Wednesday, September 18, 2024
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ये कैसी कबड्डी, नोटबंदी

by admin@bremedies
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इन दिनों चर्चा है नोटबंदी के परिणामों की, जहां भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। डिजिलिटीकरण भी अब भारत की एक पहचान बन गया है। नोटबंदी को थोड़ा सरल समझकर समझना आवश्यक है। देश का मीडिया इतना ओपन है कि सारी सर्जरी व्यवस्था की कर देता है। डोकलाम विवाद पर भी ऐसा ही कुछ हुआ। मीडिया भी कई बार हार-जीत की कबड्डी खेल जाता है। डोकलाम विवाद ऐसा बना दिया गया जहां लगने लगा कि चीन आक्रमण करने वाला है। भारत की चीन से ३५०० किलामीटर और पाकिस्तान से २९०० किलोमी सीमा लगती है। मोदी ने बड़ी ही राजनीतिक सूझबूझ तथा कूटनीति विशेषज्ञता और अपने विवेक से इसे सुलझाया है। लेकिन मीडिया अपनी कबड्डी से स्वयं की अनुशंषा में फूले नहीं समा रहा। उसने इसे हार-जीत का अम्लजामा पहना दिया है। ऐसे में पैसन की जरुरत होती है। माना कि चीन महाशक्ति है, परंतु आज भारत भी कमजोर नहीं है। लेकिन दुश्मन को कभी भी कमजोर नहीं समझना चाहिये। स्वयं को अलग दिखाने के फेर में गलत समीक्षा भी नहीं होनी चाहिये। ये जानना यहां बेहद जरुरी है कि सीमाओं के दृष्टिकोण एवं उसकी ताकत का मूल्यांकन किया जाये। हमें भी देखना होता है कि हमारी एक्जिसटेंस क्या है। बाधाएं, विवाद, असहजता, लड़ाई, झगड़े हमेशा होते रहते हैं, लेकिन यहां हमें अपने देश के बारे में व देशभक्ति के बारे में ज्यादा सोचना होगा। इसीलिये मोदी बार-बार देशभक्ति का नित्य आव्हान करते हैं। अगर हमारी देशभक्ति सच्ची सही है तो यही हमारी विजय है।
दूसरी ओर हाल ही रिजर्व बैंक ने सालाना रिपोर्ट जाहिर की। जहां अब लोगों ने इस पर आरोप प्रत्यारोप लगाने आरंभ कर दिये हैं। इसमें दर्शाया है कि १५.४४ लाख करोड़ रुपये में से १५.२८ लाख करोड़ रुपये वापस बैंक में आ गये। सरकारी दावा कि कालाधन, नक्सलवाद, आतंकवाद व नकली करेंसी पर लगाम लगेगी गलत साबित हो रहा है। तीन लाख करोड़ का कालाधन का दावा भी गलत साबित हो रहा है। विरोधी अब तो इसे यूटर्न बता रहे हैं, कि नई टॉफी न्यू इंडिया के लिये पकड़ा दी गई है। ये मात्र पिंजरों के तोतों की शिनाख्त की कार्यवाही बनकर रह गई। प्रश्न मूलत: ये है कि नोटबंदी की कबड्डी कैसी रही है। मोदी सरकार ने नोटबंदी लैसकैश व्यवस्था के लिये की थी। सरकार की सोच थी कि इससे नकली करेंसी पकड़ी जाएगी तो क्या ये संभव हुआ। इसके आंकड़े नहीं आए हैं कि कितनी नकली करेंसी पकड़ी गई। ज्यादातर लोगों ने काले को सफेद बना लिया तो कईयों ने जमीन खरीद, मकान खरीद, सोना खरीद, संपत्ति-परिसंपत्तियों खरीदने में अपना कालाधन खपा कर सफेद कर लिया। जीएसटी पर भी सरकार ने एक फेसिलिटेटर के रुप में कार्य किया है। कारोबारी व्यवस्थाओं में ये कदम प्राय: प्रमुख घटक होते हैं। नोटबंदी समाज में समाज के साधनों के लिये सरल बनाने हेतु की गई। डिजिलिटीकरण, कैशलेस व्यवस्था के लिये इसे मजबूती दी गई। पूर्व में हो रहे भ्रष्टाचारों के करतबों को रोकने के लिये ये कवायद की गई। व्यावहारिक कठिनाईयों आती रहती है, परंतु लैसकेश व्यवस्था में पारदर्शिता आवे। इसीलिये नोटबंदी की गई। नोटबंदी मूल्य रुप से अमीर व गरीब के मध्य गहरी खाई को भरने की कवायद थी। विकास कल्याणकारी कार्यों में तेजी लाने के लिये इसे किया गया। ये सब परोक्ष रुप से सामाजिक संरचना से भी जुड़ा एक कार्य है। रोजगार-श्रम पर कालाधन कैश कहीं बाधक ना बने इसीलिये ये कवायद जरुरी समझी गई। आज कालाधन यदि कहीं है भी तो उसे सफेद करना मुश्किल होगा, जिससे पारदर्शिता ईमानदारी पनपी है। ये एक नवभारत के निर्माण की सामाजिकता भी है। कालेधन की लगाम मात्र ये ही नहीं है अभी तो और कई नई कवायदें की जानी है। आज का पंूजीवादी चरित्र साम्राज्यवादी वित्तीय पंूजी का रुप ले चुका है। जिसे इस नोटबंदी की कवायद से सुधारा गया। अत: ये कहना कि नोटबंदी गलत की गई, सोचना अनुचित है। कारपोरेट सेक्टर इसका माध्यम हो सकता है जहां पंूजीवाद घुस गया है। अत: ये कवायद समाधान का पहला कदम था। भ्रष्टाचार रोकने में ये एक आरंभिक कदम था, आप इसे गलत कदम नहीं बता सकते।
औद्योगिक, विकास, नियमन पारदर्शिता के लिये इस वैद्यानिक वातावरण का बनाना था, जिसके लिये नोटबंदी का आरंभिक कदम उठाया गया। भ्रष्टाचार, वस्तु का गुण, उत्पादकता, मूल्यवृद्धि आदि सभी संभावनाओं में जो उस समय आशंकाएं दिखी, इसी वास्ते नोटबंदी की कवायद की गई। अब आयकर विभाग आगे की जांच परीक्षण कर, पुनरावलोकन करते हुए, कालेधन को पकड़ेगा। इस कवायद से राजकोषीय व्यवस्था में भी सुधार आया है। भारत में क्योंकि कराधान व्यवस्थाएं पहले से ही मौजूद है, इसीलिये अग्रिम व्यवस्थाओं के तालमेल को देखते हुए ये आरंभिक कदम था। इससे चोरी नकदी का भी पता लग पाया, हीनार्थ प्रबंधन को कम करने में भी मदद मिली। विषमताओं का भी पता लगा और नकदी उपयोग के नियंत्रण में भी भारी मदद मिली। क्रेताओं के स्वयं के सहयोग से चोरियों पकड़ी गई। अपराधों के रुप में भारी राशि बरामद हुई। करों के छिपाये श्रोत उजागर हुए एवं आर्थिक व्यवस्थाओं को नीतिगत बनाने में और उसे न्यायसंगत करने के लिये ये कदम सराहनीय साबित हुआ।

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