बेहतरीन प्रतिफल द्वारा सम्पदा सृजन करने के लिए सघन यानी फोकस निवेश रणनीति पुख्ता और भली-भांति जांची-परखी-हुई रणनीति है। रोबर्ट जी. हग्सट्रोम ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘The Warren Buffett Portfolio’ में सघन निवेश रणनीति की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख निम्न प्रकार से किया है-
१. लंबी अवधि में औसत से अधिक प्रतिफल देने में समक्ष कुछ ही कंपनियों का निवेश के लिए चयन।
२. उन कंपनियों के शेयरों में ही निवेश के अधिकांश भाग का केन्द्रिकरण सर्वाधिक लाभ अर्जन करने वाली कंपनी के शेयरों में सर्वाधि निवेश।
३. लघु अवधि के शेयर मार्केट के उतार-चढ़ाव से अविचलित रहते हुए उन शेयरों में निवेश को दृढ़ता से बनाये रखना।
यह निवेश रणनीति पोर्टफोलियो के विविधिकरण के सर्वथा प्रतिकूल है। शेयर निवेश में जोखिम को कम किये जाने यानी सीमित रखने के लिए सामान्यतया अधिकांश निवेश विशेषज्ञ पोर्टफोलिया के विविधिकरण की रणनीति अपनाये जाने का समर्थन करते हैं। इस रणनीति के अंतर्गत शेयर बाजार के कई क्षेत्रों यानी सेक्टसे की अधिक कंपनियों के शेयरों में निवेश को तरजीह दी जाती है। निवेश में विविधिकरण हेतु वे सक्रिय और सूचकांक फंडस में निवेश का परामर्श देते हैं।
विश्व के सफलतम इक्विटी निवेशक वारेन बफेट विविधिकरण की रणनीति के पूर्णतया विरोधी हैं। उनका कथन है- ‘विविधिकरण अज्ञान के विरूद्ध सुरक्षा है। यह उन निवेशकों के लिए निरर्थक है जो इक्विटी निवेश के जानकर हैं और सोच समझकर निवेश करते हैं।Ó उनकी यह दृढ़ मानयता है कि कुछ ही कंपनियों के शेयरों में केन्द्रित रहकर जोखिम को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। विविधिकरण की रणनीति को अपना कर औसत से औसत प्रतिफल प्राप्त नहीं किया जा सकता। उत्तम प्रतिफल के लिए सघन निवेश रणनीति ही सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प है। विविधिकरण उन निवेशकों के लिए उपयुक्त है जो शेयर मार्केट और उसमें सूचिबद्ध कंपनियों के बारे में कुछ भी जानकारी न रखते हुए भी निवेश के अन्य विकल्पों की तुलना में इक्विटी में निवेश करके उत्तम प्रतिफल प्राप्त करना चाहता हैं। विविधिकृत सूचकांक फंडस उनके लिए उत्तम निवेश हैं।
वारेन बफेट ने सघन निवेश रणनीति का दृढ़ता और कुशलता से पालन करते हुए अपनी साझेदारी निवेश और होल्डिंग कंपनी बर्क शायर हैथवे में निवेशित पूंजी पर अकल्पनीय, अप्रत्याशित और अविश्वनीय, प्रतिफल अर्जित करके न केवल निवेशकों को मालामाल किया बल्कि स्वयं को भी विश्व का धन संपन्न इक्विटी निवेशक बनाया।
सघन निवेश रणनीति को सुस्पष्टता से प्रतिपादन करने का श्रेय बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्र्ध के दो प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों को है। ब्रिटिश अर्थशास्त्री जोन मेनार्ड कीन्स और अमेरिकन अर्थशास्त्री फिल फिशर ने इस रणनीति को न केवल गहराई से समझा बल्कि निवेशकों को भी बखूबी परिचित करवाया। बीसवीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध में इन्हीं अर्थशास्त्रियों की रणनीति को हï्दयंगम कर वारेन बफेट ने निवेश के क्षेत्र में अद्वितीय सफलता प्राप्त कर विश्व को आश्चर्य चकित कर दिया।
जोन मेनार्ड कीन्स
कीन्स ने सन १९२७ से १९४५ तक केम्ब्रिज के किंग्स कॉलेज के चेस्ट फंड को सघन निवेश रणनीति के आधार पर संचालित कर १३.२ प्रतिशत औसत वार्षिक प्रतिफल अर्जित करने में प्रशंसनीय सफलता प्राप्त की, जब कि इन १८ वर्षों में यू.के. अर्थात इंगलेण्ड के शेयर बाजार में ऋणात्मक ०.५ प्रतिशत औसत वार्षिक प्रतिफल दिया था। १९३४ में उसने एक बिजनेस सहयोगी को लिखे पत्र में निवेश को कुछ ही कंपनियों तक सीमित रखने के कारण को सुस्पष्ट किया था। उसने यह लिखा था कि यह सोचना भूल होगी कि कोई व्यक्ति कई उद्यमों मे अपने निवेश को फैलाकर अपनी जोखिम को सीमित करता हैं। व्यक्ति का ज्ञान व अनुभव सीमित होता है, अत: वह कुछ ही उद्यमों की गहरी जानकारी से उत्तम प्रतिफल प्राप्त कर सकता है। पोर्टफोलियो में अधिक कंपनियों के शेयर होने पर उन शेयरों की समस्त कंपनियों के निष्पादन का लेखा-जोखा रखना निवेशक के लिए संभव नहीं हैं। इसके विपरीत पोर्टफोलिया में कुछ ही कंपनियों के शेयर होने पर उन समस्त कंपनियों के निष्पादन से भली-भांति परिचित रहा जा सकता हैं।
फिल फिशर
फिल फिशर सघन पोर्टफोलिया के कारण बहुत प्रसिद्ध रहा है। उसने मुख्य सलाहकार के रूप में अद्र्धशताब्दी तक प्रशंसनीय सेवाएं दी। उसके द्वारा रचित दो पुस्तकें बहुत प्रसिद्ध रहीं हैं, प्रथम ‘Common Stocks and Uncommon Profits‘ और द्वितीय ‘Paths to Wealth Through Common Stocks’ वह पोर्टफोलिया में औसत दर्जे की कई कंपनियों, जिनके बारे में निवेशक को पर्याप्त जानकारी न हो, को रखने के स्थान पर कुछ ही अद्वितीय कंपनियों, जिनके कार्य-कलापों का वह भली-भांति समझता हो, को ही रखे जाने का प्रबल समर्थक था। कंपनी की अच्छी जानकारी से ही उसके शेयर में ऊंचा प्रतिफल प्राप्त किया जा सकता है। वह पोर्टफोलिया में १० से कम कंपनियों को रखना ही उचित मानता था। वह उनमें से तीन या चार कंपनियों में ही समस्त निवेश के ७५ प्रतिशत निवेश को रखे जाने का समर्थक था। बिना पर्याप्त जानकारी के शेयरों में निवेश को वह बहुत घातक समझता था। उसने बहुत ऊंचा लाभ अर्जित करने वाली कंपनियों के शेयरों में ही निवेश किये जाने का समर्थन किया। यह संभव न होने पर उसने किसी भी कंपनी के शेयरों में निवेश न किये जाने का परामर्श दिया।
वारेन बफेट
वारेन बफेट कीन्स के विचारों व कार्य पद्धति का न केवल बहुत प्रशंसक रहा है, बल्कि उससे बहुत प्रभावित भी हुआ है। वह अपने गुरू और पथ प्रदर्शक फिल फिशर की सघन निवेश रणनीति का प्रबल समर्थ और पोषक रहा है। लंबी अवधि तक बेहद सावधानी व कठोर अनुशासन में रहतेे हुए और सघन निवेश रणनीति की पालना करके ही वह शून्य से शिखर तक पहुंचने और विश्व के महानतम निवेशक बनने में कामयाब रहा। उसने कुछ ही बहुत लाभदायक कंपनियों को पहचानने और उनके शेयरों का उनके अंतर्निहित मूल्य से कम कीमत पर खरीदने में अपने समस्त वित्तीय साधनों का निवेश बेझिझक होकर किया। उसने उन कंपनियों के व्यवसाय और उनके प्रबंधकों की कार्य शैली को समझने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। बफे ट की यह मान्यता रही है कि कुछ ही कंपनियों में के न्द्रित रहने पर निवेशक को उन कंपनियों का भली-भांति अध्ययन करने का अवसर मिल जाता है वह उनके शेयरों के अंतर्निहित मूल्य को भी समझने में समक्ष हो जाता है। उसका कथन है-‘ प्रत्येक निवेश में अपनी कुल शुद्ध पंूजी का कम से कम १० प्रतिशत हिस्सा निवेश करने का साहस और विश्वास निवेशक में होना ही चाहिए।अपने गुरू फिशर की तरह वह भी १० से अधिक कंपनियों में निवेश को बनाये रखने हा समर्थक नहीं रहा हैं। अपने पोर्टफोलिया में १० से अधिक कंपनियों के स्टॉक्स नहीं होने चाहिए। सघन निवेश के लिए उच्च लाभ देने वाली १० कंपनियों का चयन और उनमें किये जाने वाले निवेश का विभाजन मुश्किल कार्य अवश्य है। उनमें भी जो कंपनियां अधिक लाभजनक हो, उनमें पूंजी के अधिक हिस्से का निवेश किया जाना चाहिए। बफेट निश्चित व्यवसाय वाली कंपनियों में अधिक निवेश करने में सदैव विश्वास रखते रहे हैं। अत: वे जोखिम से कभी भयभीत न रहे। जिस व्यवसाय में अधिक जोखिम हो, उसमें निवेश से बचना ही श्रेयकर है। किसी भी कंपनी के शेयर को उसके वर्थ यानी अन्तर्निहित मूल्य से काफी कम कीमत पर खरीदने ेपर उसमें जोखिम बहुत ही सीमित हो जाती है। कम से कम ५ साल के लिए निवेशित रहने की मानसिकता होने पर ही सघन निवेश की शुरूआत की जानी चाहिए। लंबी अवधि न केवल निवेश को सुरक्षा प्रदान करेगी बल्कि उसके प्रतिफल को ऊंचा बनाने में भी सहायक होगी।
विविधिकृत पोर्टफोलिया में अधिकांश निवेशक लघु अवधि के शेयर मार्केट के भारी उतार-चढ़ाव में भले ही अपने का सुरक्षित अनुभव करते हों परंतु लंबी अवधि में वे औसत प्रतिफल ही प्राप्त करते हैं जबकि सघन निवेशक बहुत उच्च प्रतिफल से लाभंावित होते हैं। लंबी अवधि में विविधिकरण पोर्टफोलिया के लाभ को बढ़ाने के स्थान पर घटाता है। कमजोर निष्पादन करने वाली कंपनियों के शेयर अच्छे निष्पादन करने वाली कंपनियों के शेयर के प्रतिफल को कम करके पोर्टफोलिया के प्रतिफल को औसत स्तर का बना देते हैं। विविधिकृत पोर्टफोलिया हानि से सदैव सुरक्षा प्रदान करता है, यह मान्यता पूणतया सत्य नहीं है। शेयर मार्केट की अधिक मंदी में विविधिकृत पोर्टफोलिया भी हानि से अछूत नहीं रहते हैं। सर्वाेत्तम निष्पादन करने वाले विविधिकृत पोर्टफोलिया वाले फण्डस को भी हानि उठानी पड़ती है। उनके युन्टिस की नेट ऐसेट वेल्यू में अच्छी खासी कमी आ जाती है।
निवेशकों में व्याप्त निराशा व भय के मनोभाव शेयर बाजार के विचलन के मुख्य कारण होते हैं। मनोभावों पर नियंत्रण रखने में अक्षम निवेशक सघन निवेश रणनीति के लिए अनुपयुक्त होते है। इस निवेश रणनीति में सफलता के लिए निवेशक में बेहद धैर्य से अपने पोर्टफोलियो में लंबी अवधि के लिए बने रहने की क्षमता होनी चाहिए।