सामान्यतया भारत देश में हर जगह जुगाड़ का कार्यक्रम देखने को मिलता है। जनसंख्या के अनुसार देश में युवा शक्ति बढ़ी है, पुराने लोगों की ज्यादातर जुगाड़ की सलाह हर जगह काम कर जाती है। प्रोफेशनल्स को ही इम्प्रोफेशनल में तब्दीली कर हर कार्य ईको फ्रेंडली की जाने की कोशिश की जाती है जहां गुणवत्ता का वदक्षता का अभाव हो जाता है। कम पैसों में जुगाड़ की कोशिश बनाई जाती है। सरकारी लोगों को भी पता नहीं चलता व फरमान जारी होते रहते हैं। कई तो नकल में अकल लगाकर ही गणित बिठा देते हैं। आजकल कंप्यूटर क्षेत्र में ऐसा ही हो जाता है। हाल ही गलत निर्णय से गोरखपुर में शिशुओं के अस्पताल में ६३ मौतें हो गई, जहां प्रबंधन हर जगह गलत निर्णय से ऐसे दर्दनाक पैबंद ढंूढ रहा है। कोई गलती मानने को तैयार ही नहीं है। सरकार की भी ऐसी ईमानदारी कभी-कभी देखने को मिलती है। हालात ऐसे भी होते हैं कि लोग एक-दूसरे को गुमराह करने की कोशिश में लगे होते हैं। इससे पूर्व चीन की चीखें सुनाई दे रही थी जहां भारतीय मीडिया भी बेलगाम जोश में लिप्त रहा। सच झूठ का पीछा करता रहता है, मगर झूठ पकडऩे तक काफी विलंब होता है।
देश में कौशल, उच्च कौशल प्रतिभावानों की भारी कमी है। उच्च कौशल वाले भी नौकरी हेतु भाग्य भरोसे ही चल रहे हैं। रोजगारो में ६५ फीसदी की भारी कमियां है। देश में आरक्षण का लोचा बहुत तगड़ा है। इससे कईयों की नौकरियां हाथ में आई हुई भी फिसल जाती है। ये आरक्षण की वजह से ही (जो अप्रत्यक्ष रुप से जातिवाद को बढ़ा रहा है) उच्च कौशल की कमियां ज्यों की त्यों हैं। कार्य प्रणाली में भी दोष रहता है जहां पारदर्शिता के अभाव में भ्रष्टाचार भी होता रहता है। कईयों को अदालतों में ही दस्तक देनी पड़ती है जहां प्रशासानिक न्याय देरी से मिलता है व नौकरियां लटकी ही रहती हैं। पूर्व से देश में वर्ष ९० से भ्रष्टाचार में ही वृद्धि पाई गई। जबसे ही कार्यचेतना, रोजगार सृजन निर्णयन का अभीव ही देखा गया।
पीएम मोदी की सरकार के आने के बाद में स्थितियां-परिस्थितियां में सुधार देखा गया है, परंतु रोजगार सृजन, उच्च कौशलता व आरक्षण की प्रवृत्तियों में सुधार नहीं देखा जा रहा है। रोजगार सृजनों में इंडीविजियुल्य, ग्रुप टेस्टस, एप्टीटï्यूट, प्रोब्लम सॉल्विंग पजल्स, कैलीब्रेशन, एबिलिटीज, एचीवमेंटï्स, प्रशिक्षण, योग्यता मैरिटï्स, सेंसरी कैपेसिटीज के सिग्नीफिकेशन्स देखे जाने आवश्यक होते हैं।
उच्च कौशलता में सोशियलिटी, डिप्रेशन से मुक्त, स्टेबिलिटी, हैप्पी गो लक्की, एक्टिवनैस, एसीडेन्ट, सेल्फ कॉफिडेंस, ऑब्जेक्टिव, कॉआपरेटिव, लॉयल्टि, एनर्जेटिक, पॉवर ए क्यू, प्लानफुल, बुद्धमान, रेस्पोंसिबल, रैक्पोंसिव, स्किल जैसे तमाम फैक्टर्स आदि देखे जाने जरुरी होते हैं। कुल मिलाकर यह कहना उचित होगा कि सही निर्णय हेतु ये जुगाड़ का एलिमेंट हटाना जरुरी है ताकि नियोक्ता-विकास का सही निर्णयन बने एवं गलतियां ना हों। यहां पारदर्शिता नहीं आई तो फर्जीवाड़ा अनियमन गलतियों का होना स्वाभाविक हे। ईमानदारी व मेहनत और समय ही व्यक्ति व देश की सबसे बड़ी पंूजी होती है। अत: यहां पारदर्शिता की बेहद परिपूर्णता की आवश्यकता है। मोदी आजकल इसी पर बल दे रहे हैं।
मोदी सरकार के सही निर्गमन से सोलर एनर्जी, कोल प्रोडक्शन्स, ऊर्जा, टेलीकोम सेक्टर, शेयर बाजार, डिजिटलीकरण, जीएसटी, बैंकिंग सुधार में उत्साहजनक वृद्धि लाभ से देश के विकास को अच्छा लाभ मिलने लगा है। जीडीपी वृद्धि की सुनिश्चितता में स्थिरता बनी है। देश की आर्थिक नई नीतियां को संबल मिला है। मोदी के क्रांतिकारी विकास निर्णयन से देश में हालिया आर्थिक मजबूती का उदय होने लगा है। मोदी द्वारा की गई नोटबंदी से १.६ से १.७ लाख करोड़ की असामान्य नकद राशि जमा हुई लगभग कुछ विशेष खातों में। यहां इससे सफल जमा के सालाना आधार पर १४.५ फीसदी वृद्धि देखी गई जो लगभग पिछले साल से साढ़े फीसदी का अंतर जता रही है। अब इससे वित्तीय बचत और पंूजी बाजार में इस्तेमाल संभव होगा जो कि एक बेहद सकारात्मक प्रभाव दर्शाएगा। ये मोदी का कालेधन पर करारा प्रहार है।
