बिजऩेस रेमेडीज/नई दिल्ली
भारत में कपास सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है और अनुमानित तौर पर यह देश1 के 60 लाख किसानों की आजीविका से जड़ा है। खरपतवार की वजह से पिछले कुछ साल2 के दौरान उपज में 40-85 प्रतिशत के बीच कमी आई है और इसके कारण किसानों को लगातार नुकसान झेलना पड़ रहा है।
गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी फसल सुरक्षा कारोबार, राजावेलु एनके ने कहा कि कपास के खेत में खरपतवार अवांछित मेहमान होते हैं। वे सूरज की रोशनी, पानी और पोषक तत्वों जैसे बहुमूल्य स्रोतों के लिए मुख्य फसल के साथ जमकर प्रतिस्पर्धा करते हैं। उनमें कपास के खेत में डाले गए लगभग 30-50 प्रतिशत उर्वरक के असर को खत्म करने और 20-40 प्रतिशत नमी1 सोख लेने की क्षमता होती है, इसलिए किसानों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे खरपतवार का शीघ्र पता लगाने पर ध्यान देने की आदत डालें ताकि उनकी उपज सुरक्षित रहे। .
इस संबंध में किये गए अध्ययनों से पता चला है कि रोपाई के बाद पहले 60 दिन महत्वपूर्ण2 होते हैं। इसलिए खरपतवार से होने वाले परेशानी को कम करने के लिए, रोपाई से लगभग सात दिन पहले हर्बीसाइड (खरपतवारनाशक) का उपयोग करने सलाह दी जाती है।
राजावेलु ने कहा, कि खरपतवारों की प्रतिस्पर्धा के कारण फसल की उपज में गिरावट आ सकती है। प्रारंभिक विकास के चरणों के दौरान खरपतवार की पहचान करने के लिए, विशेष रूप से उग रहे खरपतवार को उनकी पत्तियों और आकृतियों (चौड़ी व संकरी) के जरिये पहचानना जरूरी है। ऐसे में, गुणवत्तापूर्ण श्रम के अभाव में, तकनीक को अपनाना और उचित खरपतवारनाशक का उपयोग बेहद मददगार साबित होता है, जो पर्यावरण का ध्यान रखते हुए खरपतवार पर नियंत्रण में मदद करते हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, रोपाई से पहले मिट्टी का परीक्षण करना जरूरी है क्योंकि यह संभावित खरपतवार के प्रकार और उनकी तादाद की पहचान करने में मदद करता है, जिससे किसानों को नियंत्रण के उपायों की योजना बनाने में मदद मिलती है। इससे क्रॉप रोटेशन में भी मदद मिलती है, जिसके तहत कपास के पौधों की पंक्तियों के बीच अलग-अलग फसलें लगाने से खरपतवारों का जीवन चकबाधित होता है और इन पर नियंत्रण में मदद मिलती है।