देश में जबसे भारतीय जोरदार पार्टी की सरकार आई है तबसे कई जगह अभी आधा सच आधा झूठ की कहानियां चल रही है। लोग प्रशासन से डरते ही नहीं हैं। सभी अपने आपको मोदी से जोडऩे लगे हैं। सरकारी प्रशासन नेताओं से डरता है। लालकृष्ण आडवानी ने बीजेपी को संवारा तथा सन १९८४ से इस पार्टी में ऑक्सीजन फूंकी। इसे वे फर्श से अर्श पर ले गये, लेकिन वर्तमान में है उल्टा। आज बीजेपी ने उन्हें ही फर्श पर वापस ला दिया है व पार्टी की बादशाहत अर्श पर है।
बीजेपी सरकार के साथ समस्या ये भी है कि वो विज्ञान के साथ कम बल्कि दार्शनिकता, सामाजिकता, धार्मिकता, पौराणिकता, हिंदुत्वता पर विशेष ध्यान देने में लगी है। कानून तो है मगर अनुपालनाओं में अक्षंमता ज्यादा है। देश में आर्थिक अपराधों, श्रमिक सुधारों, बुनियादी विकास में, शिक्षा व्यवस्था में प्रशासन अभी भी कमजोर सा ही है। आए दिन ऐसे अपराध दिखाई देते हैं जहां सरकार को बार-बार यू टर्न लेना पड़ता है। पूरी सरकार मोदीजी की एकल व्यवस्था पर ही टिकी है। महिलाओं के विरूद्ध अपराधों में कमी नहीं आई है। अडवानी ने १९८४ में अल्पसंख्यकों को लाभ लेते हुए बीजेपी को सदैव लाभ में रखा। भारत व इजरायल ऐसे देश हैं जहां अल्पसंख्यक अप्रसन्न भी नहीं है। लेकिन इनकी आज भी लोकतांत्रिकता में हिस्सेदारी कम ही है। पाकिस्तान में आज भी हिंदुओं का शोषण होता है जहां हिंदुओं की आबादी कम है, लेकिन भारतीय मुस्लिम हिंदुत्वता से पूर्णत: जुड़े हुए हैं, लेकिन अभी इनकी कटटरता का प्रतिशत कम नहीं हुआ है। भारत में इनके मताधिकार के साथ गुणवत्ता का साथ चाहिए जहां अभी भी कमी है।
हाल ही भारतीय पूर्व उपराष्ट्रपति महोदय सेवा निवृत्ति पूर्व अलविदा करते हुए कह गये कि भारत में इन दिनों अल्पसंख्यक समुदाय की अहमियत कम होती जा रही है। देश में मुद्दे प्राय: पुलिस के तरीकों से ज्यादा होते हैं, ना कि मुस्लिमों से। भारत में आजकल ज्यादा ही राजनीतिकरण भी हो रहा है। हर बार सरकारी आकाओं की तरफ लोग देखते हैं। धर्म निरपेक्षता को भी कई लोग डिस्टर्ब करने लगे हैं। यहां भी बंटवारा है। स्वायत्तता का मुदï्दा भी तगड़ा ही होता है। सिद्धांतों में भी लोग कम यकीन रखने लगे हैं। वर्तमान में नेता लोग स्वयं की व अपनी पार्टी की अनुशंषा में ही ज्यादा व्यस्त हैं। कई ऐसे भी हैं जो कच्चे धागों को मजबूत धागा बता रहे हैं।
मोदी अभी के बने अर्श को नहीं मिटने देना चाह रहे हैं। देश आज उनके नेतृत्व में प्रगति की ओर अग्रसर है। मोदी धर्मसार की राजनीति से विज्ञान की ओर जा रहे हैं। वे देशभक्ति व भारत की संस्कृति को दुनिया में आगे ले जा रहे हैं। मोदी देश की बैंकों को भी मजबूत कर रहे हैं। इस वर्ष बैंक ऑफ बड़ौदा का मुनाफा बढ़ा है जो २०३.३९ करोड़ रुपये का रहा है। एसबीआई का मुनाफा ४३६ फीसदी बढ़ा है जो २००६ करोड़ रुपये रहा। पीएनबी में भी इस वर्ष अच्छा मुनाफा रहा है। नोटबंदी के बाद से भारतीयों के पास २० फीसदी कम नकदी हुई है। राजनीति के कृषि ऋण माफी से ०.७ फीसदी की जीडीपी में कमी आ सकती है।
मोदी दूर संचार नीति के लिये वर्ष २०१८ में मजबूत नई नीतियां ला रहे हैं जो व्यावहारिक वास्तविकताओं का ठीक से सामना कर सके। इस क्षेत्र में सेवा प्रदताओं पर ४.६ लाख करोड़ रुपये का उच्च ब्याज दर वाला कर्ज है। जो आक्रामक बोली (स्पेक्ट्रम) का नतीजा है। घटते ब्याज ने भी समस्या बनाई है। अत: बाजार की जरुरत पूंजी, सक्षम नीतियां, व्यवस्थिरता की है। जहां पुरानी नीतियां व्यवहार, अस्थाईत्व भरा वित्तीय मॉडल, स्कैंडल्स व असंगत प्रतिस्पर्धियां जिम्मेदार है। अत: अब सुधार कर नई स्थाईत्व नीतियां लाई जावेगी। अब सरकार एनटीपी नेटवर्क अधिकतम क्षमता का इस्तेमाल बढ़ाएगी। स्पैक्ट्रम आवंटन व प्रबंधन प्रवाह भी बढ़ाया जाएगा। उपशामक उपाय भी ढूंढे जाकर प्रतिस्पद्र्धा विरोधी विसंगतियां हटाई जाएंगी।
