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देश में रामराज्य के मूल्य, आदर्श और प्रतिमान गढ़े जाएं : स्वामी रामदेव

by Business Remedies
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बिजऩेस रेमेडीज/हरिद्वार

शक्ति, मर्यादा व साधना का महापर्व चैत्र नवरात्रि व रामनवमी के उपलक्ष्य में वेदधर्म व ऋषिधर्म के संवाहक परमपूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज के 30वें संन्यास दिवस के पावन अवसर पर परम पूज्य स्वामी श्री गोविन्ददेव गिरि महाराज के श्रीमुख से हिन्दवी स्वराज के प्रणेता छत्रपति शिवाजी महाराज की यशोगाथा ‘छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’ का समापन पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ। पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज व श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण महाराज ने सभी देशवासियों को रामनवमी की शुभकामनाएँ दीं और व्यासपीठ को प्रणाम करते हुए पूज्य गोविन्ददेव गिरि जी महाराज से कथा प्रारंभ करने का अनुरोध किया।

कथा के समापन अवसर पर पूज्य स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज ने कहा कि रामायण और महाभारत के सभी गुणों को एकत्र करने पर जो समुच्चय बनता है, वह शिवाजी महाराज हैं। एक हजार वर्ष की गुलामी के पश्चात छत्रपति शिवाजी महाराज पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के स्वाभिमान को जगाया, अखिल भारत का विचार किया। उनका दृष्टिकोण था कि हमारे सभी तीर्थ मुक्त होने चाहिए और हिन्दुत्व का स्वाभिमान हम सबके भीतर जगना चाहिए। उनके द्वारा स्थापित हिन्दवी साम्राज्य के 350 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं और मेरी वर्षों की इच्छा थी कि रामायण, भागवत आदि कथाओं की भाँति छत्रपति शिवाजी महाराज की भी कथा होनी चाहिए ताकि लोगों को सदाचार, पुरुषार्थ और राष्ट्रीय भावना का निरंतर संदेश मिलता रहे।

कार्यक्रम में स्वामी रामदेव महाराज ने कहा कि इस कथा का उद्देश्य शिवाजी महाराज ने जो शौर्य, पराक्रम तथा प्रचण्ड पुरुषार्थ किया वही प्रचण्ड पुरुषार्थ देश के लोगों में गौ-माता, भारत माता की रक्षा व अखण्ड भारत के निर्माण के लिए जगे। ऐसे महापुरुष के शौर्य से सनातनधर्मी जगें और इस देश को शिक्षा, चिकित्सा, आर्थिक व वैचारिक सांस्कृतिक गुलामी से आजादी दिलाएँ। 1835 में मैकाले जो पाप करके गया, उस शिक्षा की गुलामी के साथ-साथ रोगों-भोगों, आर्थिक व विलासिता की गुलामी से भी मुक्ति मिले। बहुमत के आधार पर देखा जाए तो हमारा संकल्प है कि पूरे विश्व में लगभग 500 करोड़ से अधिक सनातनधर्म को मानने वाले लोग तैयार हों, क्योंकि सनातन धर्म एक जीवन पद्धति है। इस रामनवमी पर हमारा संकल्प है कि इस राष्ट्र में रामराज्य आए और पूरे विश्व में रामराज्य के मूल्य, आदर्श और प्रतिमान गढ़े जाएं। उन्होंने कहा कि रामराज्य हमारे आचरण की श्रेष्ठता से ही आएगा। राम हमारे आचरण की पवित्रता, अवतारी सत्ता और उपास्य देव हैं, हम राम-कृष्ण व ऋषि-ऋषिकाओं की संतान हैं। राम एक आदर्श पिता, पुत्र, शासक और तपस्वी हैं। हमारे मन के भीतर राम और सीता का विग्रह है। हम राम-सीता, लक्ष्मी-नारायण, भगवती, उमा-महेश्वर के साक्षात विग्रह, मूर्त्त रूप व उनके उत्तराधिकारी बनकर उन सबके सपनों को साकार करने वाले बनें।

इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण महाराज ने कहा कि आज राम नवमी का पावन पर्व है, भगवान् श्रीराम आपके जीवन में प्रसन्नता, उल्लास, निरोगता और जीवन की सम्पूर्ण खुशियां प्रदान करें। उन्होंने कहा कि आज पतंजलि योगपीठ के अभिभावक, संकल्प, शिल्पी श्रद्धेय स्वामी जी का 30वाँ संन्यास दिवस है। एक तरह से मैं कहूं तो हम सबके बापू आज तीस वर्ष के हो गये हैं। उन्होंने कहा कि पतंजलि में हमारे ऋषियों के वंशधर, ऋषि परम्परा के भविष्य तैयार किए जा रहे हैं। उस ऋषि परम्परा को आगे बढ़ाना है, जीवित और जागृत रखना है।

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