नई दिल्ली। सरकारी बैंकों के एनपीए में अप्रैल-दिसंबर तिमाही के दौरान गिरावट देखने को मिली है। इस अवधि के दौरान यह 31,000 करोड़ रुपये से ज्यादा कम होकर 8,64,433 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया। यह आंकड़ा चालू वित्त वर्ष के शुरुआती 9 महीनों का है।
शिव प्रताप शुक्ला ने लोकसभा में कहा कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान बैंकों का नॉन परफार्मिंग एसेट्स या बैड लोन 8,95,601 करोड़ रुपये रहा था। उन्होंने कहा, जून 2018 तक बैड लोन गिरकर 8,75,619 करोड़ रुपये और दिसंबर 2018 में 8,64,433 करोड़ रुपये हो गया।शुक्ला ने कहा कि वर्तमान में सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के निजीकरण के किसी भी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2018-19 की अप्रैल दिसंबर तिमाही के दौरान बैड लोन 31,168 करोड़ रुपये कम हो गया, जबकि मार्च 2018 तक यह एनपीए 8,95,601 करोड़ रुपये रहा था। शुक्ला ने कहा कि पहचान, संकल्प, पुनर्पूंजीकरण और सुधारों की 4क्र रणनीति के परिणामस्वरूप एनपीए में गिरावट आई। आरबीआई के इनपुट्स के मुताबिक, स्ट्रेस्ड एसेट्स में तेजी के प्रमुख कारणों में हड़बड़ी में लोन देने की प्रथा, विलफुल डिफॉल्ट या लोन फ्रॉड या कुछ मामलों में भ्रष्टाचार और आर्थिक सुस्ती प्रमुख है। उन्होंने आगे कहा कि एसेट क्वालिटी रिव्यू की शुरुआत वर्ष 2015 में साफ सुथरी और पूरी तरह से प्रावधानित बैंक बैलेंस-शीट के लिए की गई थी जिसके जरिए एनपीए की बड़ी घटनाओं के बारे में जानकारी हासिल हुई।