पढऩे की आदत एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसकी जड़ें बचपन में ही मज़बूत होनी चाहिए। पढऩे के कई उद्देश्य हैं, जैसे समझना, समझाना, जानना, सीखना, कल्पना शक्ति का निर्माण, ज्ञान का विस्तार करना और ज्ञान प्राप्त करने के बाद उसका दुरुपयोग न करना। प्राथमिक स्तर पर बच्चों में पढऩे की आदत बढ़ाने में माता-पिता, शिक्षकों और पुस्तकालयों की भूमिका अहम है। आज हम खुद को डिजिटल युग से घिरा हुआ महसूस करते हैं। आज कंप्यूटर और इंटरनेट के बिना जीवन की कल्पना करना असंभव सा लगता है। जब हम अपने आस-पास बहुत से बच्चों को पुस्तकालय से दूर देखते हैं, तो यह कई कमियों की ओर इशारा करता है। डिजिटल युग में बच्चों को पढऩे के लिए प्रेरित करना एक बड़ी चुनौती है। ्रआदत शब्द का अर्थ है किसी चीज़ का अभ्यास, जो निरंतर दोहराव से अर्जित होता है। शिक्षा (पढऩे) की यात्रा स्कूल से शुरू होती है और पठन कौशल की यात्रा घर से शुरू होकर स्कूल की मदद से आगे बढ़ती है। यह कौशल आमतौर पर विभिन्न स्तरों पर विकसित होता है, जैसे घर पर माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी और दोस्तों के माध्यम से, और स्कूल में शिक्षकों और पुस्तकालयों के माध्यम से। बच्चों को पढऩे के लिए प्रेरित करने में शिक्षक, पुस्तकालय और माता-पिता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पठन कौशल बचपन से ही शुरू हो जाते हैं और जीवन भर चुनौतियों का सामना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पढऩा शिक्षा का एक बुनियादी साधन है, जो ज्ञान के दायरे का विस्तार करता है। दुर्भाग्य से, पढऩे की आदत ने अपना महत्व खो दिया है क्योंकि हम सभी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, खासकर टेलीविजन, इंटरनेट, मोबाइल गेम्स की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यही कारण है कि स्कूली छात्रों में पढऩे की आदत में कमी आ रही है और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को इसका एक बड़ा कारण माना जा रहा है।
