बिजऩेस रेमेडीज/नई दिल्ली
वल्र्ड यूनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन (डब्ल्यूयूडी) ने नई दिल्ली स्थित संस्कृति स्कूल की साझेदारी में, दो दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम (एफडीपी) संपन्न किया। एफडीपी का उद्देश्य यह है कि स्कूल की शिक्षा में कला और प्रौद्योगिकी की केंद्रीय भूमिका को पहचानते हुए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुरूप अभिनव शैक्षणिक दृष्टिकोण के साथ, स्कूल के कला शिक्षकों को सशक्त बनाया जाए।
आर्टफुल माइंड्स थीम पर आधारित एफडीपी ने, रचनात्मक डोमेन के विभिन्न उद्योग विशेषज्ञों के साथ-साथ समकालीन भारतीय कला के प्रसिद्ध विजुअल आर्टिस्ट, पद्मभूषण पुरस्कार विजेता जतिन दास जैसे सम्मानित अतिथियों का स्वागत किया। इस प्रोग्राम में उद्योग जगत के नवीनतम रुझानों को लेकर अंतर्दृष्टियों से भरे व्याख्यान हुए, जिनमें एनईपी के सिद्धांतों के साथ सर्वांगीण शिक्षाशास्त्र को एकीकृत करने पर जोर दिया गया। नामचीन विशेषज्ञों में श्री आनंद मोय बनर्जी, सुश्री लुबना सेन, प्रोफेसर सुनील कुमार और सुप्रिया कोंसुल शामिल रहीं, जिन्होंने संस्कृति स्कूल में उक्त थीम के तहत ज्ञानवर्धक सत्र प्रस्तुत किए।
एफडीपी का उद्देश्य यह है कि कला के वैश्विक और भारतीय महत्व को पहचान कर, स्कूल-स्तर के शिक्षण कौशल को ऊपर उठा कर, शिक्षा की सामाजिक-आर्थिक/सांस्कृतिक कमियों की खोज करके, कला शिक्षकों की विविधतापूर्ण भूमिकाओं को स्वीकार करके तथा रचनात्मकता व छात्रों का जुड़ाव बढ़ाने के लिए अभिनव शिक्षण तकनीकों की बुनियाद डाल कर, कला की शिक्षा को और अधिक गुणवत्तापूर्ण बनाया जाए। स्कूल के पैंतीस कला शिक्षकों ने कला शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से, व्यावहारिक गतिविधियों और चर्चाओं में शामिल होकर प्रोग्राम में सक्रिय भाग लिया। एफडीपी के माध्यम से, प्रतिभागियों को अभिनव शैक्षणिक दृष्टिकोण, सर्वांगीण विकास, प्रौद्योगिकी व डिजाइन का एकीकरण तथा कला की शिक्षा के महत्व की वकालत करने जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं से परिचित कराया गया। कला की शिक्षा के महत्व को संबोधित करते हुए डब्ल्यूयूडी, सोनीपत के वाइस चांसलर प्रोफेसर (डॉ.) संजय गुप्ता ने टिप्पणी की, ‘डब्ल्यूयूडी का वाइस चांसलर होने के नाते मेरा मानना है कि कला की शिक्षा महज शिक्षण तकनीकों पर ही केंद्रित नहीं है; यह रचनात्मकता को जगाने, अभिव्यक्ति का पालन-पोषण करने तथा एक चमकीली और ज्यादा खूबसूरत दुनिया गढऩे के लिए व्यक्तियों को सशक्त बनाने की बात है। ‘आर्टफुल माइंड्स’ के माध्यम से हमारा उद्देश्य यह रहा है कि शिक्षकों को नवाचार के समर्थन हेतु प्रेरित करके, प्रतिभा को विकसित करके तथा ब्रश के हर स्ट्रोक, कैमरे की हर क्लिक, और दिल की हर धडक़न में संभावना के उसी असली सारतत्व को पुनर्परिभाषित करके, शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति को उजागर किया जाए।’
संस्कृति स्कूल, नई दिल्ली की प्रिंसिपल ऋचा अग्निहोत्री ने रेखांकित किया- कि स्कूल में कला रचनात्मकता और कल्पनाशीलता को बढ़ावा देती है, जो आधुनिक दुनिया में समस्या-समाधान और नवाचार करने का बुनियादी व जरूरी कौशल है।
यह छात्रों को विविध दृष्टिकोणों से अवगत कराकर, उनके मन में सहानुभूति और सांस्कृतिक जागरूकता पैदा करती है। कला को शिक्षा के साथ एकीकृत करने से सर्वांगीण शिक्षा समुन्नत होती है, ऐसे सक्षम व्यक्ति तैयार होते हैं, जो शैक्षणिक और व्यक्तिगत दायरों में फूलने-फलने के काबिल बनते हैं। इस नुक्ते को पहचानते हुए, एनईपी ने कला की शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाकर पेश किया है। यह कार्यशाला, कला के साथ अन्य विषयों का एकीकरण करने के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान देकर तथा छात्रों के लिए कला के विषय को करियर का एक विकल्प समझा कर शिक्षकों को लाभान्वित करेगी।
स्कूल ऑफ विजुअल आर्ट्स, डब्ल्यूयूडी के डीन प्रोफेसर राजन श्रीपाद फुलारी ने कलात्मक एकीकरण के माध्यम से शिक्षा का भविष्य गढऩे के लिए, सहभागिता वाले प्रयासों पर जोर दिया। उन्होंने कहा, कि आइए, हम सब मिलकर सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करें और नवप्रवर्तकों की अगली पीढ़ी को प्रेरणा दें। एनईपी 2020 के उद्देश्यों के अनुरूप सर्वांगीण दृष्टिकोण के साथ तैयार की गई एफडीपी ने, भारत के शिल्प और पारंपरिक कला को बढ़ावा देने पर अनूठा जोर दिया है। इसके मूल उद्देश्य थे- शैक्षणिक कौशल को उन्नत करना, शिक्षकों को सशक्त बनाना, पाठ्यक्रम के अभिनव मॉडल विकसित करना, नीति निर्माताओं और हितधारकों के साथ जुडऩा, नेटवर्किंग के अवसरों को बढ़ावा देना और अंतत: छात्रों के सर्वांगीण विकास व विकसित भारत के व्यापक लक्ष्यों में योगदान देना।
प्रोफेसर आनंद मोय बनर्जी ने द लिटिल प्रिंस के अंतर्दृष्टिपूर्ण संदर्भ देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया, जिसमें उन्होंने बच्चों की निष्कंटक दुनिया का अन्वेषण किया और उसके गहन निहितार्थों पर प्रकाश डाला।