Wednesday, September 18, 2024
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ब्रह्मगिरी पहाडिय़ों में बसा है भारत का स्कॉटलैंड ‘कुर्ग’

by admin@bremedies
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मंगलौर/कुर्ग- मंगलौर से कुर्ग की दूरी है 135 किलोमीटर है। यहां से मडिकेरी तक सीधी बसें मिल जाती हैं। मडिकेरी कुर्ग जिले का हेडक्वार्टर है। समुद्र तल से 1525 मीटर की उंचाई पर बसा मडिकेरी कर्नाटक के कोडगु जिले का मुख्यालय है। मडिकेरी को दक्षिण का स्कॉटलैंड कहा जाता है। यहां की धुंधली पहाडिय़ां, हरे वन, कॉफी के बगान और प्रकृति के खूबसूरत दृश्य मडिकेरी को अविस्मरणीय पर्यटन स्थल बनाते हैं। मडिकेरी और उसके आसपास बहुत से ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी हैं। यह मैसूर से 125 किमी. दूर पश्चिम में स्थित है और कॉफी के उद्यानों के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है।
1600 ईस्वी के बाद लिंगायत राजाओं ने कुर्ग में राज किया और मडिकेरी को राजधानी बनाया। मडिकेरी में उन्होंने मिट्टी का किला भी बनवाया। 1785 में टीपू सुल्तान की सेना ने इस साम्राज्य पर कब्जा करके यहां अपना अधिकार जमा लिया। चार वर्ष बाद कुर्ग ने अंग्रेजों की मदद से आजादी हासिल की और राजा वीर राजेन्द्र ने पुर्ननिर्माण का कार्य किया। 1834 ई. में अंग्रेजों ने इस स्थान पर अपना अधिकार कर लिया और यहां के अंतिम शासक पर मुकदमा चलाकर उसे जेल में डाल दिया। कुर्ग अंग्रेजों का दिया नाम है जिसे बदलकर कोडगु कर दिया गया है। यहां की भाषा कूर्गी है। स्थानीय लोग इसे कोडवक्तया कोडवा कहते हैं। मडिकेरी के अलावा कुर्ग के मुख्य इलाके विराजपेट, सोमवारपेट और कुशलनगर है। यहां लोगों में एक अलग तरह की खुशमिजाज़ी है, जो आप कुदरत के करीब रहने वाले हर इंसान में देख सकते हैं।
कावेरी का उद्गम-तलकावेरी
मंदिर से निकलकर हम राजा की सीट (गद्दी) की तरफ बढ़े। हरे-भरे बाग के अंदर राजा की ऐतिहासिक गद्दी है । यहां से दूर-दूर फैले हरे धन के खेतों, घाटियों, भूरे-नीले घाटों के दृश्य देखे जा सकते हैं। यह वो जगह है जहां कुर्ग के राजा अपनी शामें बिताया करते थे। पहाडिय़ों, बादलों और धुंध के बीच सिमटे कुर्ग का दृश्य देखकर लोगों का मन बाग-बाग हो जाएगा। राजा की सीट के साथ ही चोटी मरियम्मा नामक एक प्राचीन मंदिर है। मडिकेरी में ऐतिहासिक महत्व की कई जगहें हैं और मडिकेरी किला उनमें से एक है। प्रारंभ में यह किला मिट्टी का बना था और इसका निर्माण मुद्दु राजा ने करवाया था। टीपू सुल्तान ने इसका पुनर्निर्माण करके इसमें पत्थरों का इस्तेमाल किया। टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी में यहां कुछ समय के लिए शासन किया था। किले के अंदर लिंगायत शासकों का महल है। किले में एक पुरानी जेल, गिरिजाघर और मंदिर भी हैं। गिरिजाघर को म्यूजिय़म में तब्दील कर दिया गया है। छोटे से म्यूजिय़म का चक्कर लगाकर हम किले से बाहर निकल आए।
मडिकेरी से 8 किलोमीटर दूर एबी वॉटरफॉल एक निजी कॉफी-एस्टेट के अंदर है। एस्टेट में कदम रखते ही कॉफी, काली-मिर्च, इलायची और दूसरे कई पेड़-पौधों देखने को मिलते हैं। हरियाली और ढलान भरे रास्ते से उतरते हुए हमें कल-कल करते झरने की आवाज सुनाई दी।
कुछ कदम चलने के बाद दिखा एबी वॉटरफॉल, जिसके ठीक सामने हैंगिंग ब्रिज यानि झूलता हुआ पुल है। पुल पर खड़े हो जाएं तो झरने से उड़ते छींटे आपको सराबोर कर देते हैं। कुदरत के तोहफे को नजरों में कैद करने का मजा ही कुछ और है। झरनों को पूरे शबाब पर देखना हो तो मानसून से अच्छा वक्त कोई नहीं है।

ओंकारेश्वर मंदिर

मडिकेरी के आसपास कुछ खास जगहों में ओंकारेश्वर मंदिर यहां का प्रसिद्ध मंदिर है। भगवान शिव और विष्णु को समर्पित इस मंदिर की स्थापना हलेरी वंश के राजा लिंगराजेन्द्र द्वितीय ने 1829 ईस्वी में की थी। मान्यता है कि लिंग राजेंद्र ने काशी से शिवलिंग लाकर यहां स्थापित किया। मंदिर में आपको इस्लामिक स्थापत्य शैली की झलक मिलेगी। मंदिर में एक केंद्रीय गुम्बद और चार मीनारें हैं जो बासव अर्थात पवित्र बैलों से घिरी हुई हैं। इसके प्रांगण में एक तालाब है जिसमें कातला प्रजाति की मछलियां हैं। ये तालाब को गंदा होने से बचाती हैं। पल भर के लिए पानी से उचक कर बाहर निकलती और खाना लेकर फिर पानी में गुम होती मछलियां यह मजेदार दृश्य मंदिर को और आकर्षक बनाता है।

भागमंडल दक्षिण का काशी

मडिकेरी से 40 किमी. दूर भागमंडल को दक्षिण का काशी भी कहा जाता है। जब से भगन्द महर्षि ने यहां शिवलिंग स्थापित करवाया इसे भागमंडल के नाम से जाना जाता है। यहां तीन नदियों का संगम है। कावेरी, कनिका और सुज्योति। हिंदुओं के लिए यह धार्मिक महत्व की जगह है। पास में ही शिव का प्राचीन भागंदेश्वर मंदिर है। यह केरल शैली में बना खूबसूरत मंदिर है। भागमंडल के समीप ही महाविष्णु, सुब्रमन्यम और गणपति मंदिर भी हैं।
अभागमंडल से 8 किलोमीटर की दूरी पर तलकावेरी है। यह कावेरी नदी का उद्गम स्थल है। यह ब्रह्मगिरी पहाड़ के ढलान पर स्थित है। समुद्र तल से इस स्थान की ऊंचाई 4500 फीट है। कोडव यानि कुर्ग के लोग कावेरी की पूजा करते हैं। मंदिर के प्रांगण में ब्रह्मकुंडिका है, जो कावेरी का उद्गम स्थान है। इसके सामने एक कुंड है जहां दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु स्नान करते हैं। कावेरी के सम्मान में यहां हर साल 17 अक्टूबर को कावेरी संक्रमणा का त्योहार मनाया जाता है। यह कुर्ग के बड़े त्योहारों में से एक है। मंदिर के प्रांगण में सीढिय़ां हैं जो आपको एक ऊंची पहाड़ी पर ले जाएंगी। यहां से आप कुर्ग का नयनाभिराम नजारा देख सकते हैं। एक तरफ बिछी हरियाली की चादर है तो दूसरी ओर केरल की पहाडिय़ां हैं। ऐसे खूबसूरत नजारे को देखकर समझ में आया कि कुर्ग को भारत का स्कॉटलैंड क्यों कहते हैं। भागमंडल पहुंचने के लिए बेहतर होगा कि आप कोई टैक्सी या जीप कर लें।

कुर्ग का एक मनोरम दृश्य

यह पर मौजूद कोडव लोगों के इष्टदेव इगुथप्पा यानि शिव का मंदिर है। कूर्गी भाषा में इगु का मतलब है खाना, और थप्पा का मतलब है देना, इगुथप्पा यानि खाना देना। राजा लिंगराजेंद्र ने 1810 ईस्वी में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर के पुजारी लव ने बताया कि कोडव लोगों के लिए कावेरी अगर जीवनदायिनी मां है तो इगुथप्पा उनके पालक हैं।
प्रसाद के रूप में मंदिर में रोजाना भोजन की भी व्यवस्था है। किसी भी जरूरी कर्मकांड से पहले स्थानीय लोग यहां आकर अपने इष्टदेव से आशीर्वाद लेना नहीं भूलते। हमने भी इगुथप्पा का आशीर्वाद लिया और चेलवरा फाल की तरफ बढ़ गए। चेलवरा कुर्ग के खूबसूरत झरनों में से एक है। यह विराजपेट से करीब 16 किलोमीटर दूर है।

एशिया का सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक

दुनिया में 3 देश कॉफी के बड़े उत्पादक ब्राजील, वियतनाम और भारत है। भारत में कॉफी की खेती की शुरुआत कुर्ग से हुई थी और यह एशिया का सबसे ज्यादा कॉफी उत्पादन करने वाला इलाका है। कॉफी की दो किस्में होती हैं, रोबस्टा और अरेबिका। रोबस्टा कॉफी काफल छोटा जबकि अरेबिका का फल आकार में थोड़ा बड़ा होता है। अरेबिका की फसल को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। यह कॉफी रोबस्टा से महंगी है। कॉफी और काली मिर्च की खेती कूर्गी लोगों के रोजगार का मुख्य साधन है। इसके अलावा यहां इलायची, केले, चावल और अदरक की खेती भी होती है। कुर्ग के किसान नवंबर-दिसंबर के महीने में पूर्णमासी के दिन हुत्तरी का त्योहार जोशो-खरोश से मनाते हैं। यह फसल का त्योहार है।

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