बिजनेस रेमेडीज/जयपुर। श्रुति कोठारी | डॉ. सुप्रीय जैन, सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट और ‘‘इटर्नल हॉस्पिटल सांगानेर, जयपुर’’ में कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख, ने अपना जीवन दिलों को बचाने के लिए समर्पित किया है—शाब्दिक और रूपक दोनों अर्थों में। इस बेबाक बातचीत में, वे अपने निजी सफर, डॉक्टर की जिंदगी की चुनौतियों और इनामों, और स्वस्थ दिल बनाए रखने के लिए व्यावहारिक सुझाव साझा करते हैं। अविस्मरणीय मरीजों के अनुभवों से लेकर दिल की सेहत से जुड़ी गलतफहमियों को दूर करने तक, डॉ. जैन पाठकों को कार्डियोलॉजी की दुनिया की प्रेरणादायक झलक देते हैं, साथ ही जीवनशैली, रोकथाम और सामाजिक जिम्मेदारी के महत्व को भी रेखांकित करते हैं।
प्रश्न: आइए आपकी व्यक्तिगत पृष्ठभूमि से शुरू करते हैं। क्या आपके परिवार में डॉक्टरों का इतिहास है, या आप पहले हैं? और आपको कार्डियोलॉजी को अपना स्पेशलिटी चुनने के लिए क्यों प्रेरित किया?
उत्तर: मैं अपने परिवार का पहला डॉक्टर हूं। मेरे अधिकांश रिश्तेदारों ने शिक्षा को अपना पेशा चुना। उदाहरण के लिए, मेरे दादा जी 1960 के दशक में सुबोध कॉलेज के एडिशनल प्रिंसिपल रहे। परिवार में होम्योपैथिक प्रैक्टिशनर्स को छोडक़र, चिकित्सा कभी पारिवारिक परंपरा नहीं रही। असली प्रेरणा मेरे पिता के करीबी दोस्त, स्वर्गीय डॉ. सी. एम. शर्मा से आई। वे एक प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट और एसएमएस मेडिकल कॉलेज में न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख थे। बचपन में, मैं उनकी गहराई से प्रशंसा करता था और उन्हें अपना रोल मॉडल मानता था। उन्होंने ही मुझे मेडिकल क्षेत्र में आने की प्रेरणा दी। रही बात कार्डियोलॉजी की, तो वह जुनून बाद में विकसित हुआ। मेरे चाचा ससुर, जो दिल्ली के जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट हैं, ने मुझे इस क्षेत्र की अनोखी बात बताई। उन्होंने समझाया कि कार्डियोलॉजी इसलिए अलग है क्योंकि यह त्वरित, जीवन-रक्षक परिणाम देने की क्षमता रखता है। जब कोई मरीज हार्ट अटैक के साथ आता है और आप सही समय पर हस्तक्षेप करते हैं, तो आप केवल इलाज ही नहीं करते, बल्कि एक जीवन बचाते हैं। यह त्वरित और शक्तिशाली प्रभाव ही था जिसने मुझे विश्वास दिलाया कि कार्डियोलॉजी मेरा सच्चा आह्वान है।
प्रश्न: क्या आप अपने मेडिकल सफर का कोई परिभाषित पल साझा कर सकते हैं, शायद कोई विशेष केस जिसने आप पर गहरी छाप छोड़ी हो? और इसी संदर्भ में, अक्सर लोग कहते हैं कि रिकवरी में विश्वास (faith) की बड़ी भूमिका होती है। क्या आप खुद इसमें विश्वास करते हैं?
उत्तर: कुछ पल ऐसे होते हैं जो हमेशा आपके साथ रहते हैं। एक जिसने मुझे बदल दिया, वह एक 13 वर्षीय लडक़े का केस था जो बड़े हार्ट अटैक के साथ आया था। पहले तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि इतनी कम उम्र में यह संभव है, लेकिन ईसीजी ने अलग कहानी बताई। हमने एंजियोग्राफी और स्टेंटिंग की, और कई दिनों तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद वह बच गया। आज भी, उसकी रिकवरी को याद कर मुझे राहत मिलती है, क्योंकि इतनी कम उम्र की जान बचाना असाधारण लगा।
एक और केस जो कि एक बेहद गरीब परिवार के व्यक्ति का था। उसकी हालत गंभीर थी और मैंने लगभग उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन उसके रिश्तेदारों ने जोर दिया कि मैं हर संभव प्रयास करूं। हमने एंजियो की और सभी बाधाओं के बावजूद वह बच गया। जिस दिन वह अपने पैरों पर चलते हुए अस्पताल से बाहर निकला, वह मेरे करियर के सबसे संतोषजनक क्षणों में से एक था। इन अनुभवों ने मुझे विनम्र होना सिखाया। डॉक्टर के रूप में, हम पूरी ताकत से कोशिश करते हैं, लेकिन अंतिम परिणाम हमेशा हमारे हाथ में नहीं होता। मैं मानता हूं कि इसमें ईश्वर की भूमिका होती है। जब आपके इरादे शुद्ध होते हैं और आप पूरे दिल से इलाज करते हैं, तो कोई उच्च शक्ति बाकी का मार्गदर्शन करती है।
प्रश्न: एक डॉक्टर की जिंदगी का एक दिन कैसा होता है? हममें से अधिकांश के लिए काम का मतलब 8 से 9 घंटे होता है, लेकिन आपके लिए एक सामान्य दिन कैसे गुजरता है?
उत्तर: डॉक्टर के लिए कोई निश्चित दिन या रात नहीं होती। मेरी सुबह आमतौर पर 5 बजे कुछ व्यायाम से शुरू होती है ताकि मैं खुद को फिट रख सकूं, लेकिन उसके बाद दिन अप्रत्याशित हो जाता है। एक फोन कॉल सब कुछ बदल सकता है। कई बार ऐसा होता है कि मैं अस्पताल से निकलते हुए सोचता हूं कि काम पूरा हो गया, लेकिन मिनटों में किसी इमरजेंसी के लिए वापस बुला लिया जाता है। कभी-कभी मैं बिस्तर पर लेटता हूं और अचानक कोई केस आ जाता है, और सुबह के 4 बज जाते हैं और मैं अब भी अस्पताल में होता हूं। सबसे कठिन बात यह है कि अगला दिन आपके लिए नहीं रुकता। सुबह 9 बजे तक नए मरीज पहले से इंतजार कर रहे होते हैं, और चाहे आपने कितना भी कम आराम किया हो, आपको उनके लिए तैयार रहना पड़ता है। यह थकाऊ है, हां, लेकिन जैसे ही आप किसी मरीज को ठीक होते या किसी जीवन को बचते देखते हैं, सारी थकान पीछे छूट जाती है। यही है डॉक्टर की जिंदगी जीने का सौभाग्य और जिम्मेदारी।
प्रश्न: आप इतनी थकान और तनाव को कैसे संभालते हैं जो इतने चुनौतीपूर्ण घंटों के साथ आते हैं?
उत्तर: दो चीजें मुझे सबसे ज्यादा मदद करती हैं। पहली है छोटे-छोटे झपकी लेना, जब भी संभव हो। केवल पांच, दस या बीस मिनट भी फर्क डाल देते हैं। दूसरी है अपने परिवार के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताना—अपने बच्चों, पत्नी और माता-पिता के साथ। वे पल ऐसा संतुलन और राहत देते हैं जो किसी भी आराम से नहीं मिल सकता।
प्रश्न: आपकी फैमिली आपको कैसे सपोर्ट करती है, जब आपके काम के घंटे इतने अनिश्चित और मांगपूर्ण होते हैं?
उत्तर: मेरी पत्नी भी डॉक्टर हैं, इसलिए वे चुनौतियों को समझती हैं, लेकिन मेरे बच्चे कभी-कभी इससे नाराज रहते हैं। मुझे याद है, मेरी बेटी के जन्मदिन पर पार्टी चल रही थी, और मुझे प्राइमरी एंजियोप्लास्टी के लिए एक जरूरी कॉल आ गया। मेरे पास तुरंत जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। ऐसा भी हुआ कि एक दिन अपनी ड्यूटी खत्म करने के बाद मैं रात 8:30 बजे घर लौटा, और तुरंत ही ‘‘इटर्नल हॉस्पिटल सांगानेर, जयपुर’’ से एक आपातकालीन काम आ गया। मुझे वापस अस्पताल जाना पड़ा, प्रक्रिया की और 11:30 बजे लौट आया। मेरा बेटा पढ़ रहा था और उसने दरवाजा खोला। मैंने उससे पानी की बोतल मांगी, लेकिन घर के अंदर कदम नहीं रखा। उसने आश्चर्य से पूछा कि मैं अंदर क्यों नहीं आ रहा। मैंने समझाया कि मुझे तुरंत फिर से जाना होगा। वह थोड़ा नाराज हो गया और बोला, “पापा, मैं कभी डॉक्टर नहीं बनूंगा। मैं इंजीनियर बनूंगा।” उस पल उसे अहसास हुआ कि यह पेशा कितना अपेक्षाएं रखने वाला है। मैंने उसे समझाया कि डॉक्टर होना केवल खुद के लिए जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज के लिए भी है। आप यह नहीं कह सकते, “मैं मरीज को कल देखूंगा।” हर कॉल, चाहे आधी रात हो या सुबह 2 बजे, किसी की जरूरत का प्रतिनिधित्व करता है। यह चुनौतीपूर्ण है, हां, लेकिन डॉक्टर की भूमिका व्यक्तिगत सुविधा से परे की जाती है। आपको हमेशा विनम्र, संवेदनशील और मरीज के लिए उपस्थित होना पड़ता है। यदि आप इसमें असफल होते हैं, तो आपकी सारी जानकारी और डिग्री अर्थहीन हो जाती है।
प्रश्न: मरीजों के लिए सबसे कठिन हिस्सों में से एक शायद वह डर है जो वे अस्पताल आने पर महसूस करते हैं। यहां तक कि किसी मामूली बीमारी, जैसे बुखार के लिए भी लोग हिचकिचाते हैं, टेस्ट, इंजेक्शन और प्रक्रियाओं को लेकर चिंतित रहते हैं। आप इसे अपने नजरिए से कैसे देखते हैं?
उत्तर: बिल्कुल। डॉक्टर भी मरीज नहीं बनना चाहते। इसलिए हम समझते हैं कि अस्पताल में होना कितना तनावपूर्ण और आघातकारी लग सकता है। आज, यह चुनौती मरीजों और उनके परिवारों के दबाव से और भी बढ़ जाती है, जो हर बार सकारात्मक परिणाम की उम्मीद करते हैं। हकीकत यह है कि डॉक्टर हमेशा अपनी पूरी कोशिश करते हैं, फिर भी कभी-कभी परिणाम उम्मीदों के मुताबिक नहीं होते। यह दुनिया भर में होता है। मेडिसिन एक विज्ञान है, लेकिन यह हर केस में गारंटी नहीं दे सकता। शिक्षा और जागरूकता मदद कर सकती है, लेकिन लोग अक्सर अधूरी जानकारी लेकर आते हैं, कभी-कभी इंटरनेट से, और डॉक्टरों पर अनावश्यक दबाव डालते हैं। मरीजों और उनके परिवारों के लिए सबसे अच्छा यही है कि वे डॉक्टर पर भरोसा करें। जब कोई कहता है, “हमें आप पर विश्वास है, आप अपना सर्वश्रेष्ठ करें,” तो यह मेरे जिम्मेदारी के भाव को मजबूत करता है और मुझे मरीज का बेहतर इलाज करने का आत्मविश्वास देता है। यह समझना जरूरी है कि हर मरीज का इलाज पर समान प्रतिक्रिया नहीं होगी। इस अपेक्षा और चिकित्सा की वास्तविकता के बीच संतुलन बनाना डॉक्टर होने के सबसे चुनौतीपूर्ण पहलुओं में से एक है।
प्रश्न: लगभग सभी राज्य और राष्ट्रीय सरकारों के पास लोगों के लाभ के लिए कई हेल्थकेयर स्कीमें हैं। फिर भी, आपके अनुसार हमारे देश की हेल्थकेयर प्रणाली को सुधारने, लोगों से जोडऩे और जागरूकता फैलाने के लिए कौन से बड़े सुधारों की जरूरत है?
उत्तर: मैं तीन प्रमुख क्षेत्रों को उजागर करूंगा। पहला है जागरूकता। स्वास्थ्य शिक्षा बहुत जल्दी, स्कूलों में ही शुरू होनी चाहिए। पहले छात्रों को मलेरिया, टायफॉयड और उनके लक्षणों के बारे में पढ़ाया जाता था। आज इसमें गैर-सक्रामक बीमारियां जैसे डायबिटीज, हाइपरटेंशन, तनाव से जुड़ी समस्याएं आदि शामिल होनी चाहिए, कम से कम 10वीं कक्षा तक।
दूसरा है रोकथाम। हमारी प्रणाली अभी भी बीमारी के इलाज पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है बजाय रोकथाम के। यदि हम रोकथाम में निवेश करें, तो लागत और प्रयास बीमारी के इलाज की तुलना में कहीं कम होंगे। उदाहरण के लिए, सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के बावजूद, एक व्यक्तिजो भारी धूम्रपान करता है, उसे बार-बार चिकित्सा देखभाल की जरूरत होगी, जो अंतत: संसाधनों की बर्बादी है। रोकथाम हमारी हेल्थकेयर रणनीति की नींव बननी चाहिए।
तीसरा, और शायद सबसे महत्वपूर्ण है सामाजिक रूप से जिम्मेदार और दयालु इंसान बनाना। हम अक्सर लोगों को आक्रामक होते, नियमों या सामान्य शिष्टाचार की अनदेखी करते देखते हैं। उदाहरण के लिए, मैंने हाल ही में एक लग्जरी कार से किसी को खिडक़ी से सडक़ पर कचरा फेंकते हुए देखा। केवल धन या शिक्षा ही किसी को अच्छा नागरिक नहीं बनाते। यदि हम लोगों को दयालु, जिम्मेदार और समाज के प्रति जागरूक बनाना सिखाएं, तो वे अपनी सेहत एवं दूसरों की सेहत की परवाह करेंगे और बीमारी की रोकथाम में सक्रिय रूप से भाग लेंगे। तभी हम वास्तव में एक स्वस्थ राष्ट्र बना पाएंगे।
प्रश्न: ये बहुत गहरे विचार हैं। आपने सामाजिक जिम्मेदारी और जीवनशैली परिवर्तनों का जिक्र किया। हमारी जीवनशैली हाल के वर्षों में काफी बदल गई है—अधिक तनाव, अनियमित दिनचर्या और अस्वास्थ्यकर आदतें। इन बदलते समय में हम स्वस्थ दिल कैसे बनाए रख सकते हैं?
उत्तर: युवा पीढिय़ां पहले की तुलना में कहीं अधिक तनाव का सामना कर रही हैं। लगातार तनाव रक्त वाहिकाओं में रक्त प्रवाह को बाधित करता है, जिससे ब्लॉकेज और हार्ट अटैक हो सकते हैं। दिल को स्वस्थ रखने के लिए मैं छह मुख्य बिंदुओं पर जोर देता हूं—
1. नियमित शारीरिक गतिविधि करें। साधारण व्यायाम जैसे चलना, जॉगिंग या साइकिल चलाना पर्याप्त है। भारी जिम रूटीन जरूरी नहीं है।
2. उचित नींद लें और समय पर उठें।
3. मानसिक और शारीरिक तनाव को यथासंभव
कम करें।
4. संतुलित आहार लें और अत्यधिक जंक फूड से बचें, खासकर जो घर से दूर रहते हैं।
5. ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्रॉल की नियमित जांच करें। इन्हें 25 साल की उम्र से जांचना शुरू करें, क्योंकि हार्ट की समस्याएं पहले से अधिक कम उम्र में आ रही हैं।
6. धूम्रपान और तंबाकू से पूरी तरह बचें।
इन छह कदमों का पालन करके आप लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं और हृदय संबंधी समस्याओं को रोक सकते हैं।
प्रश्न: अंत में, दिल की सेहत से जुड़ी आम गलतफहमियां या मिथक कौन से हैं जिन्हें आप हमारे पाठकों के लिए स्पष्ट करना चाहेंगे?
उत्तर: सबसे बड़ी गलतफहमियों में से एक है बायपास सर्जरी और स्टेंट जैसी प्रक्रियाओं को लेकर। कई लोग मानते हैं कि बायपास आखिरी उपाय है। वास्तव में, चुनाव पूरी तरह मरीज पर निर्भर करता है। दुर्भाग्य से, कई लोग गलत धारणा रखते हैं कि बायपास का मतलब सभी विकल्प खत्म हो गए या स्टेंट हानिकारक हैं, जो सच नहीं है। हर मरीज अलग है, और इलाज व्यक्तिगत होना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने डॉक्टर के निर्णय पर भरोसा करें और उसके निर्णय का सम्मान करें।
प्रश्न: तो डॉक्टर वह व्यक्ति है जिस पर हमें भरोसा करना चाहिए। बायपास के बाद क्या मरीज सामान्य जीवन जी सकता है?
उत्तर: बिल्कुल। उचित देखभाल, पुनर्वास और जीवनशैली में बदलावों के साथ मरीज अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या फिर से शुरू कर सकता है, सक्रिय रह सकता है और स्वस्थ जीवन का आनंद ले सकता है। कुंजी है मेडिकल सलाह का पालन करना और दिल की सेहत बनाए रखने के लिए सक्रिय कदम उठाना।
