जीवन की राहें टेढ़ी-मेढ़ी होनी चाहिए, क्योंकि सीधी सपाट रोड पर आगदमी बिंदास होकर चलता है जबकि कर्व (मोड़) उसे सावधान कर देते हैं। सजग रहने वाला कहीं ठुकराया नहीं जाता, ठोकर नहीं खाता। हकीकत में जीवन की परिभाषा सततï् जागरण है। सजगता में अघटित घटित नहीं होता। वो अपने लक्ष्य की मीनार पर चढ़ जाता। प्रभू महावीर ने होश और हौंसले से परिषह और उपसर्गों के कई घाट जागरण से पार किए और मंजिल के मालिक बने। बांसुरी को देखिए सीधी थी ना, तो सीने पर जख्म झेलकर किसी के होठों से लग सकी। हीरे के कितने आड़े टेढ़े कोण हुए तब वो सुहागिन के सिर पर शोभित हो पाया। सीधी लकड़ी तो बेचारी कोने में पड़ी रहती है या कुत्ते के डराने में काम भले ही आओ। लेकिन जीवन का सीधापन इन टेढ़ी-मेढ़ी राहों को भी पार लगा देगा। इसे हमेशा याद रखना। गौतम सीधे थे गौशालक टेड़ा। आज गौतम मंगल के रूप में सम्मानित किये जाते हें गौशालक कोई अपने बच्चे का नाम भी रखना पसन्द नहीं करते।
-चिंतनशीला वसुमति जी मा.सा.
‘असलियत’
166