मुंबई/एजेंसी- रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की ऐनुअल रिपोर्ट अगले हफ्ते आ सकती है, जिससे पता चलेगा कि कितनी रकम के नकली नोट बैंकिंग सिस्टम में आए हैं। पहले के डेटा से पता चलता है कि यह रकम बहुत अधिक नहीं होती, लेकिन नोटबंदी के बाद बड़े पैमाने पर नोट बैंकों में जमा कराए जाने से यह रकम कुछ सौ करोड़ में पहुंच सकती है। हालांकि, इस बारे में अंदाजा लगाना आसान नहीं है।
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि नकली नोटों की कॉस्ट बैंक उठाएंगे या आरबीआई। बैंकिंग सिस्टम में आने वाले नकली नोटों को लेकर सरकार भी चर्चा में आ सकती है क्योंकि नोटबंदी के फैसले की वजह से बैंकों पर बहुत कम समय में नोट बदलने की जिम्मेदारी आ गई थी। आमतौर पर नकली नोटों का बोझ बैंकों को उठाना पड़ता है। यहां तक कि नकली नोट नहीं पकडऩे के मामले में रिजर्व बैंक उन पर जुर्माना भी लगाता है।
रिजर्व बैंक के डेटा के मुताबिक १६ जून तक 30 करोड़ रुपये के नकली नोटों का पता चला था। हालांकि, इसे लेकर कई अनुमान हैं। इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट ने हाल ही में एक स्टडी में नकली नोटों की वैल्यू 400 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया था।
एसबीआई गु्रप के चीफ इकनॉमिस्ट एस के घोष ने बताया कि यह देखना होगा कि नकली नोटों का आरबीआई और बैंकों की बैलेंस शीट पर क्या असर होता है। इस खबर के लिए ईमेल से पूछे गए सवालों का रिजर्व बैंक ने जवाब नहीं दिया।
नकली नोटों के पकड़े जाने से सर्कुलेशन वाली करेंसी में कमी आती है, लेकिन इससे रिजर्व बैंक की लायबिलिटी नहीं बढ़ती। जब नोटबंदी का ऐलान हुआ था, तब अनुमान लगाया गया था कि इससे रिजर्व बैंक की लायबिलिटी में भी कमी आएगी क्योंकि जो लोग सरप्लस कैश पर इनकम टैक्स नहीं चुकाना चाहेंगे, वे करेंसी नोट को छिपा सकते हैं। हालांकि, अब ऐसा लग रहा है कि रिजर्व बैंक के पास उसके छापे गए नोटों से अधिक करेंसी हो सकती है। अगर नकली नोटों की रकम अधिक होती है तो सरकार, बैंकों और रिजर्व बैंक को मिलकर यह तय करना होगा कि उसकी लायबिलिटी किस तरह से बांटी जा सकती है।
