नियमों का पालन करते हैं लेकिन असफल केस में उन्हीं को दोषी ठहराया जाता है, जबकि सरकारी अस्पतालों में ज़िम्मेदारी नहीं ली जाती। 70 प्रतिशत हेल्थकेयर प्राइवेट सेक्टर में है और यह रोजगार भी देता है। सरकारी योजनाएँ जैसे भामाशाह योजना हैं, पर ज़रूरतमंद तक पूरी तरह नहीं पहुँच पातीं। तकनीक के मामले में राजस्थान काफी पीछे है। जो रोबोटिक सर्जरी अब यहाँ आई है, वह दूसरे राज्यों में दस साल पहले शुरू हो चुकी थी। सरकार को संसाधन मुफ्त या सस्ते देने चाहिए और प्राइवेट-सरकारी सेक्टर मिलकर बेहतर हेल्थकेयर देना चाहिए।

प्रश्न : युवा पाठकों को क्या सलाह देंगे जो मेडिकल फील्ड में करियर बनाना चाहते हैं?
उत्तर : यह पेशा तभी चुनें जब लंबे समय तक मेहनत करने का धैर्य हो। एमबीबीएस में 18 साल की उम्र में दाख़िला लेकर 32 की उम्र तक डॉक्टर बनते हैं। यानी जवानी का पूरा समय पढ़ाई और मेहनत में जाता है। यह सुरक्षित और सम्मानजनक पेशा है, लेकिन इसके लिए पसीना बहाना ही पड़ेगा।



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