अब दिसंबर का महीना शुरू हो गया है। धीरे-धीरे सर्दी ने भी दस्तक देना शुरू कर दिया है। दिसम्बर में और सर्दी तेज होगी, ऐसे में मसालों की डिमांड भी बढ़ रही है। इसके साथ ही मसालों भी महंगे हो गए हैं। ऐसे में उपभोक्ताओं पर सब्जियों व मसालों की बढ़ती कीमतों की दोहरी मार पड़ रही है। सर्दी में जहां आमतौर पर साग-सब्जी सस्ती हो जाती है। लेकिन इस बार अभी तक ऐसा नहीं हुआ है, अभी भी सब्जियां महंगी ही मिल रही है। कहा जाता है कि इस बार बारिश का मौसम देर तक चला। इसलिए सब्जियों की बुवाई समय पर नहीं हो पाई। इसलिए लोकल सब्जियां अभी तक बाजार में नहीं आई हैं। अब सर्दी बढऩे के साथ ही राजस्थान, दिल्ली के थोक बाजार में मसालों के दाम चढ़ गए हैं। खुले बाजार में गेहूं के दाम बढऩे की वजह से इस समय अनब्रांडेड आटा, मैदा और ब्रेड आदि सब महंगे हो गए हैं। कुछ महीने पहले 700 ग्राम के ब्रेड या पावरोटी का जो लोफ 45 रुपए में मिला करता था, उसकी कीमत पहले 55 रुपए हुई। अब पिछले दिनों ही चुपके से भी ब्रेड कंपनियों ने इसकी कीमत बढ़ा कर 60 रुपए कर दी है। महंगाई को हवा देने में अब मसाले भी पीछे नहीं हैं। दिल्ली व राजस्थान में मसालों के थोक बाजार में छोटी इलायची, बड़ी इलायची, काली मिर्च से लेकर अन्य मसालों की कीमत में बढ़ोतरी हुई है। कारोबारियों के मुताबिक डिमांड की अपेक्षा सप्लाई कम है जिसकी वजह से मसाले के भाव बढ़ रहे हैं। दिल्ली के खारी बावली में मसालों की एक बड़ी मार्केट है, जहां सभी प्रकार के मसाले थोक दाम में बिकते हैं। दिल्ली से लेकर आसपास के प्रदेशों में यहां से मसालों की सप्लाई होती है। नॉर्दर्न स्पाइसेज ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट रविंद्र अग्रवाल बताते हैं कि सर्दी की दस्तक के बाद से मसालों की डिमांड बढ़ी है। आलम यह है कि बड़ी इलायची की कीमत थोक मंडी में 1500 रुपए प्रति किलो था, जो अब 1700 रुपए प्रति किलो हो गया है। इसके अलावा छोटी इलायची की कीमत 2600 रुपए प्रति किलो थी, अब इसकी कीमत 3000 रुपए प्रति किलो हो गई है। इसके पीछे का कारण क्रॉप की कमी है, जिसकी वजह से दाम बढ़ रहे हैं। वहीं काली मिर्च की कीमत में प्रति किलो 20 रुपए और दालचीनी की थोक कीमत में 5 से 10 रुपए प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में देखना यह है कि सरकार बढ़ती मसालों की कीमतों में बंदिशेंं लगाने का प्रयास करे, जिससे आम लोगों को राहत मिल सके।
उपभोक्ताओं पर सब्जियों व मसालों की बढ़ती कीमतों की दोहरी मार
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