माना कि हर शख्स परेशान सा क्यंू है, परिंदे भी उड़ान में हैं, लेकिन तीर भी हर शख्स की कमान में है। वक्त के झोंके आते रहते हैं, सब पत्ते उड़ा ले जाते हैं। लोग गुलशन में जाना चाहते हैं तो कोई शहर में। मगर दिल को सुकून तभी मिलता है जब वो दुनिया में आना चाहता है। बदलाव के इस नए जमाने में देश में अभी सभी को आरक्षण की जरुररत आन पड़ी है। आज हालात ये हैं कि ओबीसी आरक्षण में ही ३९ करोड़ की आबादी और जुड़ गई है। इस समय देश की संपूर्ण आबादी में से ५४ फीसदी आरक्षण में है तथा शेष ४६ फीसदी सवर्णों में। देश में इससे असवर्णों का बहुमत सुनिश्चित हो रहा है। तीर हर शख्स की कमान में है, मगर सवर्ण मात्र अभी भी आन बाम और शान में ही है। राजनीतिक वोटों की दृष्टि से भी ये वर्ग (ओबीसी) अब वोटों के लिये निर्णायक साबित होंगे। अकेले यूपी में ही ओबीसी के २६ सांसद है। क्रीमी लेयर भी चार बार बढ़ी है और तो और अब धौलपुर-भरतपुर में जाट भी राजस्थान में ओबीसी का लाभ ले सकेंगे। इस सबसे लगता है कि जब-जब आंदोलन तेजी पकड़ता है तो सरकारें भी नरम हो जाती है।
भारत में शिक्षिम सवर्ण वर्ग राजनीति को कम स्वीकारता है जबकि यूरोप में राजनीतिक एजेंडा ज्यादातर मध्यम वर्ग के लोग तय करते हैं। भारत में तो समाज भी प्रतिस्पद्र्धा में है। यहां ज्यादातर लोग आजीविका कमाने में ही ज्यादा वक्त लगाते हैं। यहां वोटिंग निचले स्तर पर है मगर संख्या हावी रहती है। मोदी भारत में राजनीति धर्म आधारित कर आम आदमी की प्रत्यक्षदर्शिता चाहते हैं। उनका फॉर्मूला एक ये भी है कि प्रत्यक्षदर्शी लोकानां सर्वदर्शी भवेत्रर/विचार करिये/ये संदेश की महिमा व महत्व को संभालना संवारना का है। ईमानदारी के कर्मों से ही देश आगे बढ़ता है। इसीलिये वे भारत की आधुनिकता में डिजिलिटीकरण लाये हैं। साथ ही ट्रांसफोर्मिंग लाईव्ज टेक्नोलॉजी भी विकसित कर रहे हैं। ये डिजिलिटीकरण को और अधिक प्रोत्साहन देना। मोदी चाहते हैं कि नागारिकों को सेवा प्रदान करने व लोक कल्याण कार्यों का विस्तार किया जावे जहां उभरते क्षेत्रों को पता लगाकर नवीनतम प्रोद्योगिकियां बनाई जाये। डिजिटल ट्रांजेक्शन बढ़े तथा स्वास्थ्य, आईडेंटिटी प्रबंधन, सेवा वितरण, परिवहन, कृषि टैक्सेज, पब्लिक फाइनेंसेज, साईबर सिक्यूरिटी, ब्लॉक चेन, स्मार्ट शहर, इंटरनेट, क्लाऊड टैक्नोलॉजी, डिजिटल भुगतान, रोबोटिक प्रोसोस, ऑटोमेशन, ए-आई तथा एमालिटिक्स जैसे क्षेत्रों का विस्तार उत्तम गुणवत्ता रुप से संभव हो।
मोदी नए भारत के नए सही है। वे सामाजिक सभ्यता एक उत्तम संस्कृति भारत में विस्तारिक करना चाहते हैं। मोदी ने विदेश यात्राएं भी इसीलिये की कि लोग दुनिया में भारत से मैत्री ज्यादा रखें। ये सांस्कृतिक, राजनीतिक व धार्मिक बाधाएं ही ऐसी होती है जो एक साथ मिलने से रोकती है, परंतु यदि यहां मैत्री भाव आ जाता है तो ये ही सब एक तोहफा, खुशियां बन जाती है। आपसी मैत्री से अपनापन बढ़ता है। ये मित्रता का भाव दुनिया में फैलाना एक वैश्विक सभ्यता बनाता है। मोदी समय बिताने के लिये वहां नहीं भाग रहे, बाल्कि भारत को साबित करने के लिये नए रास्ते तलाशते हुए समय की रेत पर अपने भारत के निशान छोड़ते हुए परिवर्तन के लिये व भारत निर्माण-विकास हेतु एक काल के कपाल पर जय हिंद लिखना चाहते हैं जहां उनके हौंसले कभी होड़ में मात नहीं खाते। मोदी जानते हैं कि भारत क्या है व क्या हो सकता है। वे ये नहीं देख रहे कि क्या हो चुका है, बालिक ये देखते हैं कि क्या होना शेष है। वे अतीत की घोषणा करते हैं, वर्तमान का रिचर्स करते हैं व भविष्य को बांचते हैं। वे ये भी जानते हैं कि भारत में आम आदमी का जीवन एक साइकिल सवारी का सा है जहां वो अपना संतुलन बनाकर चलता रहता है। मोदी की इन विदेशी यात्राओं की एक बड़ी उपलब्धि अब देखने को भी मिल रही है जहां भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर तक ४०० अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। पंूजी का प्रवाह बढऩे व ऋण के कमजोर उठाव से इसमें वृद्धि आएगी। अभी विदेशी मुद्रा भंडार ३९३, अरब डॉलर के उच्च स्तर पर भी है। यदि स्थितियां-परिस्थितियां पिछले चार सप्ताह में ऐसी ही रही तो ये ४०० अरब डॉलर पर पहुंचना संभव है। जापान को छोड़कर भारत में ये वृद्धि उत्साहजनक रही है। पंूजी का सतत प्रवाह व ऋण का कमजोर उठाव अभी भी जारी है।
तीर हर शख्स की कमान में है
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