बिजनेस रेमेडीज/जयपुर। दंत चिकित्सा (डेंटिस्ट्री) पहले कम पसंद किया जाने वाला चिकित्सा क्षेत्र माना जाता था, लेकिन अब यह स्वास्थ्य सेवाओं की सबसे आधुनिक और विशेष शाखाओं में गिनी जाती है। इस बदलाव के पीछे वे डॉक्टर हैं जो केवल कौशल ही नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और दूरदृष्टि भी अपने काम में लाते हैं। ऐसे ही एक नाम हैं डॉ. अरविन्द बंसल, जो टोंक रोड, जयपुर पर बंसल डेंटल हॉस्पिटल के संस्थापक हैं। उनका सफर प्रेरणादायक है—राजस्थान के छोटे कस्बे से निकलकर जयपुर में सबसे भरोसेमंद दंत चिकित्सालय स्थापित करना आसान नहीं था। इस विशेष बातचीत में उन्होंने अपने जीवन, क्लीनिक की विशेषताओं, चुनौतियों और भारत में दंत चिकित्सा के भविष्य पर खुलकर चर्चा की।
प्रश्न : आज के समय में दंत चिकित्सक बनना आसान नहीं है। आपको इतनी पहचान कैसे मिली? आपकी शिक्षा और सामाजिक यात्रा कैसी रही?
उत्तर: मैं करौली जिले के नादौती कस्बे से हूं। मेरे पिताजी जीवन भर किसान रहे और साथ में एक छोटी किराना दुकान भी चलाते थे। मैंने दंत चिकित्सा इसलिए चुनी क्योंकि डॉक्टर बनने से समाज की सेवा करने और सम्मान पाने दोनों का अवसर मिलता है। 1995 में मैं गंगापुर सिटी पढ़ाई के लिए गया। 2003 में मैंने पीएमटी (प्री मेडिकल टेस्ट) पास किया और उदयपुर स्थित पैसिफिक डेंटल कॉलेज में बी.डी.एस. (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी – दंत शल्य चिकित्सा स्नातक) में प्रवेश लिया। इसके बाद मैंने पुणे के सिम्बायोसिस विश्वविद्यालय से क्लिनिकल रिसर्च और मेडिको-लीगल स्टडीज में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया और फिर पी.जी. (मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी) पेरियोडॉन्टोलॉजी और ओरल इम्प्लांटोलॉजी में पूरी की। 2009 में मैंने जयपुर में गांधी नगर रेलवे स्टेशन के सामने किसान मार्ग पर बंसल डेंटल हॉस्पिटल शुरू किया। तब से यह अस्पताल लगातार मरीजों के विश्वास और आधुनिक तकनीक की मदद से आगे बढ़ रहा है।
प्रश्न : बंसल डेंटल हॉस्पिटल अन्य क्लीनिक से कैसे अलग है?
उत्तर: हमारी सबसे बड़ी खासियत है मरीजों से जुड़ाव। हम जयपुर के शुरुआती हॉस्पिटल में से एक थे जहाँ फिक्सड दांत लगाने की प्रक्रिया और तुरंत दंत प्रत्यारोपण (इम्प्लांट सर्जरी) केवल 72 घंटे में किया जाता था। यह उन मरीजों के लिए बहुत बड़ा बदलाव था जो जल्दी और सुरक्षित परिणाम चाहते थे। हम पूरी तरह पारदर्शिता पर विश्वास करते हैं। हर मरीज को उसकी स्थिति, इलाज के विकल्प और संभावित दिक्कतें साफ-साफ बताते हैं। इससे विश्वास बनता है और मरीज आत्मविश्वास से निर्णय ले पाता है। हमारा मूलमंत्र है – सेवा भाव और ईमानदारी से कभी समझौता नहीं।
प्रश्न : आजकल डॉक्टरों पर गलत इलाज के आरोप लग रहे हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
उत्तर: डॉक्टर का पहला कर्तव्य है मरीज की सेवा करना। हमें ईमानदारी से जांच करनी चाहिए, सही समस्या बतानी चाहिए, फायदे और नुकसान दोनों समझाने चाहिए और लिखित सहमति (इनफॉम्डर्ड कंसेंट) लेनी चाहिए। आज के समय में डॉक्टरों पर आरोप बढ़े हैं, लेकिन हर आरोप सही नहीं होता। अधिकतर डॉक्टर का उद्देश्य केवल मरीज को ठीक करना और उसकी मदद करना ही होता है।
प्रश्न : भारत की चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था विदेशों से कैसे अलग है?
उत्तर: भारत की चिकित्सा सेवाएँ बहुत किफायती हैं। यहाँ जांच और इलाज आम लोगों की पहुंच में है। यही कारण है कि भारत मेडिकल टूरिज्म (चिकित्सा पर्यटन) का बड़ा केंद्र बन गया है। यहाँ केवल तकनीक पर ही नहीं, बल्कि मरीज की संतुष्टि और सस्ती लागत पर भी ध्यान दिया जाता है।
प्रश्न : कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) तकनीक को आप दंत चिकित्सा में कैसे देखते हैं?
उत्तर: तकनीक बहुत जरूरी है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) अगला बड़ा कदम है। इससे सर्जरी तेज और आसान होगी। पहले के समय में बैंक भी कंप्यूटर का इस्तेमाल नहीं करते थे, लेकिन समय के साथ उन्होंने बदलाव को अपनाया। इसी तरह, दंत चिकित्सा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) सर्जरी को और तेज़ और आसान बना सकती है। ज्यादा मरीजों का इलाज कम समय में हो सकेगा। लेकिन मेरा मानना है कि अंतिम निर्णय हमेशा डॉक्टर का होना चाहिए। चाहे तकनीक कितनी भी आधुनिक क्यों न हो, डॉक्टर का अनुभव और निर्णय लेने की क्षमता कभी बदली नहीं जा सकती।
प्रश्न : आपके अस्पताल में इस्तेमाल होने वाले उपकरण विदेशी हैं या भारतीय?
उत्तर: हमारी प्राथमिकता है मरीज को सबसे अच्छी सुविधा देना। अगर विदेश से उपकरण मंगाने की जरूरत होती है तो हम मंगाते हैं। और जहां भारतीय उपकरण अच्छे होते है तो वहीं उपयोग करते हैं। असली मायने रखता है सेवा की गुणवत्ता।
प्रश्न : आपने जयपुर को ही हॉस्पिटल शुरू करने के लिए क्यों चुना?
उत्तर: मेरे परिवार के सदस्य जयपुर में डॉक्टर थे, इसलिए मेरा लगाव शहर से पहले से था। पढ़ाई और करियर दोनों के लिए जयपुर सबसे उपयुक्त लगा। जब मैंने प्रैक्टिस शुरू की थी तब राजस्थान में दंत चिकित्सा के प्रति जागरूकता बहुत कम थी, लेकिन जयपुर के लोग अपेक्षाकृत अधिक जागरूक थे। इसलिए जयपुर ही मेरा पहला चुनाव बना।
प्रश्न : शुरुआत में आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर: किसी भी नए डॉक्टर के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है मरीज का भरोसा जीतना। शुरुआती 1-2 साल मुश्किल थे। लेकिन ईमानदारी और मेहनत से धीरे-धीरे पहचान बनी और मरीजों ने विश्वास जताया।
प्रश्न : बी.डी.एस. (दंत शल्य चिकित्सा स्नातक) को एम.बी.बी.एस. (स्नातक चिकित्सा और शल्य चिकित्सा) से कम प्रतिष्ठित क्यों माना जाता है?
उत्तर: एम.बी.बी.एस. से सरकारी नौकरी के अवसर ज्यादा मिलते हैं, इसलिए छात्र इसे ज्यादा चुनते हैं। डेंटिस्ट्री में अधिकतर निजी प्रैक्टिस करनी पड़ती है। लेकिन मेरा मानना है कि डेंटिस्ट्री आत्मनिर्भरता देती है। मेहनत और कौशल से आप अपनी पहचान खुद बना सकते हैं।
प्रश्न : आपके अस्पताल में रोज कितने मरीज आते हैं और टीम कितनी बड़ी है?
उत्तर: रोजाना औसतन 10-15 मरीज आते हैं। इनमें आधे नए और आधे पुराने होते हैं। हमारी टीम में 3 डॉक्टर और 4 सहयोगी स्टाफ हैं, जो मिलकर बेहतर सेवा देते हैं।
प्रश्न : युवाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: जो भी करें, उसमें उत्कृष्टता पाने की कोशिश करें। दंत चिकित्सा बहुत बड़ा क्षेत्र है जिसमें अपार संभावनाएँ हैं। इसे केवल पेशा न मानें, बल्कि विज्ञान और सेवा को जोडऩे का अवसर समझें।
प्रश्न : सरकार से आपकी क्या उम्मीदें हैं?
उत्तर: दंत चिकित्सा बहुत जरूरी है, लेकिन सबके लिए सुलभ नहीं है। सरकार को दांतों का ईलाज केवल एस्थेटिक ट्रीटमेंट न मानकर बल्कि जरूरी ईलाज समझकर सरकार को दंत बीमा (डेंटल इंश्योरेंस) को नियमित करना चाहिए। इससे पूरे भारत में गुणवत्तापूर्ण दंत सेवाएँ हर वर्ग तक पहुँच पाएंगी।
