कुंजेश कुमार पतसारिया | बिजनेस रेमेडीज/जयपुर। अपनी मेहनत और जुनून के दम पर हस्तकला के प्रोपराइटर शिवम् गुप्ता चार सौ पुरानी कला को नई टेक्नोलॉजी (ऑनलाइन) के जरिए विस्तार कर देश-दुनिया में लगे हुए हैं। इस कला के माध्यम से वे युवाओं को भी वर्कशॉप आयोजित कर सीखाने का प्रशिक्षण भी प्रदान करते हैं। इस कला को लेकर उन्होंने आगरा रोड पर वर्ष, २०१९ में आउटलेट शुरू कर अपनी पहचान कायम की है।
आपकी शैक्षणिक गतिविधियों को बताएं। कहां से शिक्षा ग्रहण की और कहां तक की है?
मैंने बी.कॉम की पढ़ाई पूरी कर अपने प्रोजेक्ट के तहत मैंने कारीगरों के साथ कई घंटों तक उनके साथ बैठकर काम को सीखा।
व्यवसाय करने की प्रेरणा आपको कहां से मिली? इसका अनुभव कहां से लिया और व्यवसाय में किस तरीके की सेवाएं देते हैं?
व्यवसाय की प्रेरणा मुझे कारीगरों से ही मिली। उनके साथ कई घंटों बैठकर काम को सीखा। काम में आ रही कमियों, दिक्कतों और एक्सपोर्ट में लग रहे समय को देखा। फिर इस खत्म होती कला की ओर अग्रसर होकर इसे आगे बढ़ाया और अपने दो आउटलेट खोलकर काम को अंजाम दिया। यह कला चार सौ पुरानी है, इसे जयपुर में महाराजा लेकर आए थे। इस कला के आर्टिस्ट धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं। हमारा गोल यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बताएं, यह ब्ल्यू पॉट्ररी की कला खत्म नहीं हो और ना डेड हो। हमारा उद्देश्य यही है कि इस कला को आगे तक पहुंचाएं, यह डाइंग आर्ट है। लोग इसे खत्म कर धीरे-धीरे सेरामिक में चले गए हैं। जोकि हस्तकला से भिन्न है।
वर्तमान में प्रतिस्पर्धा के युग में आपके समक्ष कोई चुनौतियां सामने आई, अगर आई तो उसका समाधान किस तरह से किया?
व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा होना तो निश्चित है, हरेक बिजनेस में यह तो आती रहती है। पर हम इस कला को ऑनलाइन इंटरनेशनल लेकर गए हैं। हमने वहां लोगों से कहा है कि आप घर बैठो आराम से, हम आपको सामान देते हैं। हम उनसे यह भी पूछते हैं कि हमारा सामान कैसा है? यह सामान सेरामिक से अलग है। यह हाथ से बनने वाली वर्षों पुरानी कला है, यह खत्म नहीं होनी चाहिए। जबकि यहां बैठे कई दुकानदार तीस से चालीस वर्ष पुराने हैं, लेकिन वे ऑफलाइन दुकान से दुकान तक ही सीमित हैं और सेरामिक से सामान तैयार कर लोगों को सेल करते हैं। हमारा ध्येय यही है कि ऑनलाइन एक्सपोटर्स को पूरी संतुष्टि देकर उन्हें सामान की डिलेवरी दें।
सामाजिक सरोकार के कोई कार्य किए हो तो बताएं?
हमारे कॉपरेट गिफ्ंिटग होती है, हम कारीगरों से सामान लेकर बनाते हैं और एनजीओ व फाउंडेशन को चैरिटी करवाने के लिए फ्री में उन्हें प्रदान करते हैं। इसके अलावा हम इस कला को वर्कशॉप के जरिए सिखाने का काम भी करते हैं ताकि आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों को कमाने का सम्बल मिल सके।
आपके आदर्श कौन हैं?
हमारे आदर्श कारीगर और ऊपर वाला ही है। वे कारीगर जो दिनरात अपने हाथों से पॉट्ररी को तैयार करने में लगे रहते हैं। इनके माध्यम से वह वर्षों पुरानी कला को प्रमोट भी कर पा रहे हैं।
भविष्य में व्यवसाय को कहां तक विस्तार देना चाहते हैं?
हमारा लक्ष्य है कि हमारी कला हर शहर, अलग-अलग स्टेट और भारत में इसकी सुंदरता लोगों तक पहुंचे। अभी जयपुर में हमारे दो आउटलेट हैं, एक आगरा रोड और दूसरा जनता कॉलोनी में।
नए युवाओं को व्यवसाय शुरू करने के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे, जिससे वह अपने व्यवसाय को उत्तरोतर बढ़ा सकें?
युवाओं से मेरा यही सुझाव है कि जो इस व्यवसाय से जुडऩा चाहते हैं, वे कारीगरों के साथ बैठकर काम करें, देंखे, उनसे सीखें और फिर अपने व्यवसाय को अंजाम दें। अगर वे ऐसा करते हैं तो निश्चित रूप से वह अपने व्यवसाय को उत्तरोतर आगे बढ़ा सकते हैं।
सरकार से आपकी क्या अपेक्षाएं हैं, ताकि आपके व्यवसाय को और गति मिल सके?
सरकार पूरी तरह से हमारे व्यवसाय को प्रोत्साहन दे रही है। हमें इस कला को प्रोत्साहन करने के लिए सरकार सब्सिडी भी देती है। इसके अलावा सरकार, समय-समय पर कारीगरों को भी मंच पर सम्मानित करती रहती है।
