- भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक
- दुनिया के बाजार में भारत की हिस्सेदारी करीब 13 प्रतिशत
बिजनेस रेमेडीज/जयपुर। देश के फुटवियर उद्योग पर इन दिनों संकट के बादल छा सकते हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है कि हाल ही में सरकार ने विदेशी निवेशकों को भारत में अपना उद्योग लगाने के लिए कहा है और निवेश करने के लिए कहा है। सरकार के इस फैसले से स्थानीय जूता उद्योग व छोटे कारोबार के सामने मुश्किलें पैदा होंगी और रोजगार पर संकट के बादल छाएंगे।
गौरतलब है कि भारत दस्तकारों का देश होने के नाते हमेशा से फुटवियर बनाने के अपने पारंपरिक शिल्प के लिए जाना जाता है। ग्रामीण दस्तकारों द्वारा पारंपरिक फुटवियर उद्योग ने हाल के दशकों में स्पष्ट रूप से प्रौद्योगिकी को दिल से अपनाया है और इससे जूता निर्माताओं और जूता पहनने वालों दोनों को काफी फायदा हुआ है। भारत विविधता से भरा देश है। इसलिए पूरे देश में पाए जाने वाले पारंपरिक फुटवियर भी विविध हैं। भारत में एमएसएमई (छोटे और मध्यम) उद्यमों को अपने निर्यात योगदान को बनाए रखने और इसे आगे बढ़ाने के साथ-साथ कई अन्य ऐसी गतिविधियों के माध्यम से फुटवियर उत्पादन को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभानी है।
भारतीय फुटवियर उद्योग में वृद्धि: भारत तेजी से बदलती जीवनशैली और खरीदारी के प्रति व्यवहार में बदलाव के कारण खुदरा क्षेत्र में उछाल है। बदलते खुदरा परिदृश्य और उन्नत शैलियों के साथ, भारतीय फुटवियर उद्योग भविष्य में अभूतपूर्व वृद्धि के लिए तैयार है। एमएसएमई को केंद्रीय सरकार की ओर से भरपूर सहयोग व समर्थन की आवश्यकता है। भारतीय एमएसएमई कुल फुटवियर उत्पादन का 80 प्रतिशत से अधिक उत्पादन करता है परन्तु अब जैसे-जैसे उद्योगों पर सरकारी औपचारिकता व वैधानिक अनुपालन की बाध्यता व प्रशासनिक लाइसेंस राज बढ़ रहा है, धीरे-धीरे बहुराष्ट्रीय कंपनियां का आधिपत्य बढ़ेगा वैसे ही फुटवियर उद्योग पर संकट के बादल छाएंगे।
भारत वर्तमान में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक: भारत वर्तमान में दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा फुटवियर उत्पादक है। यहां विश्व का 13 फीसदी उत्पादन होता है। साथ ही वैश्विक निर्यात का करीब 2.2 फीसदी हिस्सा भारत से किया जाता है। भारत में उत्पादन बढ़ाने और निर्यात में भी इजाफा करने की भी पर्याप्त क्षमता मौजूद हैं। यह क्षेत्र देश में सबसे ज्यादा रोजगार सृजन करने वाले क्षेत्रों में से एक बन गया है। वर्तमान में चमड़े के फुटवियर के स्थान पर दुनियाभर में गैर-चमड़े के फुटवियर सेगमेंट पर नए सिरे से ध्यान दिया जा रहा है। वैश्विक खपत के लिहाज से 86 प्रतिशत हिस्सा गैर-चमड़े का हो गया है। इसका लाभ देश को मिल सकता है। पारंपरिक चमड़े के क्षेत्र में पहले से ही अग्रणी, अब गैर-चमड़े के फुटवियर के उत्पादन में भी लगातार आगे बढ़ रहा है। भारत में गैर-चमड़े के फुटवियर उद्योग का करीब 75 प्रतिशत उत्पादन असंगठित क्षेत्र से आता है, जिसमें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) शामिल हैं।
विदेशी निवेशकों से होगी कड़ी स्पद्र्धा: अगर भारत में विदेशी कंपनियां उत्पाद के बाद करोबार करेंगी तो स्थानीय कंपनियों को कड़ी स्पद्र्धा का सामना करना पड़ेगा। मशीन से बनने वाले फुटवियर के कारण स्थानीय रोजगार पर भी संकट के बादल छाएंगे। रोजगार पर संकट से आर्थिक संकट भी खड़ा होगा। कहीं न कहीं फुटवियर उद्योग में निवेश का असर पारंपरिक भारतीय व्यवसाय व्यवस्था व अर्थव्यवस्था पर भी आएगा।
19 फुटवियर सप्लायर भारत में लगाएंगे प्लांट : गौरतलब है कि देश में अब फुटवियर का कारोबार बढ़ाने के लिए कंपनियों ने कमर कस ली है। इसके लिए 19 कंपनियां अब भारत में अपना उत्पादन बढ़ा रही हैं। इन कंपनियों में दुनिया के कई प्रमुख ब्रांड शामिल हैं। इनमें नाइकी, एडिडास, प्यूमा, न्यू बैलेंस और रिबॉक जैसे ब्रांड शामिल हैं। जानकारी के अनुसार, ये कंपनियां अपना ज्यादातर उत्पादन चीन, ताइवान, वियतनाम और पुर्तगाल में करती हैं। अब इन देशों के 19 बड़े सप्लायरों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। ये बड़े ब्रांड्स भारत में करीब चार हजार करोड़ रुपए का निवेश करेंगे।
अभी तक भारत इन ब्रांड्स को करता है आयात: वर्तमान में भारत इन ब्रांड्स को आयात करता है। अब भारत में इन ब्रांड्स का निर्माण होने से भारत की आर्थिक वृद्धि होगी और देश में रोजगार बढ़ेंगे। जिस तरह से एपल के लिए भारत में कॉन्ट्रेक्ट मैन्यूफ्रेक्चरिंग स्मार्टफोन के पाट्र्स बनाते हैं। उसी तरह ग्लोबल फुटवियर कंपनियां के लिए भी देश में कॉन्ट्रेक्ट मैन्यूफ्रेक्चरिंग की जाएगी। कैजुअल फुटवियर की दुनिया की सबसे बड़ी कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरिंग पोउ चेन कॉर्पोरेशन के साथ ही एक और प्रमुख कंपनी होंर फू इंडस्ट्रियल ग्रुप भी भारत में अपने प्लांट लगा रहे हैं।
– विदेशी कंपनियां जितनी भी आ रही है। वे कम से कम 3 से 4 लाख पेयर फुटवियर का प्लांट भारत में लगाएंगी। अगर इतने ही पेयर भारत एमएसएमई बनाती हैं। तो बड़ा मानव श्रम लगेगा। भारत में 10 हजार जोड़ी फुटवियर बनाने के लिए करीब 500 लोगों का रोजगार मिलता है। इसके अलावा 1000 के करीब इन डायरेक्ट एम्पलायमेंट मिलता है। अगर विदेशी निवेशक इतने ही फुटवियर का निर्माण करेगा तो 10 हजार पेयर में 500 की जगह 100 आदमी। विदेशी कंपनियो के पास फुली ऑटोमेशन है। इन डायरेक्ट में भी 1000 की जगह 100-125 लोग ही रह जाएंगे। भारत एक बड़ी जनसंख्या वाला देश है। वहीं जो विदेशी निवेश भारत आएगा वहां पर कुछ लाख या कुछ करोड़ की जनसंख्या है। वहां पूरा काम रोबोट या पूरी तरह से ऑटोमैटिक मोड में होता है। अगर ये कंपनियां भारत में आएंगी तो स्थानीय फुटवियर बाजार पर संकट के बादल मडराएंगे।
– शिखर चंद बैराठी, अध्यक्ष, राजस्थान फुटवियर मैन्युफ्रेक्चरर्स एसोसिएशन
– फुटवियर मार्केट में विदेशी ब्रांड्स का आना किसी भी तरह से अच्छा नहीं कहा जा सकता। फुटवियर मार्केट में डेंट तो आएगा और भारतीय कारोबारियों के व्यापार पर असर आएगा। भारत में फुटवियर का काम पारिवारिक है। शुरुआत में लोगों ने अपनी आजीविका चलाने के लिए यह कार्य शुरू किया। बाद में उनका यह मुख्य व्यवसाय बन गया। ऐसे में अगर भारत में विदेशी फुटवियर कंपनियां अपना कारोबार फैलाएंगी तो निश्चित ही इसका असर पारंपरिक भारतीय कारोबार पर आएगा और व्यवसाय पर असर आएगा। सरकार को इस विषय में गंभीरता से सोचना चाहिए और फुटवियर कारोबारी करने वाली विदेशी कंपनियों के लिए एक सही नीति का निर्माण करना चाहिए, जिससे पारंपरिक भारतीय फुटवियर बाजार इससे प्रभावित न हो।
– सी.पी.माखीजानी, ऑनर, यूएस एजेंसीज प्राइवेट लिमिटेड, जोधपुर
– विदेशी कारोबारियों के लिए भारतीय बाजार को खोलने से दो बातें होंगी। अगर विदेशी कंपनियां भारत में जूता बनाएंगी तो वे अपने साथ टैक्नोलॉजी भी लाएंगे। दूसरे अगर वे यहां कारोबार करेंगी तो निश्चित ही भारतीय फुटवियर कारोबारियों पर इसका असर आएगा। हम लोग अपने रिर्सोस फुल नहीं हैं कि विदेशी कंपनियों का मुकाबला कर सकें। विदेशी फुटवियर कंपनियों के पास टैक्नोलॉजी भी एडवांस होगी। जबकि हमारे पास न तो वैसी टैक्नोलॉजी है और न ही वैसे संसाधन हैं। इसलिए हम कह सकते हैं विदेशी कंपनियों के भारत आने से भारतीय कारोबारियों को फायदा कम होगा नुकसान ज्यादा होगा।
– नरेंद्र डूमरा, ऑनर, अवी रबर, बीकानेर
