परिस्थितियों को दोष देना खुद को ही दोष देना होता है। कामयाब वहीं होते हैं जो परिस्थितियों में अपने को ढालते हैं। परिस्थितियां नहीं मिले तो बनाते हैं बदलाव चाहने पर ही लाया जा सकता है। स्वयं को चुनौती देना ही रचनात्मक प्रक्रिया है। बाहरी चुनौतियां परिस्थितियों का ही नतीजा होती हैं। एक्सरसाईज भी ऐसी ही नजरिया होती है, जहां आप वजन उठाने की मांस पेशियां सशक्त बनाते हैं। नजरिया बदलना ही कीमती हुनर है। चुनौतियों से खुश होना चाहिए। मोदी एक महान व्यक्ति हैं तो साधारण लोगों को विरोध भी झेलना पड़ता है। हरेक में त्रुटियां होती है, पूर्णता तो ईश्वर में ही होती है। विकास व विकासीय जिंदगी एक खड़ी चढ़ाई है अत: वहीं करना होता है जो सही होता है। अपनी मार्कशीट खुद देखो। जीवन भर सीखना ही पूर्णता पाने का मंत्र है।
इन दिनों विकास की बारिश जेब पर भारी पड़ रही है। सब्जियां महंगी हो गई है, प्याज के भाव आसमान छू रहे हैं, टमाटर सस्ते हो ही नही रहे। मिर्ची के दाम भी लचर व्यवस्था से दाम बढ़ा रहे हैं। मानसून के चक्कर में लोगों की जेब कट रही है। भारत में अंधविश्वास का प्रतिशत भी कुछ ज्यादा ही है। आज भी ७२ फीसदी ग्रामीण, आधुनिक चिकित्साओं से दूर हैं। कई जगह तंात्रिक विद्या भी चह रही है। पूरी जागृति का भारी अभाव है।
दूसरी तरफ चीन की चीख रोज सुनाई देने लगी है। भारत में तो आज पृथक रक्षा मंत्री ही स्वतंत्र रुप से नियुक्त नहीं है। चीन के पास २५ लाख सैनिकों की तादाद है, जबकि भारत के पास मात्र १३ लाख, पाकिस्तान के पास चार लाख सैनिक हैं। भारत को यदि लडऩा पड़ा तो ढाई मोर्चों पर लडऩा पड़ सकता है। ढांचा अभी भी पुरानी शैली का है। विचार करना है कि भारत अपने डिफेंस से कैसे आक्रमक रह सकता है। मूलभूत कमजोरियों तत्काल हटानी है। ठोस चुनौती से पूर्व तैयारी कर लेनी चाहिए। सेना में भी जोर-शोर से भर्तियां की जानी उचित होगी।
मोदी सरकार के आने के बाद से विकास की वापसी होने लगी है।
स्वच्छ भारत, डिजिलिटीकरण, गरीबी मुक्तता, भ्रष्टाचार में कमी, आंतक का जमकर विरोध, सुदृढ़ विदेश नीति, सांप्रदायिकता कमी, जातिवाद में कमी, संकल्प सिद्धी आदि कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां विकास की मार्कशीट में वृद्धि हुई है। जीएसटी से भी राज्य सरकारें व राजकोष में वृद्धि हुई है। जीएसटी से दिल्ली सरकार को भी लाभ होगा, जहां वो ६,००० करोड़ रुपये का फायदा पाएगी। दिल्ली को मिलेगा सेवाओं पर कर का आधा हिस्सा जबकि पहले ये करों के रुप में मात्र ३२५ करोड़ रुपये ही मिलते थे।
भारत की टाईटन घड़ी कंपनी अब अमेजोन के साथ अमेरिकी बाजार में प्रवेश करेगी। जहां उसे १२ अरब डॉलर को अमेरिकी बाजार दिख रहा है। टाईटन अब फास्ट्रैक मोडï्यूल्स बाजार में वहां उतारेगी। अभी उसकी सालाना बिक्री में विदेशी हिस्सेदारी मात्र १० फीसदी की है। सरकार ने हाल ही ३३१ कंपनियों को मुखौटा कंपनियां करार दिया है। इससे निवेशकों पर भार पड़ रहा है। इस क्षेत्र में ९,००० करोड़ रुपये फंसे पड़े हैं। एसएफआईओ ने आयकर विभाग की सलाह पर इन मुखौटा कंपनियों की पहचान की है। ये ३३१ कंपनियां कारोबार में सक्रिय है जहां संपत्तियां नहीं हैं या कारोबार कभी-कभी दिखाया जा रहा है। पांच ऐसी कंपनियां हैं जहां ५०० करोड़ रुपये से अधिक का बाजार है। इस श्रेणी में एक बार के लिये शेयर कारोबार की अनुमति दी जाती है तथा जितनी कीमत के शेयरों का कारोबार होता है, उसकी तीन गुना की राशि की जमानत जमा भी करानी
पड़ती है।
जे.कुमार इन्फ्रा बाजार पूंजीकरण २१५० करोड़ रुपये, प्रकाश इंडस्ट्रीज २१२४ करोड़ रुपये, पाश्र्वनाथ डवलपर्स १०३६ करोड़ रुपये व एसक्यूएस इंडिया ५३५ करोड़ रुपये है। यहां सेबी से निर्देशों का पुनर्विचार का आग्रह किया गया है। अब श्किायत वाली कंपनियों पर सत्यापन-नियामक विचार किया जा रहा है। ऑडीटर व नियामकीय प्राधिकरणों से हरी झंडी मिलते ही पाबंदी हटाई जा सकती है। पहले तो मुखौटा की परिभाषा भी देखी जायेगी। इन दिनों मोदी सरकार श्रम कानूनों में भी बदलाव चाहती है। अत: सरकार नई प्राथमिकताएं तय करने में लगी है। श्रम कानूनों में प्रक्रिया व तार्किकता का भारी अभाव है। सुधार व युक्तिकरण का काम अपने आप में एक अहम परियोजना है। श्रम कानून विर्निर्माण व औपचारिक क्षेत्र में सबसे बड़ी बाधाओं में एक है। पहले किए नियमन रिकोर्ड काफी सुधारक भी साबित नहीं हुए। यहां क्षेत्रीयता परिस्थितियों का भी ध्यान रखना होता है। श्रम बाजार में पहले से ही विसंगतियां है। सरकार नई संहिता के साथ पूरे देश में न्यूनतम वेतन एक सा करने जा रही है।
विकास की मार्कशीट देखो
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